Akshay Navami 2022: आज अक्षय नवमी मनाया जा रहा है. धर्म शास्त्रों में आंवले को अमरता का फल माना गया है और कहते हैं कि यदि अक्षय नवमी के दिन आंवले का सेवन किया जाए तो अच्छे स्वास्थ्य का वरदान मिलता है. आंवला नवमी के दिन दान पुण्य का काफी अधिक महत्व है. माना जाता है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ में विराजमान रहते हैं.
इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है. इसलिए इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से मनचाहा वरदान प्राप्त होता है. वहीं कुछ कथाओं के अनुसार आंवले के फल को अक्षय फल कहते हैं और इसकी पूजा से हमारे धन, सुख और स्वास्थ्य को अक्षय (कभी नाश ना होना) का वरादान मिलता है. इसलिए इस दिन लोग आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं साथ ही इस वृक्ष के नीचे बैठकर परिवार के साथ भोजन करते हैं और गरीबों को भी भोजन कराते हैं.
इस साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 01 नवंबर को रात 11 बजकर 04 मिनट से शुरू होगी और इसका समापन 02 नवंबर की रात 09 बजकर 09 मिनट पर होगा. अक्षय नवमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त 02 नवंबर की सुबह 06 बजकर 34 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 04 मिनट तक रहेगा.
अक्षय नवमी के संबंध में पौराणिक कथा है कि दक्षिण में स्थित विष्णुकांची राज्य के राजा जयसेन थे. इनके इकलौते पुत्र का नाम मुकुंद देव था. एक बार जंगल में शिकार खेलने के दौरान राजकुमार मुकुंद देव की नजर व्यापारी कनकाधिप की पुत्री किशोरी पर पड़ी. मुकुंद देव उसे देखते ही मोहित हो गए और उससे विवाह की इच्छा प्रकट की.
राजकुमार को किशोरी ने बताया कि उसके भाग्य में पति का सुख नहीं है. किशोरी को ज्योतिषी ने कहा है कि विवाह मंडप में बिजली गिरने से उसके वर की तत्काल मृत्यु हो जाएगी. लेकिन मुकुंद देव विवाह के प्रस्ताव पर अडिग रहे. मुकुंद देव ने अपने आराध्य देव सूर्य और किशोरी ने भगवान शंकर की आराधना की. भगवान शंकर ने किशोरी से भी सूर्य की आराधना करने को कहा.
भोलेशंकर की कहे अनुसार किशोरी गंगा तट पर सूर्य आराधना करने लगी. तभी विलोपी नामक दैत्य किशोरी पर झपटा. ये देख सूर्य देव ने उसे वहीं भस्म कर दिया. किशोरी की अराधना से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने किशोरी से कहा कि कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले के वृक्ष के नीचे विवाह मंडप बनाकर मुकुंद देव से विवाह कर लो.
भगवान सूर्य के कहे अनुसार दोनों ने मिलकर मंडप बनाया. एकदम से बादल घिर आए और बिजली चमकने लगी. जैसे ही आकाश से बिजली मंडप की ओर गिरने लगी, आंवले के वृक्ष ने उसे रोक लिया. इसके बाद से ही आंवले के वृक्ष की पूजा की जाने लगी.