Bareilly News: समाजवादी पार्टी (SP) ने एक बार फिर नरेश उत्तम पटेल (Naresh Uttam Patel) को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, जबकि, पटेल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से सपा दो बार विधानसभा चुनाव हार चुकी है. एक बार लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से मात मिली. इसके अलावा अन्य चुनाव में भी सपा का ग्राफ लगातार नीचे गिरा है. ऐसे में सवाल उठता है कि लगातार हार के बाद भी नरेश उत्तम अपने पद पर कैसे बरकार हैं?
यह सवाल सपाइयों के साथ ही अन्य सियासी जानकारों के दिमाग में भी गूंज रहा है. सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के भरोसेमंद नरेश उत्तम पटेल सपा प्रमुख अखिलेश यादव के करीबी हो गए हैं. संगठन में उनका अनुभव काफी अच्छा है. वह उन दिनों से सपा में हैं, जब पार्टी की स्थापना हुई थी. ऐसे में अखिलेश उनपर पूरा भरोसा करते हैं. हालांकि, बड़ा कारण ये भी है कि वह कुर्मी जाति से आते हैं. यूपी में कुर्मी वोटर्स की आबादी करीब 07 फीसद है. हालांकि, यह वोट सपा में डायवर्ट नहीं करा पाते.
इस बार विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की बहन पल्लवी पटेल और मां कृष्णा पटेल को अपने साथ लाकर चुनाव लड़ाया था. इसका उन्हें फायदा भी मिला. पल्लवी ने सिराथू से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को मात दे दी थी. यही कारण है कि नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर रखने से अखिलेश को फायदा दिख रहा है. हालांकि, अखिलेश का मानना है कि ‘नरेश की पकड़ कुर्मी के अलावा अन्य ओबीसी जातियों में भी है. इसलिए सपा इसका फायदा उठाना चाहती है.
शांत स्वभाव के नरेश उत्तम जमीन से जुड़े नेता हैं. सपा केवल परिवार की पार्टी कही जाती है. ऐसे में अखिलेश परिवार के किसी सदस्य को ये पद देकर इस टैग को और मजबूत नहीं करना चाहते थे. वहीं, अन्य पिछड़े वर्ग में कोई ऐसा नेता नहीं है, जो अखिलेश का विश्वसनीय हो. स्वामी प्रसाद मौर्य, रामअचल राजभर जैसे नेता कई पार्टियां बदल चुके हैं. ऐसे में अखिलेश इनपर ज्यादा भरोसा नहीं कर सकते. यही कारण है कि उन्होंने नरेश उत्तम को दोबारा अध्यक्ष बना दिया.
नरेश उत्तम पटेल ने फतेहपुर के जहानाबाद विधानसभा क्षेत्र से 1989 में पहली बार चुनाव जीता था.वह तीन बार विधायक रहे.वर्ष 2006 में उन्हें सपा ने विधान परिषद का सदस्य बनाया.वर्ष 2017 में जब अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच विवाद हुआ, तो नरेश को इसका फायदा मिल गया. अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को अध्यक्ष पद से हटाकर नरेश को कुर्सी सौंप दी.
हालांकि, कुछ लोग ये भी कह रहे हैं की इसके पीछे अखिलेश यादव की एक मजबूरी है. उसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि अखिलेश यादव ने बाहर से आए हुए किसी नेता को यह जिम्मेदारी इसलिए नहीं सौंपी कि वह उस पर भरोसा नहीं कर सकते थे. आज नेता उनके साथ है, कल अगर किसी और के साथ चला जाए तो पार्टी के लिए फिर से दिक्कत खड़ी हो सकती है.इसलिए मजबूरी में नरेश पर ही भरोसा जताना पड़ा.
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विधानसभा के बाद लोकसभा उप चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद सपा में प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ संग्राम छिड़ गया था.सोशल मीडिया पर प्रदेश अध्यक्ष के अपना बूथ तक न जिताने का आरोप था.इसके साथ ही उनको हटाने की मांग भी काफी तेज थी.
रिपोर्ट: मुहम्मद साजिद, बरेली