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इटली में दक्षिणपंथ का उभार

अगर घरेलू चुनौतियां बढ़ती हैं, आर्थिक संकट गहरा होता है या मेलोनी की लोकप्रियता कम होती है, तब वे यूरोपीय संघ के विरुद्ध मोर्चा खोल सकती हैं. वह स्थिति अनेक समस्याओं से घिरे यूरोपीय संघ के लिए चिंताजनक हो सकती है.

इटली में जॉर्जिया मेलोनी के नेतृत्व वाले गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलना निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण राजनीतिक परिघटना है. वहां पहले भी धुर दक्षिणपंथी संगठन सक्रिय रहे हैं, जैसे कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मुसोलिनी के समर्थकों ने इटली सोशल मूवमेंट की स्थापना की थी. मेलोनी के गठबंधन में शामिल पूर्व प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी की राजनीति में भी धुर दक्षिणपंथ के कुछ तत्व देखे जा सकते हैं. गठबंधन के एक अहम नेता मैत्तियो सल्विनी को भी बहुत हद तक धुर दक्षिणपंथ से संबद्ध माना जाता रहा है तथा वे पहले सरकार में रह चुके हैं.

तो, दक्षिणपंथ के अलग-अलग रूप पहले से रहे हैं, पर यह पहली बार हो रहा है कि स्पष्ट रूप से धुर दक्षिणपंथी एजेंडे को लेकर चलने वाला कोई व्यक्ति इटली का प्रधानमंत्री होगा और नयी सरकार के नीतियों पर उसका वर्चस्व होगा. इस कारण अनेक राजनीतिक विश्लेषक यह कह रहे हैं कि मेलोनी की सबसे बड़ी चुनौती गठबंधन को बनाये रखने की होगी. यह भी उल्लेखनीय है कि मेलोनी अपने देश की पहली महिला प्रधानमंत्री होंगी. कभी सार्वजनिक रूप से मुसोलिनी की प्रशंसा करने वाली मेलोनी अब अपने को फासीवादी अतीत से अलग करने में लगी हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी सरकार के एजेंडे का स्वरूप कैसा होता है.

यूरोपीय संघ के सबसे प्रारंभिक सदस्यों में एक इटली भी है तथा इस समूह को साकार करने में उसकी अहम भूमिका रही है. इटली समेत यूरोप के कुछ अन्य देशों में धुर दक्षिण के उभार से दो मुख्य मुद्दे सामने आते हैं. पहला और सबसे गंभीर मुद्दा यूरोपीय संघ की प्रवासी नीति है. पश्चिमी एशिया के शरणार्थी पहले और अधिक संख्या में इटली ही पहुंचते हैं. रिपोर्टों की मानें, तो इस साल ब्रिटेन और यूरोपीय संघ में आने वाले शरणार्थियों की संख्या पिछले साल की तुलना में 84 प्रतिशत अधिक है.

उल्लेखनीय है कि इटली में भारतीय मूल के लोग भी अच्छी संख्या में हैं, पर उनके बारे में हम लोग बहुत अधिक चर्चा नहीं करते हैं. यूरोप की सभी धुर दक्षिणपंथी पार्टियां और कई दक्षिणपंथी पार्टियां यूरोपीय संघ की आप्रवासन नीति का जोरदार विरोध करती हैं तथा इस मुद्दे पर यूरोपीय संघ से अलग होने की धमकी भी देती हैं. इस धमकी को गंभीरता से लेना होगा क्योंकि यूरोपीय संघ से ब्रिटेन को अलग करने का जो ब्रेक्जिट अभियान चला था, उसका एक प्रमुख मुद्दा यूरोपीय संघ की प्रवासी नीति थी.

ये पार्टियां अपने-अपने देशों में आबादी के बड़े हिस्से को यह समझा पाने में कामयाब रही हैं कि दूसरे देशों से आते लोगों के रेले उनके रोजगार का नुकसान कर रहे हैं, संसाधनों का उपभोग कर रहे हैं, अपराध कर रहे हैं तथा यूरोपीय संस्कृति व जीवनशैली को तबाह कर रहे हैं. धुर दक्षिणपंथ के उभार से दूसरी प्रमुख चिंता यह बढ़ी है कि इससे यूरोपीय एकजुटता को खतरा पैदा हो सकता है. यूरोपीय संघ वैश्विक स्तर पर एक शक्तिशाली संगठन माना जाता है.

