दशकों पहले ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने भारतीयों की नेतृत्व और प्रशासनिक क्षमता का उपहास उड़ाते हुए कहा था कि भारतीयों में नेतृत्व क्षमता नहीं होती है. लेकिन भारत की आजादी के 75 वर्ष बाद आज उसी ब्रिटेन के प्रशासन की डोर एक भारतीय मूल के राजनेता के हाथों में है. ऋषि सुनक का ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनना एक ऐतिहासिक घटना है, जिससे सभी भारतीय गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.
सुनक से पहले भी कई भारतवंशी विभिन्न देशों के शासनाध्यक्ष बन चुके हैं, लेकिन भारतीय मूल के व्यक्ति का ब्रिटेन जैसे प्रमुख देश का प्रधानमंत्री बनना बहुत विशिष्ट है. हर बार भारतवंशियों की अंतरराष्ट्रीय पटल पर उल्लेखनीय सफलताएं भारतीयों की प्रतिभा के बढ़ते प्रभुत्व को सुदृढ़ करती हैं. भारतवंशी हर दिशा और विधा में धीरे-धीरे अपना प्रभुत्व बनाते जा रहे हैं.
दस विभिन्न देशों में कुल 31 बार भारतीय मूल के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति रहे हैं. कई भारतीय वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर हैं. अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, स्टेट सीनेटर यास्मीन ट्रूडो विश्व प्रसिद्ध नाम हैं. कनाडा जैसे प्रमुख देश में पिछले वर्ष के चुनाव में 17 भारतवंशी चुनाव जीतकर राजनीति में सक्रिय हैं.
वर्ष 2008 में छपे इकोनॉमिक टाइम्स के रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध वैमानिकी और अंतरिक्ष संस्था नासा में 36 प्रतिशत वैज्ञानिक हैं. अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ फिजीशियंस ऑफ इंडियन ओरिजिन के 2019 के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका के 29.5 प्रतिशत चिकित्सक भारतीय मूल के हैं. यही स्थिति व्यवसाय क्षेत्र में भी है. जहां भारतीय मूल के व्यवसायियों द्वारा स्थापित व्यवसाय अग्रणी हो रहा है, वहीं विश्व की बड़ी कंपनियां भारतीय मूल के पेशेवरों को सर्वोच्च पदों पर नियुक्त कर रही हैं.
गल्फ टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, फॉर्च्यून 500 कंपनियों में से 30 प्रतिशत में भारतीय सीईओ हैं और अमेरिका की सिलिकॉन वैली में नियुक्त इंजीनियरों में एक तिहाई भारत से हैं. ऐसे परिप्रेक्ष्य में भारतवंशियों के व्यवसाय और तकनीक में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते प्रभुत्व की विवेचना आवश्यक हो जाती है. भारतीय मूल के अरबपति व्यवसायियों की फेहरिस्त दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.
भारतीय मूल के विश्व प्रसिद्ध उद्योगपतियों में आर्सेलर-मित्तल के लक्ष्मी मित्तल, जेडस्केलर के जय चौधरी, सन माइक्रोसिस्टम के पूर्व सहसंस्थापक विनोद खोसला, वेदांता रिसोर्सेज के अनिल अग्रवाल, सिम्फनी टेक्नोलॉजी ग्रुप के संस्थापक रोमेश वाधवानी शामिल हैं, साथ ही हजारों अप्रवासी भारतीय विदेशों में सफलतापूर्वक अपने व्यवसाय संचालित कर रहे हैं. जहां भारतीय मूल के अरबपति उद्योगपतियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, वहीं फेहरिस्त में पहले से स्थापित उद्योगपतियों की नेट वर्थ और बाजार मूल्यांकन में तेज वृद्धि हो रही है.
उदाहरण के तौर पर, विनोद खोसला का नेट वर्थ 2020 के 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर से दो वर्ष में बढ़कर 5.3 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है, वहीं रोमेश वाधवानी की कुल संपत्ति 2020 के 3.4 अरब डॉलर से बढ़कर 5.1 डॉलर तक पहुंच चुकी है. विदेशों में बसे भारतीय मूल के पेशेवरों और आम उद्यमियों की औसत आय निरंतर बढ़ रही हैं.
