Jharkhand News: बोकारो जिला अंतर्गत बेरमो कोयलांचल की कोयला खदानों में मां काली की पूजा करने की परंपरा रही है. यह कोयला खदानों के 70 के दशक में राष्ट्रीयकरण के बाद भी आजतक यह परंपरा चली आ रही है. खदानों के मुहाने पर मां काली का मंदिर स्थापित किया जाता रहा है. प्राइवेट खान मालिकों के समय भी खान मालिक, मजदूर और अधिकारी मंदिर में सिर झुकाने के बाद ही खदान में प्रवेश करते थे.
100 साल से अधिक पुराना है कोयला खदानों में काली पूजा का इतिहास
कई कोयला खदानों में काली पूजा करने का इतिहास सौ साल से भी ज्यादा पुराना है. 60-70 के दशक के बाद कई कोयला खदानों में हुए भयानक हादसे और इसमें सैकड़ों कोयला मजदूरों की मौत के बाद खदानों में काली पूजा करने का प्रचलन ज्यादा बढ़ा. मजदूर नेता सुजीत कुमार घोष, गजेंद्र प्रसाद सिंह, सुरेश प्रसाद शर्मा कहते हैं कि कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूर प्रकृति के खिलाफ कोयला खनन करते हैं. मान्यता रही है कि खानों में काम करने के दौरान मां काली किसी भी तरह की अप्रिय घटना से कर्मियों की रक्षा करती है. मालूम हो कि बेरमो कोयला क्षेत्र के ढोरी इंकलाइन में 28 मई, 1965 को हुई भयानक माइंस दुर्घटना में करीब 265 कोयला मजदूर मारे गये थे.
कभी एक दर्जन यूजी माइंस में हुआ करती थी काली पूजा
बेरमो कोयला क्षेत्र के CCL अंतर्गत बीएंडके, ढोरी एवं कथारा एरिया मिलाकर लगभग एक दर्जन भूमिगत खदान (इंकलाइन) हुआ करती थी. जिसमें बीएंडके एरिया अंतर्गत केएसपी फेज दो, बेरमो सीम इंकलाइन, कारो सीम इंकलाइन, करगली 70 फीट सीम इंकलाइन, खासमहल इंकलाइन. कथारा एरिया अंतर्गत स्वांग यूजी माइंस, जारंगडीह यूजी माइंल, गोविंदपुर फेज दो यूजी माइंस के अलावा ढोरी एरिया अंतर्गत ढोरी खास इंकलाइन के तहत चार से नौ नंबर इंकलाइन के अलावा न्यू सलेक्टेड ढोरी (एनएसडी) आदि शामिल था. अब तीनों एरिया में मात्र दो इंकलाइन कथारा एरिया की गोविंदपुर फेज दो तथा ढोरी एरिया की ढोरी खास इंकलाइन संचालित है. यहां हर साल धूमधाम से मां काली की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती थी.
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चर्चित थी बोकारो कोलियरी की काली पूजा
सीसीएल बीएंडके प्रक्षेत्र अंतर्गत सौ साल से ज्यादा पुरानी बोकारो कोलियरी की माइंसों में होने वाली काली पूजा पहले काफी चर्चित थी. बोकारो कोलियरी के दो नंबर, तीन नंबर और पांच नंबर खदान के अलावा पावर हाउस के निकट भव्य रूप से हर साल मां काली की पूजा प्रतिमा स्थापित कर की जाती थी. इसके अलावा करगली कोलियरी की एक नंबर और तीन नंबर खदान के अलावा 70 फीट सीम इंकलाइन के अलावा करगली सीम इंकलाइन में भी भव्य रूप से काली पूजा का आयोजन होता था. बाद में बेरमो सीम इंकलाइन तथा कारो सीम इंकलाइन में भी पूजा शुरू हुई. हर साल करगली इंकलाइन के मुहाने पर मां काली की प्रतिमा स्थापित की जाती थी. कई जगहों पर काली पूजा के दिन कई तरह की प्रदर्शनी भी लगायी जाती थी. जिसमें कोयला खदान में किस तरह काम होता है उसे दर्शाया जाता था. रात में इंकलाइन में काम करने वाले पीआर (पीस रेटेड) मजदूर बकरे की बलि दिया करते थे. करगली कोलियरी में अंग्रेज मैनेजर एमजी फेल तथा बोकारो कोलियरी में अंग्रेज मैनेजर बीडी टूली भी माइंस आकर मां काली का दर्शन कर प्रसाद ग्रहण करते थे.
कथारा और ढोरी की खदानों में भी वर्षों से हो रही है पूजा
सीसीएल के कथारा और ढोरी एरिया की कई भूमिगत खदान तथा खुली खदानों में वर्षों से मां काली की पूजा होते आ रही है. कथारा प्रक्षेत्र की जारंगडीह, स्वांग और गोविंदपुर इंकलाइन में हर साल धूमधाम से काली पूजा होता था. स्वांग और जारंगडीह इंकलाइन वर्षों पहले बंद हो गई. अब सिर्फ गोविंदपुर इंकलाइन में काली पूजा का आयोजन होता है. यहां वर्ष 1983 से काली पूजा की जा रही है. खदान के मुहाने पर मां काली का मंदिर है. ढोरी एरिया की एसडीओसीएम और कारीपानी के अलावा तीन नंबर इंकलाइन में भी काली पूजा की जाती थी. फिलहाल ढोरी खास इंकलाइन में काली पूजा की जाती है.
रिपोर्ट : राकेश वर्मा, बेरमो, बोकारो.