आइआइटी, नीट, क्लैट समेत देश के टॉप परीक्षाओं में विद्यार्थियों के सफल होने पर निजी स्कूल और कोचिंग उसे अपनी उपलब्धि बताते हैं. इधर, परीक्षा की तैयारी करनेवाले बच्चों के अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है. आइआइटी, नीट जैसी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करनेवाले एक विद्यार्थी को स्कूल से कोचिंग संस्थान तक प्रतिमाह 15 से 20 हजार रुपये तक शुल्क देना पड़ता है.
अभिभावक एक बच्चे पर प्रति वर्ष दो लाख रुपये तक खर्च कर रहे हैं. परीक्षा में सफल अधिकतर विद्यार्थियों का कहना है कि स्कूल व कोचिंग की पढ़ाई का तरीका अलग-अलग है. ऐसे में स्कूल की पढ़ाई पर पूरी तरह से निर्भर रह कर प्रतियोगिता परीक्षा में बेहतर करना कठिन हो सकता है. कोचिंग की पढ़ाई पर ही आश्रित रहा जाये, तो बोर्ड की तैयारी प्रभावित हो सकती है.
राजधानी में 200 से अधिक कोचिंग संस्थान हैं, जहां छठी से 12वीं और 12वीं पासआउट विद्यार्थी पढ़ते हैं. इनमें से 94 कोचिंग संस्थान 12वीं और 12वीं पासआउट विद्यार्थियों के लिए हैं. मेडिकल, इंजीनियरिंग की परीक्षा में प्रति वर्ष रांची से लगभग 12500 विद्यार्थी परीक्षा में शामिल होते हैं. इनमें से लगभग 80 फीसदी विद्यार्थी किसी न किसी कोचिंग से जुड़े होते हैं. इन सभी कोचिंग में रांची के अभिभावक सालाना लगभग 80 करोड़ रुपये खर्च करते हैं.
रांची के कोचिंग संस्थान में छठी से 10वीं तक के विद्यार्थी स्कूल की बेसिक पढ़ाई के दोहराव के अलावा एनटीएसइ, केवीपीवाइ, विभिन्न विषय के ओलंपियाड जैसे प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करते हैं. वहीं, 11वीं से 12वीं पासआउट विद्यार्थी बेसिक पढ़ाई के अलावा इंजीनियरिंग, मेडिकल, एनडीए, क्लैट, सीए-सीएस, फैशन डिजाइनिंग निफ्ट जैसी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने पहुंचते हैं. झारखंड कोचिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष सुनील जायसवाल कहते हैं कि रांची कोचिंग संस्थान का हब बन चुका है.
200 से अधिक कोचिंग संस्थान हैं राजधानी में, इनमें से लगभग 94 प्लस टू स्तर के लिए
सिर्फ रांची में ही सालाना लगभग 80 करोड़ रुपये का व्यवसाय कर रहे हैं कोचिंग संस्थान
दो साल के क्लास रूम प्रोग्राम के लिए डेढ़ लाख से तीन लाख तक भरनी पड़ती है फीस
स्कूलों में नामांकन से लेकर अन्य शुल्क मिलाकर नौ से 10 हजार रुपये का खर्च है एक बच्चे पर प्रति माह
कोचिंग संस्थान में क्लासरूम प्रोग्राम
40 से 60 हजार वार्षिक
1.5 से तीन लाख वार्षिक
10 से 20 हजार रुपये
07 से 15 हजार वार्षिक
इंजीनियरिंग और मेडिकल के कोचिंग संस्थान (रांची में) : 94
एनडीए-क्लैट-सीए व सीएस के कोचिंग संस्थान (रांची में) : 38
करियर काउंसेलर विकास कुमार ने बताया कि स्कूली के जो विद्यार्थी कोचिंग से जुड़ते हैं, उनकी तीन श्रेणियां हैं. पहली श्रेणी में 11वीं और 12वीं के विद्यार्थी हैं. इनमें पढ़ने वाले 80% विद्यार्थी खासकर जिन्होंने साइंस और कॉमर्स संकाय का चयन किया है, कोचिंग या किसी न किसी शिक्षक से जुड़ते हैं. दूसरी श्रेणी में 10वीं के विद्यार्थी है. वहीं, छठी से नौवीं के विद्यार्थी तीसरी श्रेणी में आते हैं.
