रांची: भारत सरकार का कोयला मंत्रालय कोल बियरिंग एक्ट (सीबीए) के तहत अधिग्रहित कोयला खदानों को लीज पर देना चाहता है. इसके लिए तैयार नीतिगत प्रस्ताव पर विचार करने के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया गया है. कोयला मंत्रालय के अपर सचिव कमेटी के अध्यक्षता होंगे. वहीं, कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव, आर्थिक मामलों के मंत्रालय के संयुक्त सचिव तथा नीति आयोग के सलाहकार सदस्य होंगे. कमेटी सीबीए के तहत अधिग्रहित भूमि को लीज पर देने की शर्तें स्पष्ट करेगी और उपयोग के बारे में भी अनुशंसा देगी.
कोयला मंत्रालय के ऑफिस ऑफ मेमोरेंडम में कहा गया है कि कई एंसिलरियों ने सीबीए के तहत अधिग्रहित जमीन लीज पर मांगी है. एंसिलरी कोयला उद्योग से जुड़ीं कई औद्योगिक गतिविधियां चलाती है. ऐसे काम के लिए उनको जमीन की जरूर है. इसे देखते हुए मंत्रालय ने प्रस्ताव तैयार कराया है. इसमें कहा गया है कि कंपनियों को लीज दिया जा सकता है, मालिकाना हक नहीं. जिन कंपनियों को लीज दिया जायेगा, उनको कोयला से जुड़े प्लांट ही लगाने होंगे. इसका उद्देश्य प्रोजेक्ट प्रभावित व्यक्ति, ऊर्जा उद्योग और पर्यावरण का संरक्षण करना है. आसपास में औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ाना भी है.
कोयला मंत्रालय ने तय किया है कि लीज पर वैसी जमीन दी जायेगी, जहां कोयला निकालना आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं है. वैसी भूमि भी दी जा सकती है, जहां कोयला का खनन हो गया है तथा अब वहां कोयला नहीं निकल सकता है.
मंत्रालय ने तय किया है कि कौन जमीन किसे देनी है, इसका सर्टिफिकेट सीएमपीडीआइ देगा. इससे संबंधित सभी शर्तों का अध्ययन सीएमपीडीआइ करेगा. इसका अंतिम अनुमोदन कोल इंडिया बोर्ड के स्तर से होगा. कोल वाशरी, कन्वेयर सिस्टम, कोल हैंडलिंग प्लांट और रेलवे साइडिंग के लिए जमीन 30-30 साल के लिए लीज पर दी जा सकेगी. थर्मल और गैर पारंपरिक ऊर्जा विकसित करने के लिए 35 साल व अस्पताल निर्माण के लिए 99 साल का लीज दिया जा सकता है. वहीं, कोल गैसीफिकेशन और केमिकल प्लांट के लिए 35 तथा कोलबेड मिथेन के लिए 30 साल का लीज दिया जा सकता है.
रिपोर्ट- मनोज सिंह