सदर अस्पताल के स्त्री एवं प्रसूति विभाग के ओपीडी में महिला मरीजों की तादाद लगातार बढ़ रही है. लेकिन, डॉक्टर और जांच के साथ उस हिसाब से व्यवस्था नहीं है. नतीजतन महिलाओं को डॉक्टरों को दिखाने में लंबा इंतजार करना पड़ता है. गायनी वार्ड में तीनों शिफ्ट मिलाकर 12 महिला डॉक्टरों के ऊपर मरीजाें का इलाज करने की जिम्मेवारी है.
इधर, अस्पताल में डॉक्टर को जल्दी दिखाने की आपाधापी में आये दिन शोर-शराबा होता रहता है. रजिस्ट्रेशन काउंटर से लेकर ओपीडी में परामर्श लेने व पैथोलॉजी जांच के लिए गर्भवती महिलाओं को दो-तीन घंटे तक इंतजार करना पड़ता है. कई बार ज्यादा समय लगने पर बीमार महिलाएं फर्श पर बैठ कर अपनी बारी का इंतजार करती दिखती हैं.
यह हाल तब है जब जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाय) के तहत हर साल जिले को 10 करोड़ रुपये की राशि मिलती है. वहीं, अस्पताल को आवश्यक मद में जरूरी सामग्री की खरीद के लिए अलग से पांच लाख रुपये का फंड उपलब्ध है. बावजूद गर्भवती महिलाओं के बैठने के लिए दस करोड़ रुपए में से दस कुर्सियां नहीं खरीदी जा सकी है.
ओपीडी में पहुंचे 33 हजार मरीज, इनमें सबसे ज्यादा 5,489 महिलाएं : आंकड़ों के अनुसार सितंबर महीने के अंदर सदर अस्पताल के ओपीडी में कुल 33,027 मरीजों ने परामर्श लिया था. इसमें से कुल 16 विभाग के ओपीडी में से अकेले 5,489 महिला मरीजों ने स्त्री एवं प्रसूति विभाग के ओपीडी में इलाज कराया. इनमें 3,272 का अल्ट्रासाउंड किया गया. इन सभी महिलाओं को पंजीयन से लेकर इलाज कराने तक करीब दो से तीन घंटे कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते हुए बिताना पड़ा.
सदर अस्पताल में महिलाओं के लिए सिर्फ एक पंजीयन काउंटर है. ब्लड जांच और अल्ट्रासाउंड के लिए भी सिंगल काउंटर है. ऐसे में महिला मरीजों को घंटों इंतजार करना पड़ता है. सबसे ज्यादा परेशानी दूर से आनेवाली गर्भवती महिला मरीजों को होती है. मरीजों के बैठने के लिए भी यहां समुचित व्यवस्था नहीं है.
रिपोर्ट- बिपिन सिंह