मेलोनी की पार्टी ब्रदर्स ऑफ इटली समेत सभी धुर दक्षिणपंथी पार्टियां विभिन्न मामलों को लेकर यूरोपीय संघ पर हमलावर रहती हैं. फ्रांस में पिछले राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव में जोरदार प्रदर्शन करने वाली ला पेन कहती रही हैं कि उन्हें संघ से बाहर जाना है. ब्रिटेन में 2016 में चला ब्रेक्जिट अभियान हमने देखा ही है. पोलैंड और हंगरी में सत्तारूढ़ धुर दक्षिणपंथी सरकारों का यूरोपीय संघ से लगातार टकराव चलता रहता है.

हालांकि मेलोनी और उनके गठबंधन के अन्य नेताओं का रवैया भी कमोबेश ऐसा ही रहा है, पर इटली की आर्थिक स्थिति अभी ऐसी नहीं है कि वह कोई कठोर रुख अपनाये. इसकी एक वजह यह भी है कि समूह से बाहर निकलने के बाद ब्रिटेन को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, तो अभी कोई देश अलग होने पर आमादा नहीं होगा.

मेलोनी के साथ एक उल्लेखनीय बात यह है कि यूरोप के अन्य देशों में सक्रिय धुर दक्षिणपंथी पार्टियों और संगठनों के साथ उनके अच्छे संबंध हैं. इन सबने उनकी जीत पर अपनी खुशी भी जाहिर की है. रूस-यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई स्थितियों को देखते हुए यह पहलू यूरोपीय संघ के लिए चिंताजनक हो सकता है. रूस ने भी संकेत दिया है कि वह मेलोनी के साथ संपर्क स्थापित करना चाहता है. पर बहुत जल्दी हमें किसी बड़ी हलचल की उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि फ्रांस और जर्मनी ने मेलोनी की जीत पर बहुत संयमित बयान दिया है तथा इसे जनादेश कह कर स्वीकार किया है.

अगर घरेलू चुनौतियां बढ़ती हैं, आर्थिक संकट गहरा होता है या मेलोनी की लोकप्रियता कम होती है, तब वे यूरोपीय संघ के विरुद्ध मोर्चा खोल सकती हैं. वह स्थिति अनेक समस्याओं से घिरे यूरोपीय संघ के लिए चिंताजनक हो सकती है. भारत और इटली के परस्पर संबंधों पर सरकार बदलने का कोई प्रभाव नहीं होगा और आम तौर पर आर्थिक आदान-प्रधान यूरोपीय संघ के प्रावधानों के तहत होता है. यूरोपीय संघ के साथ विशेष व्यापार समझौता करने की कोशिशें भी जारी हैं.

यूरोप के अलावा अन्य कुछ लोकतंत्रों में भी धुर दक्षिणपंथ का उभार हो रहा है तथा अनेक देशों में इससे संबद्ध पार्टियां सत्ता में भी हैं. ब्रिटेन की प्रधानमंत्री भी कुछ मामलों में उनकी तरह विचार रखती हैं. अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी पर डोनाल्ड ट्रंप की पकड़ बरकरार है. ब्राजील के राष्ट्रपति के सीनेटर पुत्र ने मेलोनी को बधाई दी है. निश्चित रूप से मेलोनी की जीत इन सबके लिए उत्साहवर्धक है. हाल में स्वीडन में दक्षिणपंथी गठबंधन जीता है, जिसमें धुर दक्षिणपंथी भी शामिल हैं.

यूरोपीय संसद में लगभग एक-तिहाई सदस्य धुर दक्षिणपंथी पार्टियों से हैं. यदि यूरोप और विश्व का संकट गहरा होता है, तो ये ताकतें मिलकर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने का प्रयास कर सकती हैं. बहरहाल, अभी इटली यूरोपीय संघ की कोविड राहत योजना का सबसे बड़ा लाभार्थी है. ऐसे में मेलोनी तुरंत कुछ ऐसा नहीं करना चाहेंगी, जिससे समीकरण बिगड़े.

अभी यह देखना होगा कि यूरोप के भीतर ऊर्जा संकट कितना गंभीर होता है और रूस-यूक्रेन युद्ध का क्या भविष्य होगा. इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द यूरोप की राजनीति चलेगी. यूरोप के भीतर यूरोपीय पहचान को लेकर एक संवेदना रही है, जिसका एक साकार रूप यूरोपीय संघ और साझा मुद्रा है. मेलोनी की जीत से इस संवेदना को भी झटका लगाया है.

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