कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन आठ नवंबर को भरणी नक्षत्र व मेष राशि में इस वर्ष का दूसरा व अंतिम खग्रास चंद्रग्रहण लगेगा. स्नान-दान की यह पूर्णिमा सर्वार्थ सिद्धि योग में मनायी जायेगी. यह चंद्रग्रहण मेष राशि व भरणी नक्षत्र में होने से ग्रहण का ज्यादा प्रभाव इसी राशि और नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों पर पड़ेगा. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक चंद्रग्रहण में गंगा स्नान से एक हजार वाजस्नेय यज्ञ के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है. इसीलिए ग्रहण के बाद गंगाजल से स्नान व घरों में इसका छिड़काव किया जाता है.
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य ज्योति षाचार्य पंडित राकेश झा ने पंचागों के हवाले से बताया कि मंगलवार को चंद्रग्रहण मिथिला पंचांग के अनुसार शाम 04:59 बजे से आरंभ होकर शाम 06:20 बजे खत्म होगा. वहीं, बनारसी पंचांग के मुताबिक यह शाम 05:01 बजे से शुरू होकर 06:19 बजे समाप्त होगा. इसकी अवधि करीब 01 घंटे 20 मिनट का होगा. चंद्रग्रहण का सूतक नौ घंटे पहले ही शुरू हो जाता है. चंद्रग्रहण में सफेद फूल व चंदन से चंद्रमा और भगवान शिव की आराधना करें. दुर्गा सप्तशती का पाठ, गुरु को स्मरण करें.
राकेश झा बताया कि मंत्रों का जाप करने के लिए ग्रहण काल सबसे अच्छा मुहूर्त होता है. इस दौरान गायत्री मंत्र का जाप, हनुमान चालीसा और हनुमान जी के मंत्रोच्चारण श्रेष्यकर होता है. ऐसा करने से सभी राशि के जातक के दोष दूर होते हैं. गुरु, ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को दान किया जाता है. चंद्रग्रहण के बाद स्नान और दान से विशेष लाभ मिलता हैं. दान में गेहूं, धान, चना, मसूर दाल, गुड़, अरवा चावल, सफेद-गुलाबी वस्त्र , चूड़ा, चीनी, चांदी-स्टील की कटोरी में खीर दान करना उत्तम होता है.
ज्योतिषी पंडित गंगाधर के अनुसार सूतक काल में भोजन पकाना या खाना, नये कार्य का आरंभ, मूर्ति पूजा और मूर्ति यों का स्पर्श , तुलसी के पौधे का स्पर्श नहीं करना चाहिए. गर्भवती महिलाओं को चाकू एवं छुरी का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए. इसका सीधा असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर होता है.