राजधानी के निजी स्कूलों में प्लस टू स्तर पर एक विद्यार्थी से पांच से सात हजार तक शुल्क लिया जा रहा है. इसके अलावा कक्षा 11वीं में एडमिशन के लिए अलग से फीस ली जाती है. राजधानी के निजी स्कूलों में 50 हजार तक एडमिशन फीस ली जाती है. अगर बस किराया छोड़ दिया जाय तो भी प्लस टू स्तर पर एक विद्यार्थी के लिए अभिभावक को कुल मिलाकर नौ हजार रुपये तक प्रति माह खर्च करना पड़ रहा है.
डीपीएस छह 5650
शारदा ग्लोबल सातवीं 4900
ऑक्सफोर्ड स्कूल नौवीं 4400
केराली स्कूल आठवीं 4200
संत जेवियर्स स्कूल आठवीं 3920
बिशप गर्ल्स स्कूल दसवीं 3900
डीएवी हेहल दसवीं 3800
स्कूल कक्षा फीस
जेवीएम श्यामली आठवीं 3730
संत थॉमस छठी 3429
सरला-बिरला आठवीं 3400
सुरेंद्रनाथ स्कूल दसवीं 3315
मनन विद्या आठवीं 3300
टेंडर हार्ट सातवीं 3200
ब्रिजफोर्ड स्कूल सातवीं 2900
(कई स्कूलों के शुल्क में प्रति वर्ष सत्र शुरू होने पर अलग से लिया जानेवाला शुल्क शामिल नहीं हैं. इसके अलावा प्लस टू स्तर पर स्कूलों का फीस नीचे की कक्षाओं की तुलना में 1500 से अधिक है.)
रांची विवि के पूर्व कुलपति डॉ एए खान कहते हैं कि कोचिंग का रुख करना अभिभावकों की सबसे बड़ी गलती है. स्कूलों में बच्चों को पर्सनल अटेंशन नहीं मिल पाता है. अभिभावक पढ़ाई में पिछड़ता देख बच्चे को कोचिंग में डाल देते है. प्राइवेट स्कूल में कुछ हद तक पढ़ाई होती भी है, पर सरकारी स्कूल में अच्छे ढंग से मॉनिटरिंग की जरूरत है. स्कूल अब इंडस्ट्री हब बनता जा रहा है. इसका निदान फिलहाल संभव नहीं दिख रहा.
डपीएस के प्राचार्य डॉ राम सिंह कहते है कि विद्यालय व कोचिंग दोनों का उद्देश्य एकेडमिक है. कोचिंग में भी वही बच्चे बेहतर करते हैं, जिनका रिजल्ट स्कूल में बेहतर होता है. स्कूल में शिक्षक की जिम्मेदारी सबों को साथ लेकर चलना होता है. समय पर सिलेबस भी पूरा करना होता है. जिन बच्चों को अगल से कुछ एकेडमिक स्पोर्ट की जरूरत होती है, उनके लिए ट्यूशन की शुरुआत हुई, जिसने कोचिंग का रूप ले लिया है.
आइआइटी का लेबल और स्कूल का लेबल अलग-अलग है. स्कूल में शिक्षक को सिलेबस को पूरा करने का टारगेट होता है. वह एक्सट्रा समय नहीं देते हैं. साथ ही कई बच्चे प्रतियोगिता परीक्षा के लिए इंट्रेस्ट भी नहीं दिखाते हैं. स्कूल में सुविधाएं मिलें, टीचर कोचिंग की तरह प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए समय दें, तो शायद कोचिंग की जरूरत नहीं पड़ेगी.
आदित्य प्रकाश, आइआइटी दिल्ली