Rama Ekadashi: रमा एकादशी का का व्रत 21 अक्टूबर को रखा जाएगा. रमा एकादशी पर पूजा के लिए संध्या काल दीपदान करने से देवी लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं एवं इससे सुख-समृद्धि, धन में वृद्धि होती है और समस्त बिगड़े काम बन जाते हैं. आइए जानें रमा एकादशी क्यों रखा जाता है क्या है पौराणिक कथा और पूजन विधि…
श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति, पुष्प, नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप, दीप, घी, पंचामृत, अक्षत, तुलसी दल, चंदन , मिष्ठान
रमा एकादशी के दिन प्रात:काल से ही शुक्ल योग प्रारंभ हो रहा है, जो शाम 05 बजकर 48 मिनट तक है. उसके बाद से ब्रह्म योग प्रारंभ हो जाएगा. ये दोनों ही योग पूजा पाठ के लिए शुभ हैं. रमा एकादशी व्रत की पूजा करने का श्रेष्ठ मुहूर्त प्रात: 07 बजकर 50 मिनट से सुबह 09 बजकर 15 मिनट तक है. यह लाभ उन्नति प्रदान करने वाला मुहूर्त है. उसके बाद सुबह 09 बजकर 15 मिनट से सुबह 10 बजकर 40 मिनट तक अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त है. आप इन दोनों ही मुहूर्त में पूजा करते हैं तो आपके लिए लाभकारी है. आपका कल्याण होगा.क्या है पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय एक मुचुकुंद नाम का राजा था, जो बड़ा ही धर्मात्मा और परोपकारी था. उसकी बेटी का नाम चंद्रभागा था. राजा ने अपनी बेटी का विवाह चंद्रसेन के बेटे शोभन से कराया था. एक दिन वह अपने ससुराल आया तो उस समय रमा एकादशी का व्रत आने वाला था. ये सोंचकर चंद्रभागा चिंतित हो गई क्योंकि उस राज्य में एकादशी के दिन कोई भोजना नहीं करता था. और उसका पति बेहद ही दुर्बल था और वो एक क्षण भी बिना भोजन किए बिना नहीं रह सकता था. भोजन के बिना तो उसका प्राण निकल जाएगा. तब चंद्रभागा ने अपने पति को कहा कि हे स्वामी इस राज्य में एकादशी के दिन पशु तक जल ग्रहण नहीं करते, मनुष्य का क्या कहा जाएं, आप कहीं और चले जाइए. ये सुनकर शोभन ने कहा वह यहीं रहेगा, जो होगा देखा जाएगा.
रमा एकादशी व्रत के दिन शोभन ने एकादशी का विधि पूर्वक व्रत रखा. सूर्यास्त के समय तक वह भूख और प्यास से शोभन व्याकुल होने लगा. रात्रि जागरण भी उसके लिए कष्टकारी सबित होने लगा. वहीं अगली सुबह शोभन के प्राण निकल गए. इसके बाद राजा ने शोभन का विधिपूर्वक अंतिम संस्कार कराया और उसकी बेटी चंद्रभागा अपने में ही मायके में रहने लगी.
रमा एकादशी व्रत के करने से शोभन को पुण्य की प्राप्ति हुई, मरने के बाद शोभन को एक पर्वत पर एक सुंदर नगर देवपुर प्राप्त हुआ. वह सभी प्रकार के सुखों और ऐश्वर्य से वहां रहने लगा. काफी दिन बितने के बाद एक दिन मुचुकुंद के नगर का एक ब्राह्मण सोम शर्मा देवपुर में पहुंच तो उसने शोभन को देखकर पहचान लिया. शोभन ने भी उसे पहचान लिया और उससे मिला. सोम शर्मा ने शोभन को बताया कि उसकी पत्नी और ससुर सभी ठीक हैं, लेकिन आप बताएं कि आपको ऐसा सुंदर राज्य कैसे मिला.
तब शोभन ने कहा कि यह सब रमा एकादशी व्रत का पुण्य है, लेकिन यह सब अस्थिर है क्योंकि उस व्रत को श्रद्धारहित होकर किया था. आप चंद्रभागा को इसके बारे में बताना तो यह स्थिर हो सकेगा. तब सोम शर्मा चंद्रभागा के पास गए और सभी बातें बताई और नगर को स्थिर करने का उपाय के बारे में जानकारी दी.
चंद्रभागा के कहने पर सोम शर्मा उसे मंदराचल पर्वत के पास वामदेव ऋषि के पास लेकर गए. वहां ऋषि ने चंद्रभागा का अभिषेक किया, जिससे वह दिव्य शरीर वाली बन गई और दिव्य गति को प्राप्त हो गई. उसके बाद वह अपने पति शोभन के पास गई, तो शोभन ने उसे अपनी बाईं ओर बैठाया. उसके बाद चंद्रभागा ने अपने एकादशी व्रत के पुण्य को प्रदान कर लिया, जिससे उसका राज्य प्रलय के अंत तक स्थिर रहा. उसके बाद चंद्रभागा और शोभन साथ खुशी से रहने लगे.