गोपालगंज (गोविंद कुमार). जिला प्रशासन, नगर पर्षद और अब स्वास्थ्य महकमे के अफसरों की अनदेखी शहर के लोगों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है. मौसम की मार के साथ पनपी बीमारियों को शहर में पसरी गंदगी और जमा हुए दूषित पानी और बढ़ा रही है. आलम यह है कि हर घर में एक न एक व्यक्ति अस्पताल और पैथोलॉजी लैब के चक्कर लगा रहा है. इसमें केवल बीमारी की तकलीफ नहीं बल्कि महीनों का बजट बिगड़ गया है. जिले में अबतक पांच लोग डेंगू के शिकार हो चुके हैं. जबकि 30 से अधिक संदिग्ध मरीज मिले हैं. यहां पर्याप्त दवाएं व जांचों का इंतजाम न होने से मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. अधिकांश मरीज पटना व गोरखपुर में इलाज करा रहे हैं.
प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों के क्लीनिक पर भीड़ देखी जा सकती है. कई डॉक्टर तो ऐसे हैं जिनके यहां रात के 10 बजे बाद तक मरीज खड़े रहते हैं. इनमें कई बड़े डॉक्टर तो वे हैं जो सरकारी अस्पतालों में सेवाएं कम दे रहे हैं और देर रात तक अपने प्राइवेट क्लीनिक में मरीज देख रहे हैं.
एमपीएफएम
150 से 250 रु.
बिडाल
100 से 150 रु.
सीबीसी
150 से 250 रु.
हीमोग्लोबिन
50 से 70 रु.
एक्स-रे
150 से 250 रु
डेंगू का इलाज
1200 से 2000 रु.
ये है जिले की स्थिति
280 क्लीनिक जिले में
80 नर्सिंग होम
64 पैथोलॉजी
ये है सरकारी अस्पतालों में शुक्रवार की स्थिति
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ओपीडी-1000 से 1200 हर रोज
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बुखार के मरीज – 80 से 130
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पैथोलॉजी जांच – 280 से 350
डेंगू से पिछले साल आठ लोगों की हुई थी मौत
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रामजीत बैठा, फुलवरिया
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पूजा कुमारी, वार्ड तीन, मीगरंज
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शेषनाथ माझी, वार्ड तीन, मीगरंज
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मनु पटवा, वार्ड छह, मीरगंज
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परदेशी बीन, सांखे उचकागांव
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लड्डू कुमार, सलमेपट्टी उचकागांव
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कृष्णा चौधरी, अटवा दुर्ग हथुआ
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महंथ त्रिवेणी गिरि, कहला बरौली
यदि कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है, तो उसे 400 से 500 रुपये डॉक्टर की फीस, 800 से 1200 रु. एक्स-रे व ब्लड की जांच में तथा 500 से 1000 रु. दवाओं में खर्च करना पड़ता हैं. डॉक्टर ने यदि डेंगू की आशंका जताई, तो उसकी बाजार में जांच कराने में 1200 से 2000 रु. खर्च होते हैं. डेंगू की जांच को यदि छोड़ भी दिया जाय, तो भी मौसमी बीमारी से पीड़ित रोगी को ठीक होने के लिए इलाज में डेढ़ से दो हजार रुपये खर्च हो जाता है. एक अनुमान के मुताबिक शहर के लोग प्रतिदिन बीमारियों की जांच और दवाओं पर करीब 85 लाख रु. खर्च कर रहे हैं.
अस्पतालों में जिम्मेदारी के पद संभाल रहे डॉक्टरों को पूरी तरह राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है, ऐसे में तमाम शिकायतों के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है. शहर की जनता द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधियों के माध्यम से पोस्टिंग कराकर आये अधिकारी पूरी तरह से मनमानी पर उतारू हैं. उनकी यह मनमानी शहर के लोगों के ही मुसीबत का सबब बन रही है. वेतन के नाम पर सरकार से मोटी रकम वसूलने वाले सीनियर डॉक्टर अस्पतालों से ज्यादा अपने क्लीनिक पर मरीज देखना पसंद कर रहे हैं.
कचरा प्रबंधन के नाम पर नगर पर्षद नील है. निष्पादन की कोई व्यवस्था मौजूद नहीं है. दावा स्मार्ट शहर बनाने के लिए किया जा रहा, लेकिन शहर के अधिवक्ता नगर, राजेंद्र नगर, नोनीया टोली, पुरानी चौक, हनुमानगढ़ी, काली आदि मोहल्ले के चप्पे-चप्पे पर कचरे के ढेर है. डोर-टू डोर कचरा कलेक्शन व्यवस्था अब सिमट कर रह गई है. शहर में अनुमानित प्रतिदिन 250 कचरा निकलता है.
जब डेंगू पैर पसार चुका था तब विभाग को फॉगिंग की याद आई है. स्वास्थ्य विभाग इसके बाद भी जागा नहीं है और एक के बाद एक डेंगू पीड़ित सामने आ रहे हैं. जागरूकता के अलावा विभाग का अमला हाथ पैर नहीं चला रहा जिससे समय रहते डेंगू से बचाया जा सके. हथुआ अनुमंडल अस्पताल व सदर अस्पताल में डेंगू वार्ड ही नहीं है.
जगह-जगह पाइप से पानी निकल रहा है. कुचायकोट, बरौली व मांझा के अलावा अन्य प्रखंड के गांव में पीएचइडी की पानी साफ नहीं आने की शिकायतें मिल रही. पानी टंकी की सफाई नहीं होना गंदगी का एक बड़ा कारण है. वहीं दूसरी सात निश्चय योजना के तहत ग्रामीण इलाके में लगी पानी टंकी से भी पीने लायक पानी नहीं मिल रहा. जिसकी प्रखंड कार्यालयों में शिकायतें हर रोज पहुंच रही है.
इसको लेकर गोपालगंज के सांसद डॉ आलोक कुमार सुमन ने कहा कि सरकार चिंतित है. डेंगू मलेरिया न फैले यह हमारी भी चिंता है. डेंगू से बचाव और उनके इलाज को लेकर ढिलाई नहीं बरती जाय. यदि कहीं कमियां है, तो हमें बताएं. अफसरों से चर्चा व्यवस्था कराएंगे.
वहीं, गोपालगंज के नगर पर्षद सभापति हरेंद्र चौधरी ने कहा कि दीपावली शुरू होने से पहले शहर में लगातार फॉगिंग करायी जायेगी. बीमारियों से बचाव के लिए सुबह-शाम फॉगिंग की जायेगी. यदि किसी को शिकायत है, तो बताएं, नगर पर्षद घर-घर फॉगिंग कराने को तैयार है.