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Prabhat Khabar Special: 3 साल में 4 गोल्ड मेडल जीतने वाले एथलीट कार्तिक उरांव को व्यवस्था ने बनाया मजदूर

Prabhat Khabar Special: सरकार द्वारा तय सरकारी मजदूरी दर से भी कम पैसा कार्तिक उरांव को दिया जाता है. चार साल पहले तक महीने में 600 रुपये मिलते थे. बाद में इसे बढ़ाकर 2,000 रुपये कर दिया गया. इसी से उनके परिवार का गुजारा चल रहा है.

Prabhat Khabar Special: गुमला (Gumla News) की धरती पर कई स्टेट व नेशनल खिलाड़ी पैदा हुए. इन्हीं में गुमला करमटोली निवासी 55 वर्षीय कार्तिक उरांव (Kartik Oraon) भी हैं. 1983 से 1986 के बीच उन्होंने एथलेटिक्स में चार बार गोल्ड मेडल जीतकर न केवल गुमला, बल्कि पूरे राज्य का गौरव बढ़ाया था. परंतु, सरकार के उदासीन रवैये के कारण नेशनल एथलीट कार्तिक उरांव आज मजदूरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए विवश हैं.

दैनिक मानदेय पर मजदूरी करते हैं कार्तिक उरांव

वह परमवीर अलबर्ट एक्का स्टेडियम गुमला (Paramvir Albert Ekka Stadium Gumla) में दैनिक मानदेय पर मजदूरी करते हैं. सुबह-शाम स्टेडियम की देखभाल करते हैं. इसके एवज में उन्हें महीने में 2 हजार रुपये पगार मिलती है. सरकार द्वारा तय सरकारी मजदूरी दर से भी कम पैसा दिया जाता है. चार साल पहले तक महीने में 600 रुपये मिलते थे. बाद में इसे बढ़ाकर 2,000 रुपये कर दिया गया. इसी से उनके परिवार का गुजारा चल रहा है.

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मेडल और सर्टिफिकेट जिला खेल विभाग को सौंप दिया

कार्तिक ने कई बार नौकरी के लिए प्रशासन से लेकर सरकार को पत्राचार किया, लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिला. किसी ने नौकरी दिलाने की पहल नहीं की. थक-हारकर कार्तिक ने सारे सर्टिफिकेट, मेडल व कप जिला खेल विभाग को सौंप दिया है. आज भी कार्तिक के सर्टिफिकेट, मेडल व कप डीएसओ कार्यालय में है.

1983 से 1986 तक जीते चार गोल्ड मेडल

वर्ष 1983 से लेकर 1986 तक कार्तिक उरांव की एथलेटिक्स में धाक थी. कार्तिक ने आंध्रप्रदेश में हुए नेशनल स्कूल गेम्स, पंजाब में हुए नेशनल रूरल गेम्स व दिल्ली में हुए नेशनल रूरल स्कूल गेम्स में गोल्ड मेडल जीते. जब कार्तिक ने लगातार चार वर्षों में चार गोल्ड मेडल जीता, तो उनका गुमला में भव्य स्वागत हुआ था. उस समय गुमला बिहार राज्य में आता था. बिहार राज्य के पटना से लेकर गुमला तक कार्तिक की धूम थी. गोल्ड मेडल के अलावा कार्तिक ने जिला व राज्य स्तर पर भी कई मेडल जीते हैं.

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मजदूर बनकर रह गये कार्तिक उरांव

कार्तिक का घर शहर के करमटोली मुहल्ले में है. फिलहाल वह ज्योति संघ के समीप किराये के मकान में रहते हैं. पत्नी व दो बेटी दीपा कुमारी व बबली कुमारी हैं. दोनों बेटियां सरकारी स्कूल में पढ़ रहीं हैं. वह स्टेडियम में गेट खोलने व बंद करने का काम करते हैं. इसके अलावा अन्य कई काम कराया जाता है. ग्राउंड का घास बढ़ गया, तो उसे काटने का काम भी कार्तिक को ही करना होता है. कोई खेल हुआ, तो ग्राउंड की सजावट से लेकर अतिथियों तक चाय-पानी पहुंचाने का जिम्मा भी इनके कंधे पर ही है.

कार्तिक उरांव ने कहा : पांच हजार मजदूरी हो

कार्तिक उरांव अपने बारे में बताते हुए भावुक हो जाते हैं. कहते हैं कि जब तक मैं गोल्ड मेडल जीतता रहा, लोगों ने मेरा स्वागत किया. 1987 में घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण मैं एथलेटिक्स से दूर हो गया. मैंने नौकरी के लिए आवेदन किया. किसी ने मेरी फरियाद नहीं सुनी. उस समय सरवर इमाम गुमला में डीएसओ (जिला खेल पदाधिकारी) थे. 1997 में जब स्टेडियम के समीप जिम्नाजियम बना, तो यहां मुझे काम दिया गया.

500 रुपये की मजदूरी करने लगे कार्तिक उरांव

कार्तिक उरांव तब से यहां 500 रुपये महीने पर मजदूरी करने लगे. 8 साल पहले जिम को बंद कर दिया गया, क्योंकि जिम का भवन बेकार हो गया था. जिम की जो सामग्री थी, उसे अधिकारी अपने हिसाब से इधर-उधर ले गये. स्टेडियम में कोई प्रतियोगिता होती है, तो कार्तिक उसमें मजदूर के रूप में काम करते हैं. उन्होंने मजदूरी 5 हजार रुपये करने की मांग की है.

रिपोर्ट – जगरनाथ/अंकित, गुमला

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