राजदेव पांडेय, पटना. बिहार में चमकदार धूप (ब्राइट सनसाइन) की समयावधि घट रही है. वर्ष 1990 से 2019 के बीच चमकदार धूप में औसतन 36 मिनट की कमी दर्ज हुई है. वर्ष 2021 में चमकदार धूप में यह कमी बरकरार रही है. वर्ष 2005 के बाद चमकदार धूप में सर्वाधिक कमी हुई है. यह निष्कर्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र के जलवायु वैज्ञानिकों के हैं. अध्ययन केंद्र ने यह अध्ययन रबी सीजन के संदर्भ में किया है. अध्ययन सेंटर पूसा ही रहा है. यह क्षेत्र बिहार क्लाइमेटिक जोन का मध्य क्षेत्र माना जाता है.
केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के अध्ययन के मुताबिक वर्ष 1990 से 2004 तक रबी सीजन में औसतन 5.02 घंटे चमकदार धूप होती थी. 2005- 2019 तक इस दरम्यान औसतन 4.06 घंटे धूप मिल पा रही है. इसी समयावधि में धूप के दिनों में वर्षवार उतार-चढ़ाव चौंकाने वाले हैं. उदाहरण के लिए वर्ष 1990 से 1993 के बीच चमकदार धूप कम से कम साढ़े चार घंटे और अधिकतम सवा छह घंटे के बीच दर्ज रहती थी. यह दौर वर्ष 2005 तक चला. हालांकि 2005 के बाद अचानक सतह से ऊपर का परिदृश्य बदला. अधिकतम से 2008 में चमकीली धूप का उच्चतम स्तर साढ़े छह घंटे तक पहुंचा था.
अध्ययन की रिपोर्ट के मुतािबक 2011 में न्यूनतम चमकदार धूप का स्तर साढ़े तीन घंटे तक आया. वर्ष 2011 के बाद 2019 तक चमकदार धूप अधिकतम साढ़े चार घंटे के आसपास पड़ी. वहीं धूप का न्यूनतम स्तर पर तीन घंटे तक आ सिमटा है. 2019 से कमोबेश अभी तक यही स्थिति बनी हुई है. वर्ष 2014-19 के बीच केवल एक बार चमकदार धूप का उच्चतम स्तर साढ़े पांच तक तक पहुंचा.
सोलररेडियेशन की कमी से प्रकाश संस्लेषण की कमी होने से फूल और अंकुरण प्रभावित होगा. इसकी वजह से उत्पादन भी प्रभावित होने की बात की जा रही है. गेहूं के आकार पर पड़ने वाले असर का अध्ययन जारी है.
निश्चित तौर पर चमकदार धूप के समय में स्थायी गिरावट दर्ज की जा रही है. इस गिरावट की वजह प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन दोनों संभव है. इसका अध्ययन किया जा रहा है. इसकी वजह से फसलों में खास असर देख जायेगा. हमें इस दिशा गंभीरता से सोचने की जरूरत है.
-डॉ अब्दल सत्तार, जलवायु विज्ञानी, डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय,पूसा
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