भागलपुर. बालगृह में रह रहे एक बालक ने यह उम्मीद खो दी थी कि वह माता-पिता से कभी मिल पायेगा. न उसे अपने घर का सटीक पता मालूम था और न उसका पहले आधार कार्ड ही बना था, जिससे उसकी आंखों या अंगूठे का स्कैन कर पता मालूम किया जा सके. लेकिन बालक के साथ नियमित परामर्श सत्र के आयोजन और भागलपुर जिला बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक के प्रयास के बाद बालक को माता-पिता भी मिले और अपना वह गांव भी, जिन्हें ढूंढ़ने में गूगल की मदद मिली. बालक झारखंड के लातेहार जिले का है.
झारखंड के लातेहार का रहने वाला बच्चा वर्ष 2018 में भटक कर भागलपुर पहुंच गया था. भागलपुर-दानापुर इंटरसिटी एक्सप्रेस में जीआरपी को वह मिला. उसे अपने घर का पता मालूम नहीं होने के कारण बालगृह में रखा गया. परामर्श के दौरान वह अपने घर का पता आजमगढ़, उत्तरप्रदेश बता रहा था, जहां उसके माता-पिता ईंट भट्ठा में काम करते थे. काफी प्रयास के बाद भट्ठा मालिक सरोज कुमार से जानकारी मिली कि वह लोग घुमंतू है. अब यहां काम नहीं करते हैं. कई बार बच्चे के साथ परामर्श करने पर वह अपने घर का पता सासंग बताता था. गूगल पर जब ‘सासंग’ को सर्च किया गया, तो यह जगह झारखंड का पाया गया. फिर बच्चे का आधार पंजीकरण किया गया. इसमें यह तय हो गया कि बच्चे का पहले से आधार नहीं बना है. चिकित्सकों ने उसका उम्र निर्धारण 05.03.2020 किया.
जब तमाम प्रयास असफल हो गया, तो बच्चे को सासंग के महत्वपूर्ण स्थानों मंदोर, बजार की तस्वीर मोबाइल स्क्रीन पर दिखायी गयी. इसमें उसने एक स्थान की पुष्टि की और चहकते हुए कहा कि यही उसका गांव है. इस आधार पर 16.04.2021 को जिला बाल कल्याण समिति ने उसके आवासीय सत्यापन के लिए लातेहार के बाल संरक्षण इकाई से पत्राचार किया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया. इसके बाद सासंग थाना प्रभारी से संपर्क किया गया. संबंधित मुखिया पर लगातार दबाव के बाद मुखिया ने उसके घर से संपर्क किया. बालक अपने भाई पप्पू से बात कर काफी भावुक हो गया. फिर माता-पिता को भी वीडियो कॉल कर बात करायी गयी. इसके बाद तमाम कानूनी प्रक्रिया पूरी करते हुए माता-पिता को जब बिछड़ा हुआ बेटा मिला, तो उसके आंसू नहीं रुक रहे थे.