देवघर जिले में बनाये गये दिव्यांगता प्रमाण-पत्रों में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है. इसी फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर लोग पेंशन की सुविधा ले रहे हैं. सिविल सर्जन कार्यालय में जांच के दौरान मधुपुर अनुमंडल क्षेत्र के 209 दिव्यांग प्रमाण-पत्रों की जांच में 163 प्रमाण-पत्र फर्जी पाये गये. इसके बाद सिविल सर्जन ने सभी फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट को निरस्त कर दिया है. इसी फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर 163 लाभुक अब तक करीब दो करोड़ 46 लाख 66 हजार रुपये पेंशन के रूप में ले चुके हैं.
मधुपुर अनुमंडल से अंतर्गत 209 दिव्यांगता प्रमाण-पत्रोंं में आशंका होने पर सभी प्रमाण पत्र को सिविल सर्जन कार्यालय में जांच के लिए भेजा गया था. इस दौरान जांच में फर्जीवाड़ा का खुलासा हुआ. दूसरी ओर सारठ प्रखंड से भी 134 प्रमाण-पत्रों को जांच के लिए भेजा गया है. इसकी जांच में भी कुछ प्रमाण-पत्र फर्जी मिलने के बाद उन प्रमाण पत्रों को रद्द कर दिया गया है. वहीं सारवां प्रखंड क्षेत्र से एक प्रमाण-पत्र जांच में फर्जी पाया गया है.
सिविल सर्जन कार्यालय में मधुपुर अनुमंडल के दिव्यांगता प्रमाण पत्रों की जांच के दौरान सबसे अधिक 2007 में बने 81 प्रमाण-पत्र फर्जी पाये गये हैं. वहीं 2008 में बने 30 प्रमाण-पत्र फर्जी है. इसके बाद 2009 और 2011 में बने 10-10 प्रमाण पत्र फर्जी पाये गये है. फर्जी प्रमाण पत्र बनने की प्रक्रिया 2003 से लेकर 2020 तक चली है. इतना ही नहीं पांच एेसे भी दिव्यांग-पत्र हैं, जिसमें जारी करने का तिथि भी अंकित नहीं है.
प्रमाण-पत्र के अधार पर पेंशन की स्वीकृति दी जाती हैं, ऐसे में पेंशन के लिए आवेदन करने के बाद विभाग की इसकी तुरंत जांच के लिए सिविल सर्जन कार्यालय भेज प्रमाण पत्र जांच करा लेना चाहिए, ताकि उचित लोगों पेंशन का लाभ मिल सके.
जितने भी दिव्यांग प्रमाण पर शक हुआ था जिसे जांच के लिए पत्र सिविल सर्जन भेजा गया था, फिलहल 52 लोगों का पेंशन रोक दी गयी है. सिविल सर्जन कार्यालय से दिव्यांग प्रमाण-पत्र की जांच का फाइनल रिपोर्ट अबतक नहीं मिली है. जांच रिपोर्ट मिलने के बाद जितने भी लोगों का फर्जी पाया जायेगा. उनके खिलाफ कार्रवाई करते हुए पैसे की रिकवरी की जायेगा.
दिव्यांग प्रमाण पत्र के अधार पर समाजिक सुरक्षा कोषांग की ओर से पांच साल से अधिक उम्र के दिव्यांगों को प्रति माह एक हजार रूपये का पेंशन दिया जाता है. इसमें 600 राज्य सरकार ओर से जबकि 400 स्वामी विवेकानंद प्रोत्साहन योजना के तहत केंद्र सरकार की ओर से दिया जाता है, ताकि दिव्यांग अपना जीवन यापन कर सके. लेकिन दिव्यांग प्रमाण पत्र में 40 प्रतिशत से अधिक रहने के बाद ही यह पेंशन दिया जाता है.
हैरानी की बात है कि फर्जी प्रमाण प्रत्र के आधार पर सामाजिक सुरक्षा कोषांग से आंख मूंद कर पेंशन स्वीकृत की जा रही है. फर्जी दिव्यांगता प्रमाण प्रत्र के अाधार पर पेंशन लेने का मामला सामने आने पर मधुपुर अनुमंडल से दिव्यांग पेंशन लेनेवालों का प्रमाण-पत्र जांच के लिए सिविल सर्जन कार्यालय भेजा गया था. जांच में इन प्रमाण पत्रों पर डॉक्टरों के हस्ताक्षर और स्टांप नकली मिला.
– प्रियंका श्रीवास्तव, सामाजिक सुरक्षा कोषांग के सहायक निदेशक
मधुपुर अनुमंडल से 209 दिव्यांगता प्रमाण पत्रों जांच के लिए भेजा गया था, इसमें 90 प्रतिशत प्रमाण पत्रों को फर्जी तरीके से बनाया गया था. इसका कोई रिकॉर्ड विभाग के पास नहीं है. इतना ही नहीं प्रमाण-पत्र में डॉक्टरों के हस्ताक्षर व स्टांप भी फर्जी हैं. दिव्यांगों को पेंशन की स्वीकृति देने से पहले विभाग की ओर से प्रमाण पत्र की जांच करानी चाहिए.
डाॅ युगल किशोर चौधरी, सिविल सर्जन, देवघर