हिंद-प्रशांत के केंद्र में स्थित बंगाल की खाड़ी ने पारंपरिक रूप से लोगों, राष्ट्रों, संस्कृतियों, विचारों और वस्तुओं के संलयन में बड़ा योगदान दिया है. एक बार फिर यह एशिया में समुद्री व्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है. उल्लेखनीय है कि चौथे बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस क्षेत्र के अध्ययन के लिए नालंदा विश्वविद्यालय में बंगाल की खाड़ी अध्ययन केंद्र खोलने की घोषणा की थी.
सेंटर फॉर बे ऑफ बंगाल स्टडीज (सीबीएस) के आधिकारिक शुभारंभ ने एक बार फिर खाड़ी में रुचि रखने वालों के लिए इससे जुड़ने और मंच स्थापित कर रचनात्मक एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया है. अपनी नवीन सोच के माध्यम से, कुलपति प्रो सुनैना सिंह ने देश को बंगाल की खाड़ी केंद्रित शिक्षण, अनुसंधान और क्षमता निर्माण के लिए समर्पित एक अद्वितीय अंतःविषय अनुसंधान केंद्र दिया है.
सीबीएस खाड़ी क्षेत्र के लिए अवसरों को उत्प्रेरित और उत्पन्न करने के लिए भू-अर्थशास्त्र और भू-राजनीति, पारिस्थितिकी, व्यापार और कनेक्टिविटी, समुद्री सुरक्षा, समुद्री कानून, सांस्कृतिक विरासत और नीली अर्थव्यवस्था सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देगा. यह समुद्री जुड़ाव के लिए भारत के समग्र ढांचे को मजबूत करेगा, जिसका उद्देश्य हिंद महासागर में क्षेत्रीय और बहुपक्षीय सहकारी ढांचे की स्थापना करते हुए समुद्री संबंधों को बढ़ावा देकर सभी के लिए सतत आर्थिक विकास सुनिश्चित करना है.
बंगाल की खाड़ी लंबे समय से हिंद महासागर के लिए प्रमुख वाणिज्य केंद्र रही है. इसने वैश्वीकरण के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है और पूर्व और पश्चिम के बीच एक सेतु का कार्य किया है. हिंद-प्रशांत उन्मुखीकरण और एशिया के प्रति वैश्विक आर्थिक और सैन्य शक्ति के बदलाव का खाड़ी क्षेत्र पर काफी प्रभाव पड़ा है. हिंद महासागर के इस क्षेत्र में संचार के प्रमुख समुद्री मार्ग (एसएलओसी) वैश्विक आर्थिक सुरक्षा के लिए जीवन रेखा और ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो इस क्षेत्र के कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं को शक्ति प्रदान करते हैं. खाड़ी समुद्री और ऊर्जा संसाधनों के पर्यावरण के अनुकूल अन्वेषण में अधिक क्षेत्रीय सहयोग का अवसर भी प्रदान करती है.
बंगाल की खाड़ी दुनिया में सबसे बड़ी है और विशेष रूप से जैव विविधता वाले समुद्री वातावरण के साथ प्रकृति के वरदान में से एक है. गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावदी, महानदी, गोदावरी और कावेरी सहित दुनिया की कुछ बड़ी नदियां इसमें मिलती हैं. यह कई दुर्लभ और लुप्तप्राय समुद्री प्रजातियों और मैंग्रोव के बड़े विस्तार का घर है, जो पारिस्थितिकी और मछली पकड़ने के क्षेत्र के अस्तित्व के लिए आवश्यक है.
प्रमुख शक्तियों के अपने आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रभाव का विस्तार करने के कारण क्षेत्र का समुद्री वातावरण बदल गया है. खाड़ी का अनूठा पारिस्थितिकी तंत्र वर्तमान में व्यापक पर्यावरणीय दोहन और भू-राजनीतिक उथल-पुथल के कारण एक अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है. प्रजातियों के विलुप्त होने की उच्चतम दर समुद्री पर्यावरण के प्रति लापरवाही का परिणाम है, जिसका जैव विविधता पर गंभीर प्रभाव पड़ा है.
वर्तमान में जनसंख्या वृद्धि, परिवर्तित भूमि उपयोग, संसाधनों का अत्यधिक दोहन, लवणीकरण, समुद्र के स्तर में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं खाड़ी के पर्यावरण पर दबाव डाल रही हैं. छोटे और मध्यम फीडर जहाजों से परिचालन निर्वहन, शिपिंग टकराव, अनजाने में तेल रिसाव, औद्योगिक अपशिष्ट, अनियोजित प्रदूषण और गैर-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक कूड़े का संचय आदि स्थिति को बिगाड़ने में योगदान दे रहे हैं.
इससे खाड़ी में एक मृत क्षेत्र बन गया है और प्रकृति के प्रकोप से तट की रक्षा करने वाले घटते मैंग्रोव अब पहले से कहीं अधिक खतरे में हैं. अतएव, क्षेत्र के सतत विकास के लिए मौजूदा चुनौतियों और रणनीतियों की बेहतर समझ के लिए, इन सभी मुद्दों पर केंद्रित और अंतःविषय अध्ययन की आवश्यकता है. बंगाल की खाड़ी अध्ययन केंद्र की स्थापना कर नालंदा विश्वविद्यालय ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है.
यह आवश्यक है कि समुद्री क्षेत्र के अंतर्संबंधित और अन्योन्याश्रित प्रकृति, अंतरराष्ट्रीय और उभयचर चरित्र और विभिन्न सरकारों और विविध संगठनों एवं उद्यमों के क्षेत्राधिकार जुड़ाव के कारण समुद्री पड़ोसी एक साझेदारी विकसित करें और सहयोग करें. कुछ महत्वपूर्ण चिंताओं पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, जिनमें समुद्री सुरक्षा और सुरक्षा में सहयोग का विस्तार, समुद्री संपर्क पर सहयोग बढ़ाना तथा समुद्री पारगमन में आसानी एवं समुद्री संपर्क क्षेत्र में निवेश की संभावनाओं को बढ़ावा देना शामिल है.
अपने संबंधों को बेहतर बनाने के लिए बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के देशों को प्रोत्साहन और निवेश जुटाने, समुद्री मामलों को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने और आबादी का समर्थन करने की आवश्यकता होगी. साझा समुद्री चिंताओं और समुद्री पर्यावरण की जटिलता के कारण एक साथ काम करने की आवश्यकता है.