कुछ दिनों से भारत के दक्षिणपंथियों में वैश्विक हिंदू वर्चस्व के नये युग के उदय को लेकर उत्सव का माहौल है. ऐसा लगता है कि विश्वगुरु होने का सपना साकार होने को है तथा एक धार्मिक पुनर्जागरण निकट है. ऋषि सुनक के ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने पर ब्रिटिश मीडिया ने भी धर्म, अर्थ, कर्म और मोक्ष के सिद्धांतों पर खूब लिखा, जो हिंदुओं को लक्ष्मी एवं सरस्वती (संपत्ति एवं बुद्धि) दोनों के साथ सहज होने का आधार देते हैं.
ऋषि सुनक के सरकारी आवास पर दीपावली के उत्सव पर भी तब बहुत स्याही बहायी गयी थी, जब वे राजकोष के मंत्री थे. गाय की पूजा करते हुए भी उनकी कई तस्वीरें ली गयी हैं. भारत में इस पर भी बहुत उत्साह देखा गया कि प्रधानमंत्री के रूप में मीडिया से बातचीत करते हुए सुनक ने पवित्र धागा पहना हुआ था. सच यह है कि सुनक जितने आस्थावान हिंदू हैं, उतने ही वे समर्पित अंग्रेज तथा यूरोपीय संघ के विस्तार के कट्टर विरोधी कंजर्वेटिव हैं,
जिन्हें स्कूल के अपने पुराने संबंधों का लाभ मिला है तथा उनकी यात्रा का कुलीन रास्ता लंदन में विंचेस्टर, ऑक्सफोर्ड, गोल्डमैन सैस तथा कैलिफोर्निया की विशेषताओं को लेने के लिए अटलांटिक पार होते हुए गुजरता है. और यहीं भारत में उनकी बढ़ती प्रशंसा का रहस्य है. उनके बारे में हाल में द स्पेक्टेटर ने लिखा, ‘पहचान की राजनीति में अरुचि के कारण निश्चित ही नस्ली लॉबी से उनका टकराव होगा, पर ये वे प्रधानमंत्री हैं,
जो अपनी आस्था, अपनी नस्ल और अपने देश के बीच कोई तनाव नहीं देखेंगे.’ वर्ष 2017 में थेरेसा मे के सरकार में मंत्री बनने के बाद उन्होंने कहा था, ‘मैं अब ब्रिटेन का नागरिक हूं. पर मेरा धर्म हिंदू है. मेरी धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत भारतीय है. मैं गर्व से कहता हूं कि मैं एक हिंदू हूं और मेरी पहचान भी हिंदू है.’
सुनक के लिए ब्रिटेन उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि है. दावोस मैन, जैसा कि उन्हें अक्सर व्यंग्य में कहा जाता है, के रूप में सुनक का अच्छा संबंध दुनियाभर में परस्पर जुड़े कॉरपोरेट, वित्त प्रदाता और धनिक लोगों के साथ है, जो कई देशों में शासनाध्यक्ष के चयन को प्रभावित करते हैं. अचरज की बात नहीं कि सुनक ने अपनी कैबिनेट में 65 प्रतिशत से अधिक ऐसे लोगों को शामिल किया है, जो महंगे निजी स्कूलों से पढ़े हैं.
लिज ट्रस के इस्तीफे के बाद पार्टी में सुनक को किसी ने चुनौती नहीं दी. उनके चयन की प्रक्रिया को भी छोटा कर दिया गया. आखिर, सुनक दंपत्ति के पास सात हजार करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है. फिर भी ब्रिटेन में ऐसे व्यक्ति को लेकर मतभेद था, जो कई विवादों से घिरा हुआ है, जिनमें उनकी पत्नी के कर प्रबंधन पर उठे सवाल, कोविड नियमों का उल्लंघन कर पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की पार्टी में जाना शामिल है. लेकिन दुनियाभर को सार्वजनिक जीवन में सभ्य आचरण और ईमानदारी की सीख देने वाले ब्रिटिश सांसदों ने सुनक का स्वागत डूबती अर्थव्यवस्था और बिखरते समाज के उद्धारक के रूप में किया.