ग्लोबल इंडियन टाइम्स के अक्टूबर, 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिका की 44 प्रमुख कंपनियों के सीइओ भारतीय हैं. आइटी क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के सीइओ सत्या नडेला और प्रसिद्ध इंटरनेट कंपनी अल्फाबेट के सुंदर पिचाई भी भारतीय मूल के ही हैं. सॉफ्टवेयर कंपनी एडोब के शांतनु नारायण, आईबीएम के अरविंद कृष्ण, एलएमवेयर के रंगराजन रघुराम, अरिस्टा नेटवर्क की जयश्री उल्लाल, मास्टर कार्ड के अजयपाल सिंह बग्गा सहित अनेक भारतीय मूल के पेशेवर लोकप्रिय आइटी और तकनीकी कंपनियों का संचालन कर रहे हैं.
पहले भारतीय पेशेवरों को तकनीकी व्यवसाय तक सीमित माना जाता था, लेकिन बार्कलेज के सीएस वेंकटकृष्णन, खुदरा लक्जरी और आभूषण की प्रसिद्ध कंपनी चैनल की लीना नायर इत्यादि गैर आइटी क्षेत्र में भारतीय मूल के पेशेवर प्रभुत्व स्थापित कर रहे हैं. गल्फ टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, पूरी दुनिया के लगभग 10 फीसदी उच्च तकनीकी कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी भारतीय मूल के हैं.
उदाहरण के तौर पर, अभी पिछले वर्ष नवंबर में प्रसिद्ध सोशल मीडिया संस्था ट्विटर ने भारतीय मूल के पराग अग्रवाल को अपना सीइओ नियुक्त किया था. अभी सितंबर महीने में स्टारबक्स कॉरपोरेशन ने लक्ष्मण नरसिम्हन को अपना अगला मुख्य कार्यकारी अधिकारी नामित किया है. नरसिम्हन पहले रेकिट बेंकिजर के सीईओ थे.
प्रत्यक्ष तौर पर प्रवासी भारतीयों और भारतवंशियों का प्रभुत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. प्रवासियों के मामले में सबसे ज्यादा लगभग 1.8 करोड़ भारतीय प्रवासी दूसरे देशों में रहते हैं. भारतीय प्रवासियों का शीर्ष गंतव्य अमेरिका है. भारतीय अमेरिका के सबसे धनी और सफल अप्रवासी समूह हैं. अंतरराष्ट्रीय उद्योग विशेषज्ञ भारतीय उद्यमिता को विश्व के आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण इंजन बताते हैं.
भारतीयों को किसी भी समाज या समूह में एकीकृत करने की कला बेहतर आती है. उन्हें तकनीक की अच्छी समझ होती है, जिसका उपयोग हर क्षेत्र को बेहतर बनाने में किया जा रहा है. भारतीयों के विश्व स्तर पर बढ़ते प्रभुत्व में अच्छी अंग्रेजी बोलना भी बड़ा कारण है. भारतीय अपने अनुशासन, कर्मठता, बेहतर रणनीति के लिए जाने जाते हैं. आज ऋषि सुनक को विपरीत राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य में ही ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनाया गया है, क्योंकि हम भारतीयों के कौशल पर विश्व समुदाय का भरोसा लगातार बढ़ता जा रहा है.
भारत सरकार भारतवंशियों और प्रवासी भारतीयों को देश से जोड़े रखने के लिए आवश्यक कदम उठाती रहती है. जैसे वज्र योजना की तर्ज पर आवर्तन कार्यक्रम के अंतर्गत शीर्ष एनआरआई वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर, प्रबंधक और पेशेवरों की दक्षता और विशेषज्ञता का बेहतर उपयोग विभिन्न सरकारी, गैर सरकारी और शिक्षण संस्थानों में किया जा सकता है.
प्रवासी भारतीयों को देश में अधिकाधिक निवेश करने के लिए बेहतर माहौल बना कर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. अमेरिका के वेटेरंस एडमिनिस्ट्रेशन की तर्ज पर एनआरआई की मदद के लिए एक समर्पित विभाग स्थापित करने से प्रवासी भारतीयों को सहूलियत होगी. बेहतर प्रयास से देश के अंदर और देश से बाहर रहने वाले भारतीयों में पारस्परिक मदद का माहौल तैयार कर भारतवंशियो के बढ़ते प्रभाव का सदुपयोग किया जा सकता है.