25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंड का विकास तो हुआ लेकिन आर्थिक पैमाने पर अब भी पिछड़ा, राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने में लगेगा इतना समय

jharkhand foundation day: झारखंड गठन के वक्त यानी वर्ष 2000 में आर्थिक दृष्टिकोण से झारखंड की गिनती गरीब और न्यूनतम आमदनी वाले राज्यों में होती थी. 21 साल बाद भी राज्य की गिनती इसी श्रेणी के राज्यों होती है.

jharkhand foundation day: झारखंड गठन के वक्त यानी वर्ष 2000 में आर्थिक दृष्टिकोण से झारखंड की गिनती गरीब और न्यूनतम आमदनी वाले राज्यों में होती थी. 21 साल बाद भी राज्य की गिनती इसी श्रेणी के राज्यों होती है. हालांकि इस अवधि में राज्य में कई क्षेत्रों में प्रगति हुई है. प्रगति की इस दौड़ में हर व्यक्ति पर कर्ज का बोझ बढ़ता गया. राज्य में प्रगति की रफ्तार इतनी तेज नहीं रही कि हम आर्थिक पैमाने के राष्ट्रीय औसत तक पहुंच सकें.

राज्य को विकास के औसत राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने में एक दशक से भी ज्यादा समय लगने का अनुमान है. झारखंड गठन के समय झारखंड की गिनती बीमारू राज्य के रूप में होती थी. वर्ष 2000-01 में भी राज्य की गिनती गरीब और न्यूनतम आमदनी वाले राज्यों में होती थी. सरकारी आंकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2000-01 में देश की कुल आमदनी (जीडीपी-1972606 करोड़) में राज्य का हिस्सा (जीएसडीपी-33043 करोड़) सिर्फ 1.52% ही था.

झारखंड को भौगोलिक क्षेत्र देश के भौगोलिक क्षेत्र का 2.4 प्रतिशत है. राज्य का भौगोलिक क्षेत्र 2.4 प्रतिशत होने के बावजूद राष्ट्रीय आमदनी में उसकी भागीदारी सिर्फ 1.52 होना इस बात का संकेत था कि राज्य के आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. राज्य गठन के वक्त राज्य में प्रति व्यक्ति आय 10,451 रुपये व प्रति व्यक्ति आय का राष्ट्रीय औसत 16,764 रुपये हुआ करता था.

यानी झारखंड में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का सिर्फ 62.34 प्रतिशत था. केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा राज्यों में प्रति व्यक्ति आय के मामले में की गयी रैंकिंग में झारखंड 26वें पायदान पर था. राज्य गठन के बाद से राज्य ने अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने की कोशिश की. विकास दर में वृद्धि हुई और देश की आमदनी में राज्य का हिस्सा थोड़ा सा बढ़ा. वित्तीय वर्ष 2015-16 में देश की आमदनी में राज्य की भागीदारी 1.52 प्रतिशत से बढ़ कर 1.84 प्रतिशत हो गया. आर्थिक विकास के नजरिये से वित्तीय वर्ष 2001-02 से 2004-05 राज्य के लिए बेहतर रहा.

इस अवधि में राज्य के प्रति व्यक्ति आय का औसत वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा रहा. 2001-05 के बीच राज्य में प्रति व्यक्ति आय में 6.69 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी. दूसरी तरफ इसी अवधि में औसत राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय में 4.58 प्रतिशत की वृद्धि हुई. वित्तीय वर्ष 2012-16 के बीच भी राज्य के प्रति व्यक्ति आय में 7.15 प्रतिशत और राष्ट्रीय औसत मे 5.11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी. हालांकि 2018-19 की रैंकिंग में राज्य प्रति व्यक्ति आमदनी के मामले में 26वें पायदान पर ही रह गया.

वित्तीय वर्ष 2020-21 में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय औसत बढ़ कर 1,28829 रुपये हो गया. लेकिन झारखंड में प्रति व्यक्ति आय बढ़ कर 71,071 रुपये तक ही पहुंच सका. इससे प्रति व्यक्ति आय के मामले में राष्ट्रीय औसत के मुकाबले झारखंड काफी पीछे रहा और न्यूनतम आमदनी वाले राज्यों की श्रेणी से बाहर नहीं निकल सका. इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में राष्ट्रीय औसत तक पहुंचने के मामले में अभी दशकों लगेंगे.

राज्य गठन के बाद राज्य सरकार द्वारा अपने जरूरी खर्चों को पूरा करने के लिए लिये जा रहे कर्ज की वजह से राज्य के हर नागरिक पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है. राज्य गठन के बाद सरकार ने वित्तीय वर्ष 2001-02 में अपना बजट बनाया. इस क्रम में सरकार की ओर से राज्य के पास सरप्लस रेवेन्यू होने का दावा किया गया. यानी सरकार की आमदनी उसके खर्च की जरूरतों से अधिक बतायी गयी. बाद में महालेखाकार ने इसे घाटे का बजट करार दिया. सरकार ने अपने पहले वित्तीय वर्ष के दौरान कुल 454.98 करोड़ रुपये का कर्ज लिया.

यह कर्ज 7.8 प्रतिशत, 6.8 प्रतिशत,6.95 प्रतिशत और 6.75 प्रतिशत सूद की दर पर लिये गये. वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर कुल 61.89 करोड़ रुपये का कर्ज हो गया. यानी वित्तीय वर्ष 2001-02 की समाप्ति पर राज्य का हर नागरिक 2,296.90 रुपये का कर्जदार हो गया. इसके बाद से सरकार खर्च को पूरा करने के लिए लगातार कर्ज लेती रही. इसके राज्य पर कर्ज का बोझ बढ़ता गया. वित्तीय वर्ष 2021-22 के अंत में सरकार को कुल 120195.8 करोड़ रुपये का कर्ज हो गया. इससे राज्य का हर व्यक्ति अब 32,224.70 रुपये का कर्जदार हो गया.

वित्तीय वर्ष– जीडीपी में योगदान— प्रति व्यक्ति आय के मामले में राज्य

2000-01— 1.52%— 62.34%

2011-12—1.73%—65.01%

2012-13—1.77%—67.41%

2013-14–1.69%—63.84%

2014-15–1.77%–67.00%

2015-16–1.54%–57.33%

2016-17–1.57%—58.82%

2017-18–1.60%–59.69%

2018-19–1.64%–60.85%

2019-20–1.64%–60.54%

2020-21–1.68%–61.72%

रिपोर्ट- शकील अख्तर

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें