ज्ञानवापी परिसर स्थित कथित शिवलिंग के कार्बन डेटिंग को लेकर आज यानी शुक्रवार को फैसला सुनाया जा सकता है. इस फैसले पर सभी की नजर टिकी है. दरअसल, 4 पक्षकारों ने कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग की थी. हालांकि, हिंदू पक्ष में ही कार्बन डेटिंग को लेकर विरोध देखने को मिला है. बहरहाल, इस खबर में हम आपको कार्बन डेटिंग के बारे में बताने वाले हैं, कि कैसे किसी पुरानी वस्तु या सामान के उम्र का पता लगाया जाता है और पुरातत्व विभाग इसका किस तरह से उपयोग करती है.
कार्बन डेटिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से किसी पुराने वस्तु या सामान के उम्र की जानकारी मिलती है. पुरात्तव विभाग के अनुसार, लकड़ी, पत्थर, या किसी अन्य वस्तु कितना पुराना है इसकी जानकारी कार्बव डेटिंग के जरिए मिलती है. विभाग के अनुसार, गुफा के दीवारों पर बने चित्रकार या विभाग द्वारा खोजे गए अवशेष का कार्बन के जरिए पता लगाया जाता है.
कार्बन डेटिंग के लिए C-14 यानी कार्बन 14 की जरूरत होती है. वायुमंडल में तीन तरह के कार्बन मौजदू हैं, C-12, C-13 और C-14. इनमें सी-12 और सी-13 स्थाई कार्बन है. वहीं, सी 14 अस्थाई होता है. कार्बन 14 को खास इसलिए माना जाता है क्योंकि किसी पत्थर या अन्य वस्तु से लिए गए सैंपल पर यह विघटित हो जाता है. वहीं, किसी वस्तु के कार्बन डेटिंग करने के लिए लिए गए सैंपल में चारकोल जैसे किसी सैंपल का होना जरूरी माना जाता है.
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पुरात्तव विभाग कार्बन 14 को डिसइंटीग्रेशन के स्टैंडर्ड रेट से किसी वस्तु का डेट पता करते हैं. इसके माध्यम से करीब 50 हजार साल पुरानी वस्तु का अन्य चीजों का पता लगाया जा सकता है. पुरात्तव विभाग के अनुसार, कार्बन डेटिंग के लिए एक्सिलरेटेड मास स्पेक्ट्रोमीट्री औ्र ऑप्टिकल स्टिमुलेटेड ल्युमिनेंसेस का प्रयोग किया जाता है.