रिपोर्ट: दीपक दुआ
आधिकारिक तौर पर ऑस्कर भेजी जाने वाली फिल्म की घोषणा होते ही आरोप-प्रत्यारोप, विलाप-प्रलाप होना इतना आम हो चुका है कि काफी लोगों ने इसे गंभीरता से लेना बंद कर दिया है. बहुत सारे सिने-प्रेमी, आलोचक, अध्येता और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग इस पर बहस करते हैं. लेकिन इस साल इस बहस का मुद्दा थोड़ा हट कर अच्छी फिल्म बनाम सही फिल्म का होता नजर आ रहा है. इससे कोई भी इंकार नहीं कर रहा है कि गुजराती भाषा की फिल्म ‘छेल्लो शो’ (आखिरी शो) इस बार ऑस्कर में भेजी गयी है, वह एक बेहद उम्दा सिनेमाई कृति है. लेकिन यह फिल्म इस रेस में कितनी देर तक टिक पायेगी और आगे निकल पायेगी, इस पर कई लोगों को संदेह है.
बताते चलें कि अमेरिका की एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड सांईसेज यानी ऑस्कर अकादमी की तरफ से हर साल दिये जाने वाले पुरस्कार यूं तो वहीं की फिल्मों के लिए होते हैं, लेकिन एक पुरस्कार ‘अंतरराष्ट्रीय फीचर फिल्म’ का भी होता है, जिसके लिए अकादमी दुनियाभर से फिल्में आमंत्रित करती है. साल 2018 तक इस पुरस्कार का नाम ‘विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म‘ हुआ करता था.
भारत से ऑस्कर के लिए फिल्म चुन कर भेजने के लिए अधिकृत संस्था फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया है. इस साल फेडरेशन को पूरे भारत से जो फिल्में ऑस्कर की दौड़ में जाने के लिए मिलीं, उनमें गुजराती की ‘छेल्लो शो’ के अलावा तेलुगू की ‘आरआरआर’, हिंदी की ‘द कश्मीर फाइल्स’, तेलुगू की ‘श्याम सिंघा रॉय’, मलयालम की ‘मालायनकुंजू’, हिंदी-तमिल-अंग्रेजी में बनी ‘रॉकेट्री-द नंबी इफैक्ट’, तमिल की ‘इराविन निझल’ जैसी फिल्में शामिल थीं.
बहुत लोगों को लग रहा था कि इस बार भारत की तरफ से आधिकारिक रूप से ‘आरआरआर’ को ही भेजा जायेगा. एक प्रमुख विदेशी पत्रिका ने तो इस फिल्म को तीन-चार श्रेणियों में ऑस्कर दिये जाने की भविष्यवाणी भी कर डाली थी. खुद इस फिल्म को बनाने वाले भी अमेरिका में इसे मिले रिस्पांस को लेकर काफी उत्साह में थे.
लेकिन अब ‘छेल्लो शो’ को भेजे जाने के बाद सोशल मीडिया पर बहुत लोगों का गुस्सा फूट रहा है. नामी फिल्म समीक्षक नम्रता जोशी लिखती है कि मैं सोच भी नहीं सकती थी कि ‘आरआरआर’ को यूं अनदेखा किया जायेगा. इस फिल्म को भेज कर इस साल ऑस्कर जीतने का अच्छा मौका था. नम्रता लिखती हैं कि ऑस्कर एक रणनीतिक खेल है, जिसमें अच्छी या खराब फिल्म से ज्यादा ‘सही’ फिल्म भेजी जानी चाहिए. पद्मश्री से सम्मानित समीक्षक भावना सोमाया इस बात से सहमत न होते हुए कहती हैं कि ‘आरआरआर’ में भले ही बहुत भव्यता, शानदार वीएफएक्स आदि है, जिसे लोग खूब एन्जॉय भी कर रहे हैं, लेकिन यह मुझे ऑस्कर जाने लायक नहीं लगी, जबकि ‘छेल्लो शो’ एक रमणीय और मौलिक फिल्म है, जो हमारे तेजी से बदलते ग्रामीण भारत और उनकी आकांक्षाओं को दर्शाती है.