लेकिन नायकों की पूजा करने वाले भारतीयों, जो अपने देश में प्रतिभा के अकाल से त्रस्त हैं, ने सुनक के उदय को वैश्विक हिंदू वर्चस्व के उभार के रूप में देखा, जिसकी गूंज भारतीयों के प्रबंधकीय सफलताओं में भी सुनी जाती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई देते हुए ब्रिटिश भारतीयों के ‘जीवंत पुल’ को दिवाली की विशेष शुभकामनाएं दीं. भारतीय उनसे आशा कर रहे हैं कि वे एक भारतीय की तरह व्यवहार करें और भारत के लिए काम करें. भारत में सुनक के मूर्ख प्रशंसक उनके बुद्धिमान ब्रिटिश विरोधियों से भी खराब हैं.
ब्रिटिश प्रधानमंत्री के रूप में वे उस देश के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं, जहां उनका जन्म हुआ है. यह उनका राष्ट्रवाद और कर्तव्य है. उन्हें ब्रिटिश मतदाताओं का भरोसा जीतना है, भारतीयों का नहीं. अगर इसके लिए कोई सबूत चाहिए, तो गृहमंत्री के रूप में सुएला ब्रेवरमैन की नियुक्ति को देखा जा सकता है. वे आप्रवासन पर बहुत कठोर हैं. उन्हें भारत विरोधी विचारों के लिए भी अफसोस नहीं है.
हाल में उन्होंने कहा था कि वे भारत के साथ खुली सीमा की नीति को लेकर चिंतित हैं क्योंकि इसके लिए ब्रेक्जिट के पक्ष में लोगों ने वोट नहीं दिया था. उनका कहना है कि सभी प्रवासी ब्रिटिश पहचान को अंगीकार करें और अपने मूल के बारे में भूल जाएं. उन्होंने भारतीयों पर वीजा से अधिक समय ब्रिटेन में रहने का आरोप भी लगाया है. उनका मानना है कि ब्रिटिश पासपोर्ट के साथ शर्तें भी जुड़ी होती हैं. पिछले महीने भारत और पाकिस्तान के बीच हुए क्रिकेट मैच के दौरान हुए दंगों के लिए भी ब्रेवरमैन ने भारतीयों को ही दोषी ठहराया था.
ब्रेवरमैन जैसे राजनेताओं के कारण ही ब्रिटेन और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौते को लंबे समय से अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है क्योंकि उन्होंने कड़ी शर्तें प्रस्तावित की हैं. उन्हें मंत्री बनाकर सुनक ने भारत को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि अगर भारतीयों को ब्रिटेन में निर्बाध पहुंच चाहिए, तो उन्हें वीजा के लिए कई महीने का इंतजार करना होगा. ऐसे में भारत ने भी ब्रिटिश नागरिकों को वीजा देने में कड़ाई की है.
अंग्रेज प्रायोजकों और आयोजकों को समय से वीजा न मिल पाने से कुछ सांस्कृतिक आयोजनों पर ग्रहण लग गया है. भारतीय मूल के सफल लोगों के प्रति अत्यधिक अनुराग से भारत को कुछ भी ठोस हासिल नहीं हुआ है. अमेरिका में कमला हैरिस के उप-राष्ट्रपति बनने पर भी खूब जश्न मनाया गया था कि भारतीय मूल की एक लड़की इतने उच्च पद पर पहुंची है. उन्होंने अपने भारतीय मूल का होने पर कभी दावा नहीं किया और न ही उन्होंने पाकिस्तान के विरुद्ध भारत का समर्थन किया.
बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भारतीय संचालकों ने भारतीय विकास की यात्रा में बेहद मामूली योगदान दिया है. इसके उलट, वे भारतीय सत्ता तंत्र में उच्च स्तर पर आसानी से संपर्क बना लेते हैं, जिनमें प्रधानमंत्री, मंत्री, मुख्यमंत्री और शीर्षस्थ नौकरशाह शामिल हैं. िब्रटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक निश्चित रूप से भारत के अपने प्रशंसकों को निराश करेंगे. ब्रिटेन में 20 माह में आम चुनाव होने वाले हैं. सुनक को पता है कि हिंदू होने के लेबल में इतनी ताकत नहीं है कि इससे उनका फिर प्रधानमंत्री बनना सुनिश्चित हो सके. इसके लिए उन्हें ब्रिटिश लोगों से भी अधिक ब्रिटिश होना दिखाना होगा.