11.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

jayaprakash narayan: जयप्रकाश नारायण की लिखी दो कविताएं, जिनमें मिलती है उनके जीवन की समीक्षा

जेपी की लिखी उन दो कविताओं में एक चिड़ा और एक चिड़ी की कहानी और विफलता : शोध की मंज़िलें शामिल हैं. विफलता : शोध की मंज़िलें नामक कविता उन्होंने 9 अगस्त 1975, चंडीगढ़ में जेल के दौरान लिखी थी. इन दोनों कविताओं में जयप्रकाश नारायण के अंदर का मानव प्रकट होता है.

पटना. जयप्रकाश नारायण ने अपने जीवन में बहुत कुछ लिखा,लेकिन उनकी लिखी दो कविताएं काफी लोकप्रिय हुई. जेपी की लिखी उन दो कविताओं में एक चिड़ा और एक चिड़ी की कहानी और विफलता : शोध की मंज़िलें शामिल हैं. विफलता : शोध की मंज़िलें नामक कविता उन्होंने 9 अगस्त 1975, चंडीगढ़ में जेल के दौरान लिखी थी. इन दोनों कविताओं में जयप्रकाश नारायण के अंदर का मानव प्रकट होता है. जेपी के मन का यह अंतिम छंद उनके अंतिम दिनों की उदासी और विफलता के अवसाद को उल्लेखित करता है.

कविता एक- विफलता : शोध की मंज़िलें

जीवन विफलताओं से भरा है,

सफलताएँ जब कभी आईं निकट,

दूर ठेला है उन्हें निज मार्ग से.

तो क्या वह मूर्खता थी ?

नहीं.

सफलता और विफलता की

परिभाषाएँ भिन्न हैं मेरी !

इतिहास से पूछो कि वर्षों पूर्व

बन नहीं सकता प्रधानमन्त्री क्या ?

किन्तु मुझ क्रान्ति-शोधक के लिए

कुछ अन्य ही पथ मान्य थे, उद्दिष्ट थे,

पथ त्याग के, सेवा के, निर्माण के,

पथ-संघर्ष के, सम्पूर्ण-क्रान्ति के.

जग जिन्हें कहता विफलता

थीं शोध की वे मंज़िलें.

मंजिलें वे अनगिनत हैं,

गन्तव्य भी अति दूर है,

रुकना नहीं मुझको कहीं

अवरुद्ध जितना मार्ग हो.

निज कामना कुछ है नहीं

सब है समर्पित ईश को.

तो, विफलताओं पर तुष्ट हूँ अपनी,

और यह विफल जीवन

शत–शत धन्य होगा,

यदि समानधर्मा प्रिय तरुणों का

कण्टकाकीर्ण मार्ग

यह कुछ सुगम बन जावे !

कविता दो- एक चिड़ा और एक चिड़ी की कहानी

एक था चिड़ा और एक थी चिड़ी

एक नीम के दरख़्त पर उनका था घोंसला

बड़ा गहरा प्रेम था दोनों में

दोनों साथ घोंसले से निकलते

साथ चारा चुगते,

या कभी-कभी चारे की कमी होने पर

अलग अलग भी उड़ जाते.

और शाम को जब घोंसले में लौटते

तो तरह-तरह से एक-दूसरे को प्यार करते

फिर घोंसले में साथ सो जाते .

एक दिन आया

शाम को चिड़ी लौट कर नहीं आई

चिड़ा बहुत व्याकुल हुआ.

कभी अन्दर जा कर खोजे

कभी बैठ कर चारों ओर देखे,

कभी उड़के एक तरफ़, कभी दूसरी तरफ़

चक्कर काट के लौट आवे.

अँधेरा बढ़ता जा रहा था,

निराश हो कर घोंसले में बैठ गया,

शरीर और मन दोनों से थक गया था.

उस रात को चिड़े को नींद नहीं आई

उस दिन तो उसने चारा भी नहीं चुगा

और बराबर कुछ बोलता रहा,

जैसे चिड़ी को पुकार रहा हो.

दिन-भर ऐसा ही बीता.

घोंसला उसको सूना लगे,

इसलिए वहाँ ज्यादा देर रुक न सके

फिर अँधेरे ने उसे अन्दर रहने को मजबूर किया,

दूसरी भोर हुई.

फिर चिड़ी की वैसी ही तलाश,

वैसे ही बार-बार पुकारना.

एक बार जब घोंसले के द्वार पर जा बैठा था

तो एक नयी चिड़ी उसके पास आकर बैठ गई

और फुदकने लगी.

चिड़े ने उसे चोंच से मार मार कर भगा दिया.

फिर कुछ देर बाद चिड़ा उड़ गया

और उड़ता ही चला गया

उस शाम को चिड़ा लौट कर नहीं आया

वह घोंसला अब पूरा वीरान हो गया

और कुछ ही दिनों में उजड़ गया

कुछ तो हवा ने तय किया

कुछ दूसरी चिड़िया चोचों में

भर-भर के तिनके और पत्तियाँ

निकाल ले गईं.

अब उस घोंसले का नामोनिशां भी मिट गया

और उस नीम के पेड़ पर

चिड़ा-चिड़ी के एक दूसरे जोड़े ने

एक नया घोंसला बना लिया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें