Bareilly News: केंद्र में एक बार फिर भाजपा अपनी (तीसरी बार) सरकार बनाने की कोशिश में है. हालांकि, विपक्ष का एक धड़ा भाजपा की हैट्रिक रोकने की कोशिश में है. कांग्रेस के प्रमुख नेता दिल्ली के एसी रूम से निकलकर जनता के बीच सड़कों पर धूल फांक रहे हैं. इससे लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद है. मगर, उत्तर प्रदेश में बिखरे विपक्ष से एक तीसरा मोर्चा खड़ा होने की कवायद शुरू हो गई है.
इसको लेकर कुछ दलों ने जोर आजमाइश भी शुरू कर दी है, लेकिन खास बात ये है कि इस मोर्चे में अखिलेश यादव से नाराज चल रही पार्टियां शामिल होंगी. इसकी अगुवाई उनके चाचा एवं प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव खामोशी से कर रहे हैं. इस तीसरे मोर्चे में इत्तेहाद ए मिल्लत काउंसिल (आइएमसी) को भी शामिल करने के लिए संपर्क साधा गया है. मगर, आइएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर रजा खां की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया है.
विधानसभा चुनाव में आइएमसी का गठबंधन कांग्रेस के साथ था. लोकसभा चुनाव में भी यह गठबंधन कायम रहेगा. यह कहना भी अभी मुश्किल है.आइएमसी के प्रवक्ता डॉक्टर नफीस खां ने बताया कि तीसरे मोर्चे के लिए संपर्क साधा गया है, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया गया है. आइएमसी के वरिष्ठ नेता नदीम खां का कहना है कि लोकसभा चुनाव में काफी समय है. नगर निकाय चुनाव के बाद पार्टी के प्रमुख लोगों और जनता के साथ बैठक की जाएगी. इसमें जो फैसला होगा. उस पर ही अमल किया जाएगा. पहले कांग्रेस को प्राथमिकता दी जाएगी.
विधानसभा चुनाव के बाद से समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव नाराज चल रहे है. उन्होंने एलान किया है कि अब वह अखिलेश के साथ नहीं आएंगे. शिवपाल नए समीकरण बनाने में जुटे हैं. अपनी पार्टी को मजबूत करने के साथ-साथ वह दूसरे छोटे दलों को भी साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा गठबंधन का हिस्सा रहे ओम प्रकाश राजभर गठबंधन टूटने के बाद अखिलेश से नाराज हैं. उनकी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज में भगदड़ मची हुई है.
एक के बाद एक करीब 300 से ज्यादा राष्ट्रीय, प्रदेशीय और क्षेत्रीय नेता ओपी राजभर का साथ छोड़ चुके हैं. राजभर इस भगदड़ की वजह अखिलेश को बता रहे हैं. राजभर ने तो यहां तक कह दिया है कि वह जल्द ही अखिलेश यादव को सबक सिखाएंगे.
सियासी विश्वसनीय सूत्रों की मानें, तो अभी जो हालात बने हुए हैं, उसे देखकर यही लगता है कि शिवपाल सिंह यादव, ओम प्रकाश राजभर, चंद्रशेखर एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं. एआईएमआईएम का साथ भी इन्हें मिल सकता है. ये चारों अपने साथ कुछ अन्य छोटी पार्टियों को भी ला सकते हैं. हालांकि, अभी लोकसभा चुनाव में डेढ़ वर्ष का समय है. नगर निकाय चुनाव के बाद तीसरे मोर्चे की तस्वीर और साफ होगी.
वैसे तो अखिलेश यादव और भाजपा के खिलाफ एकजुट हो रहे इन दलों का बड़ा जनाधार नहीं है, लेकिन जातीय और धार्मिक समीकरण इनके मजबूत होते हैं. चंद्रशेखर के पास दलित वोटर्स हैं. चंद्रशेखर दलित युवाओं में ज्यादा लोकप्रिय हैं. इसी तरह ओम प्रकाश राजभर के पास राजभर, मौर्य व कुछ अन्य पिछड़ी जातियों का वोटबैंक है. शिवपाल सिंह यादव की मदद से कुछ हद तक यादव वोटर्स तीसरे मोर्चे के साथ आ सकते हैं. वहीं, अगर एआईएमआईएम का भी साथ मिल जाए तो बड़े पैमाने पर मुस्लिम इस मोर्चे के साथ जुड़ सकते हैं.
अगर एआईएमआईएम, प्रसपा, भीम आर्मी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं, तो इससे सबसे ज्यादा नुकसान अखिलेश यादव को उठाना पड़ेगा. अखिलेश यादव के कोर यादव और मुस्लिम वोटर्स में बिखराव होगा. इसके अलावा अन्य पिछड़ी जातियां भी बिखर जाएंगी. इससे समाजवादी पार्टी को झटका लग सकता है. बहुजन समाज पार्टी को भी तीसरे मोर्चे के चलते नुकसान उठाना पड़ सकता है. वहीं, तीसरे मोर्चे से भाजपा को फायदा हो सकता है.
रिपोर्ट: मुहम्मद साजिद, बरेली