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हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई बड़ा कदम

जब तक भविष्य निर्माण की कोई भी परीक्षा सिर्फ अंग्रेजी में होगी, तब तक किसी भी छात्र से अंग्रेजी माध्यम में न पढ़ने को कहना, उसके भविष्य को रोकने जैसा है.

एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में होना सिर्फ किसी भाषा की उन्नति नहीं है, समाज के विकसित होने का लक्षण है और सौभाग्य की बात है कि यह आजादी के अमृत महोत्सव में अंग्रेजी से स्वतंत्रता का एक लक्षण है. अभी भी यह पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है, क्योंकि आज भी अंग्रेजी और अंग्रेजीयत की गुलामी की जड़ें गहरी हैं. मध्य प्रदेश में यह कार्य पिछले 7-8 वर्ष से चल रहा था. अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना इसी उद्देश्य से हुई थी कि उसमें सभी क्षेत्रों की पढ़ाई का माध्यम हिंदी हो, परंतु कुलपति के बदलने के बाद वह कार्य लगभग रुक गया.

फिर हमने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा से भी बात की थी. उन्होंने भोपाल और कुरुक्षेत्र में मेडिकल कॉलेज के लिए 400 करोड़ रुपया देने की बात भी कही. बाद में वे भी स्वास्थ्य मंत्री नहीं रहे. जब नयी शिक्षा नीति के अनुरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में करने की बात कही, तब मध्य प्रदेश में यह बात जल्दी स्वीकार हो गयी.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने इसे महत्वपूर्ण मिशन बनाया तथा एक बड़ी टीम के साथ स्थापित पुस्तकों का उनके प्रकाशकों से अनुमति लेकर अनुवाद का काम शुरू हुआ एवं प्रथम वर्ष में पढ़ाई जाने वाली एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री की पुस्तकों का प्रकाशन हुआ. इनका विमोचन 16 अक्तूबर को देश के गृह मंत्री अमित शाह ने किया. धीरे-धीरे यह कारवां आगे बढ़ेगा, ऐसी आशा है.

उस कार्यक्रम का साक्षी बनना मेरे लिए सौभाग्य की बात है. अनेक लोगों, जिनमें पढ़े-लिखे चिकित्सक भी हैं, को लगता है कि हिंदी माध्यम से कहीं चिकित्सा शिक्षा का स्तर नीचे नहीं चला जाए. आखिर कैसे यूरोप के 10 देश अपनी भाषाओं में एमबीबीएस करा रहे हैं, क्या जर्मनी और फ्रांस किसी भी क्षेत्र में पीछे हैं? मेरा भाषा के प्रति प्रेम 36 वर्ष पुरानी एक घटना से संबंधित है. तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल पटियाला में एक दीक्षांत समारोह में गये, जहां उन्हें अंग्रेजी में लिखा भाषण दिया गया.

उन्होंने पंजाबी और हिंदी में भाषण दिया. तब जनसत्ता के तत्कालीन संपादक प्रभाष जोशी ने एक संपादकीय में लिखा कि इंजीनियरिंग में लोगों ने हिंदी में काम कर लिया, फिजिक्स में कर लिया और अनेक क्षेत्रों में हिंदी आ गयी, पर मेडिकल क्षेत्र में अभी तक ऐसा करने की खबर किसी ने नहीं दिखायी है. तब मुझे एमडी का शोध ग्रंथ लिखना था. मुझे लगा कि यह काम मुझे करना चाहिए और मैंने इसे हिंदी में लिखा. मैंने दो बार आइआइटी की प्रवेश परीक्षा को हिंदी और भारतीय भाषाओं में करने के लिए राजीव गांधी सरकार के समय में आमरण अनशन किया था.

पहली बार डेढ़ दिन के अंदर तत्कालीन शिक्षा सचिव अनिल बोर्डिया ने इस मांग को सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया. उस अनशन का नेतृत्व आइआइटी दिल्ली में एमटेक का शोध प्रबंध हिंदी माध्यम में लिखने वाले श्याम रुद्र पाठक कर रहे थे. एक वर्ष तक कुछ नहीं होने के कारण पुनः आमरण अनशन पर बैठे. छठवें दिन लंबी वार्ता के बाद एक वर्ष के अंदर ही सरकार ने परीक्षा को हिंदी और भारतीय भाषाओं में करने की बात को स्वीकारा और एक वर्ष के अंदर ही आइआइटी की प्रवेश परीक्षा हिंदी और भारतीय भाषाओं में होने लगी.

भाषा का विकास बहुत अलग प्रक्रिया है और अनेक लोग अलग-अलग मानसिकता से काम करते रहते हैं. उसी समय देश में एकता और अखंडता के उद्देश्य से अखिल भारतीय प्री-मेडिकल और प्री-डेंटल परीक्षा प्रारंभ हुई. तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश पीएन भगवती ने आदेश दिया कि यह केवल अंग्रेजी में होगी. फिर हमने आंदोलन शुरू किया. कई सांसदों के हस्ताक्षर के साथ हमने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री मोतीलाल वोरा को ज्ञापन दिया, परंतु उन्होंने साफ कह दिया कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के कारण वे कुछ नहीं कर सकते.

तब प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) मुझे लेकर तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रघुनंदन स्वरूप पाठक के यहां गये. उन्होंने भी यही कहा कि आपको सर्वोच्च न्यायालय आना पड़ेगा. स्वर्गीय लक्ष्मीमल सिंघवी और अभिषेक मनु सिंघवी ने बिना फीस लिये मेरा मुकदमा लड़ा. जीत हिंदी हित रक्षक समिति की हुई और वह परीक्षा अंग्रेजी के साथ हिंदी में होनी प्रारंभ हुई.

भाषा स्वाभिमान की बात है. देश के आगे बढ़ने की बात है. अब भी ऐसी अनेक परीक्षाएं हैं, जो सिर्फ अंग्रेजी में होती हैं. भोपाल के मंच पर गृह मंत्री अमित शाह से इस बारे में बात हुई. जब तक भविष्य निर्माण की कोई भी परीक्षा सिर्फ अंग्रेजी में होगी, तब तक किसी भी छात्र से अंग्रेजी माध्यम में न पढ़ने को कहना, उसके भविष्य को रोकने जैसा है. यह बात अमित शाह अच्छी तरह समझते हैं. उन्होंने कहा है कि प्रत्येक परीक्षा कम से कम दो भाषाओं में हो. केंद्रीय स्तर की भाषा हिंदी होगी अंग्रेजी के साथ और प्रांतीय परीक्षाओं में अंग्रेजी के साथ उस प्रांत की भाषा हो.

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