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सोहराय पर्व पर गांवों में जागरण की है परंपरा, दिवाली के बाद बोकारो के आदिवासी नहीं मनाते सोहराय

बासुदेव यादव कहते हैं कि सोहराय गीत‌ गाते हैं. नृत्य भी करते हैं. टोली बनाकर गांव-गांव में जाकर नाचते और गाते हैं, जागरण करते हैं. जागरण के लिए जब लोग ढोल-मांदर बजाते हुए गांव में पहुंचते हैं, तो ग्रामीण खासकर किसान उनका दिल खोलकर स्वागत करते हैं.

झारखंड के हर पर्व-त्योहार में गीत-संगीत का समावेश है. ढोल-मांदर-नगाड़ा की थाप पर लोग नाचते और गाते हैं. दीपावली (Deepawali) के बाद सोहराय पर्व (Sohrai Festival) मनाया जाता है. यह पर्व मवेशियों और उसकी रक्षा करने वालों को समर्पित है. झारखंड (Jharkhand News) की अलग-अलग जनजातियां अलग-अलग नाम से इस पर्व को मनाती है. संथाली सोहराय मनाते हैं, तो कुड़मी समुदाय के लोग बांदना पर्व मनाते हैं. नाम भले अलग-अलग हों, लेकिन पर्व के रीति-रिवाज लगभग एक जैसे ही हैं. सोहराय और बांदना (Bandana Festival) दोनों ही पर्व में जागरण होता है.

झारखंड में हर्षोल्लास के साथ मनता है सोहराय पर्व

दीपावली के बाद सोहराय पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. टोली बनाकर ग्रामीण निकलते हैं. मांदर और ढोल की थाप पर सोहराय गीत‌ (Sohrai Song) गाते हैं. मिलकर नृत्य करते हैं. बोकारो जिला (Bokaro District) के गोमिया प्रखंड (Gomia Block) के बिरसा गांव (Birsa Village) में लोग अभी से नाचने-गाने लगे हैं. इसी गांव के बासुदेव यादव कहते हैं कि उनके पूर्वज सोहराय पर्व (Sohrai Parv) मनाते रहे हैं.

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टोली बनाकर गांव-गांव में जाकर नाचते-गाते हैं

बासुदेव कहते हैं कि सोहराय गीत‌ गाते हैं. नृत्य भी करते हैं. टोली बनाकर गांव-गांव में जाकर नाचते और गाते हैं, जागरण करते हैं. जागरण के लिए जब लोग ढोल-मांदर बजाते हुए गांव में पहुंचते हैं, तो ग्रामीण खासकर किसान उनका दिल खोलकर स्वागत करते हैं. बासुदेव यादव का कहना है कि सोहराय गीत में ग्रामीणों का दर्द छिपा होता है.

युवा पीढ़ी पर हावी हो रही पश्चिमी सभ्यता

ऐसा देखा गया है कि हाल के दिनों में जब युवा पढ़-लिख गये हैं, तो उन पर पश्चिमी सभ्यता हावी होने लगी है. ऐसे में पारंपरिक गीत और नृत्य से लोग दूर हो रहे हैं. लेकिन, वे अपनी कला और संस्कृति को विलुप्त नहीं होने देंगे. उन्हें अपने पुरखों से यह विरासत में मिली है. वह भी अपने बच्चों को यह विरासत सौंपेंगे. उन्हें इसके महत्व के बारे में बतायेंगे, ताकि वे भी अपनी जड़ों से जुड़े रहें.

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बोकारो का आदिवासी दिवाली के बाद नहीं मनाता सोहराय

बोकारो जिला के गोमिया प्रखंड में आदिवासी समाज के लोग दीपावली के बाद सोहराय पर्व नहीं मनाते. ये लोग मकर संक्रांति (जनवरी) के समय सोहराय मनाते हैं. लेकिन, ग्वाला यानी यादव, महतो, कोइरी व अन्य जाति के लोग बड़े धूमधाम से सोहराय मनाते हैं. लोग गांव-गांव घूमते हैं. मांदर-ढोल बजाते हैं और गीत गाकर जागरण करते हैं.

रिपोर्ट- नागेश्वर, गोमिया, बोकारो

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