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रिकॉर्ड जीएसटी संग्रहण

जीएसटी संग्रहण प्रक्रिया के बेहतर होते जाने तथा कराधान के सहज व पारदर्शी होने का लाभ सभी को मिल रहा है.

सितंबर में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का कुल संग्रहण 1,47,686 करोड़ रुपये हुआ है, जो पिछले साल इसी महीने के संग्रहण से 26 प्रतिशत अधिक है. बीते साल के सितंबर माह से इस वर्ष के संग्रहण को देखें, तो आयातित वस्तुओं से प्राप्त राजस्व में 39 प्रतिशत तथा घरेलू लेन-देन (आयातित सेवाओं समेत) से मिले राजस्व में 22 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.

ये आंकड़े स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि आर्थिक एवं औद्योगिक गतिविधियों में निरंतर वृद्धि हो रही है. यदि हम घरेलू और वैश्विक बाजार के उतार-चढ़ाव तथा अनिश्चितताओं को देखें, तो अर्थव्यवस्था के लगातार पटरी पर आने के ये संकेत निश्चित ही उत्साहजनक हैं. पिछले सात महीने से जीएसटी का मासिक संग्रहण 1.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा है. पिछले वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल से सितंबर, 2021) के बीच के राजस्व संग्रहण से वर्तमान वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में हुए संग्रहण में 27 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

ऐसा अनुमान है कि अक्तूबर से मासिक जीएसटी संग्रहण 1.5 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर जायेगा. यह बहुत मुश्किल भी नहीं है, क्योंकि कई महीनों से संग्रहण और इस लक्ष्य के बीच का अंतर दो से छह हजार करोड़ रुपये का ही है. एक तो कारोबार के लगातार बढ़ने से राजस्व प्राप्ति में बढ़ोतरी की आशा करना स्वाभाविक है.

इसके अलावा लगभग पांच महीने उत्सवों का मौसम रहेगा तथा इसी अवधि में नयी फसलों की आमद भी बाजार में होगी. खरीद-बिक्री बढ़ने से बाजार को भी हौसला मिलेगा तथा मुद्रास्फीति में राहत की उम्मीद भी है. जीएसटी संग्रहण प्रक्रिया के बेहतर होते जाने तथा कराधान के सहज व पारदर्शी होने का लाभ सभी को मिल रहा है. एक ओर संग्रहण बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर कारोबारियों को भी सहूलियत हो रही है. सुधारों का सकारात्मक असर प्रत्यक्ष करों के संग्रहण पर भी दिख रहा है.

पिछले माह केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने जानकारी दी थी कि कुल प्रत्यक्ष कर संग्रहण में बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि की तुलना में इस वर्ष 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. बिना आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी तथा अधिक आमदनी के इतना बड़ा संग्रहण संभव नहीं है. प्रत्यक्ष करों में कॉर्पोरेट टैक्स और व्यक्तिगत आयकर (प्रतिभूति लेन-देन समेत) शामिल हैं. जैसा कि अनेक विशेषज्ञों ने रेखांकित किया है, करों के अधिक संग्रहण में वृद्धि में आयात बढ़ने तथा महंगाई का भी योगदान है. इन कारकों के पीछे वैश्विक हलचलों की भी भूमिका है. सरकार भारत में उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रही है तथा रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के ठोस उपाय किये हैं.

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