26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

श्रीनगर में सिनेमाघर खुलना स्वागतयोग्य

सिनेमा हमारे जीवन का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है. कई तरह से हमें बनाने में सिनेमा का योगदान होता है. कश्मीर में सिनेमा संस्कृति बढ़ेगी, तो वहां के युवाओं में भी सिनेमा उद्योग से जुड़ने के लिए और प्रोत्साहन मिलेगा.

जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में सिनेमा थियेटरों का खुलना निश्चित रूप से एक सकारात्मक समाचार है. मैंने पहले भी कहा है कि कश्मीर की एक बड़ी समस्या यह है कि वहां हीरो नहीं हैं. वहां सिनेमा हॉल और बार बंद होने से बड़ा नुकसान यह हुआ कि मिलने-जुलने की जगहें खत्म हो गयीं. आप कश्मीर के किसी भी घर में जाएं, तो लोग देर रात तक टीवी पर फिल्में और धारावाहिक देखते हुए मिल जायेंगे. नब्बे के दशक के शुरू में सिनेमाघर बंद हुए, फिर 1997 में उन्हें दुबारा खोलने की कोशिश की गयी, पर विस्फोटों के बाद थिएटर मालिकों ने ऐसी कोशिश नहीं की.

वहां का जो सबसे प्रसिद्ध सिनेमाघर था, वहां अब एक मॉल बन चुका है. बहरहाल, थिएटर खुलना अच्छी पहल है, पर वहां निर्वाचित सरकार नहीं होने तथा जनता की भागीदारी नहीं होने से इसे कितनी सफलता मिलेगी, यह कह पाना मुश्किल है. भले ही वहां के अधिकतर लोगों के मन की इच्छा हो कि सिनेमा हॉल खुलें, पर इस पहल को ऐसे देखा जायेगा कि सरकार ने जबरन यह करवाया है. जिस तरह का माहौल है, उसमें जो लोग शुरुआती दौर में सिनेमा देखने जायेंगे, उन पर सरकार का साथ देने का आरोप लग सकता है.

कश्मीर में पर्यटक बड़ी संख्या में जाते हैं. वे तो थिएटर जायेंगे, पर स्थानीय लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी, यह देखना होगा. एक अक्तूबर को मैं श्रीनगर में रहूंगा और मेरी कोशिश होगी कि इस थिएटर की शुरुआत देखूं. जहां तक पर्यटकों और स्थानीय लोगों के संबंधों की बात है, तो वह पूरी तरह से एक व्यावसायिक संबंध है. कश्मीरी मेहमाननवाजी बहुत पहले से ही प्रसिद्ध रही है. पर्यटकों के साथ पहले भी अच्छा व्यवहार होता था और अब भी बहुत अच्छा व्यवहार होता है.

गर्मियों में रिकॉर्ड संख्या में पर्यटक आये थे. कश्मीरी पंडितों पर हमलों और उनकी सुरक्षा की चिंताओं के बावजूद लोग वहां घूमने जा रहे थे. यह भी समझा जाना चाहिए कि कश्मीर में पर्यटकों के लिए कुछ निर्धारित जगहें है. कोई पर्यटक श्रीनगर के डाउनटाउन इलाके में या अन्य कुछ शहरों में नहीं जाता, तो आम जन-जीवन से उनका कोई संबंध भी नहीं होता है. पर्यटन से बहुत से लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ है. अंग्रेजी दौर से ही यह कारोबार चला आ रहा है. पर्यटन में बढ़ोतरी को कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाल होने के एक मुख्य संकेत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.

पिछले कुछ समय से कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं और इस बारे में आंदोलन भी चल रहा है. यह जो सिनेमा हॉल खुल रहे हैं, उनके मालिक भी कश्मीरी पंडित हैं. कश्मीर में दो तरह के कश्मीरी पंडित हैं. एक वे हैं, जिन्होंने नब्बे के दशक में भी घाटी नहीं छोड़ी, उनके वहीं घर हैं और वे रहते हैं. दूसरे कश्मीरी पंडित वे हैं, जिनका पुनर्वास प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में बनी रोजगार योजना के तहत हुआ है.

उनके लिए कैंप बनाये गये. पिछले दिनों जिनकी हत्या हुई, वे कैंप में ही रहते थे. सूचनाओं की मानें, तो अधिकतर कैंप खाली पड़े हुए हैं. लोग या तो जम्मू चले गये हैं या अपने परिवार को वहां भेजकर अकेले रह रहे हैं. इन तमाम चिंताओं के बावजूद सिनेमाघर का खुलना स्वागतयोग्य है. श्रीनगर के अलावा अन्य कस्बों और शहरों में भी थिएटर खुलने चाहिए. हो सकता है कि शुरू में विरोध हो या उत्साहजनक प्रतिक्रिया न मिले, लेकिन धीरे धीरे उसे कश्मीरी समाज में स्वीकार्यता मिलेगी. मैं जितना उस समाज को समझता हूं, उसके आधार पर कह सकता हूं कि फैशन को लेकर वहां बहुत उत्साह है. कई बार तो दिल्ली के फैशन से आगे की चीजें श्रीनगर में दिख जाती हैं.

कश्मीर में घूमने-फिरने का भी खूब चलन है. सप्ताहांत में अगर आप निकलें, तो पायेंगे कि लोग झील किनारे और बागों में बैठे हुए हैं. जब पर्यटन का मौसम नहीं भी रहता है, तब भी आपको ऐसे दृश्य खूब मिल जायेंगे. यह भी एक गलतफहमी है कि कश्मीर में शराब नहीं पी जाती है. शराब की दुकानें भी हैं. नब्बे के दौर से पहले वहां अच्छे बार हुआ करते थे और वहां अच्छी बातचीत हुआ करती थी. लेकिन बाद में एक अतिवादी वर्जना का माहौल बन गया.

किसी भी बड़े शहर या महानगर में जो सुविधाएं होती हैं, वे श्रीनगर में भी होनी चाहिए. इसलिए सिनेमाघर का खुलना अच्छी पहल है. कश्मीर को इन मामलों में पिछड़ा बनाये रखने की हिमायत नहीं की जा सकती है. सिनेमाघर खुलेंगे, तो साथ में दुकानें, खाने-पीने की जगहें भी बढ़ेंगी, जिनका अच्छा आर्थिक प्रभाव होगा और कुछ रोजगार के अवसर भी बनेंगे. सिनेमा हमारे जीवन का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है.

कई तरह से हमें बनाने में सिनेमा का योगदान होता है. कश्मीर में सिनेमा संस्कृति बढ़ेगी, तो वहां के युवाओं में भी सिनेमा उद्योग से जुड़ने के लिए और प्रोत्साहन मिलेगा. सौंदर्य के जो प्रतिमान माने जाते हैं, उनमें तो कश्मीरी युवा अव्वल दिखते हैं. सिनेमा उनमें एक सपना जगायेगा कि हम भी हीरो बन सकते हैं, कुछ कलात्मक कार्य कर सकते हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें