Chhath puja: लोक आस्था का महापर्व छठ शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया.इस पर्व को लेकर बिहार में वातवरण भक्तिमय बना हुआ है. पारंपरिक लोक गीतों से वातावरण और भी भक्तिमय हो गया है. छठ महापर्व की शुरुआत के साथ ही हाट-बाजारों में भीड़-भाड़ के साथ गहमागहमी भी देखने को मिल रही है. आज इस चार दिवसीय लोक पर्व का दूसरा दिन है. आज व्रती विधि-विधान से छठी मैया के लिए खरना का प्रसाद तैयार करेंगी. इसके बाद कल शाम रविवार को भगवान भास्कर दो दूध और गंगाजल का अर्घ्य दिया जाएगा.
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चर्तुथी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि तक मनाये जाने वाले इस त्योहार की शुरुआत नहाय खाय के साथ हुयी थी. आज पंचमी तिथि को खरना मनाया जाएगा. इसके बाद कल रविवार को षष्ठी तिथि पर छठी माता और भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किया जाएगा. रविवार होने के चलते इस व्रत का फल इस बार व्रतियों को कई गुणा ज्य़ादा मिलेगा. इस पूजा में सूर्य देव तथा छठी मैया साथ में वरुण देव का पूजन किया जाता है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है. छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.
छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.यह व्रत समाज में भेदभाव को खत्म करता है सभी समुदाय के सहयोग से इस व्रत को किया जाता है.जैसे बांस से बना कलसुप ,डाला डोम समुदाय से मिल जाता है.वही पूजा में दिया, कलशा कुम्भार से मिल जाता है. आलता के पात जो पटवारी से मिल जाता है. फल भी अलग-अलग समुदाय से मिल जाता है. अरुई सुथानी कच्ची हल्दी एक समुदाय से मिल जाता है. पकवान के लिए गेहूं का पिसाई बनिया समाज से होता है. सभी लोग एक जगह मिलकर तालाब के किनारे छठ का पूजन करते है. इस बार छठ का पूजन भगवान सूर्य के दिन रविवार पड़ रहा है जो बहुत ही शुभ फलदायक है.
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खरना व्रत – कार्तिक शुक्लपक्ष पंचमी तिथि 29 अक्टूबर 2022 दिन शनिवार
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डाला छठ- कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि 30 अक्टूबर 2022, दिन रविवार सूर्यास्त का समय, सायं 5:10 पर
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डाला छठ दूसरे दिन- कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि 31 अक्टूबर 2022, दिन सोमवार सूर्योदय का समय: सायं 5:56 मिनट, इस दिन सूर्यास्त सायं 5:10 पर होगी.
छठ पूजा के दूसरे दिन महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती है. इसके साथ ही वे इस दिन मिट्टी का एक चूल्हा बनाती है और फिर संध्या समय में इस चूल्हे पर गुड़ की खीर और रोटियां तैयार करती है. इन तैयार किये गए व्यंजनों का भोग पहले भगवान को चढ़ाया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. बाद में सभी परिवार इसी प्रसाद को मिलकर खाते है
धर्म के जानकार ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा ने बताया कि वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा जाता है. सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है. सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है. छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. छठ का पर्व करने से असाध्य रोग भी खत्म हो जाते है. चर्म रोग भी ठीक हो जाते है. कार्तिक माह के चतुर्थी तिथि को पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है.
बांस का बना हुआ डाला, कलसुप, दिया , चावल, सिंदूर, धूपबत्ती, कुमकुम और कपूर , चंदन,फलों में गन्ना, शरीफा, नाशपाती और बड़ा वाला नींबू, सुथनी, शकरकंदी, मूली, नारियल, अनारश, अनार केला, लड्डू, मिठाई , शहद हल्दी, मूली और अदरक का हरा पौधा. आर्त का पत्ता और बद्धी माला.