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2013 के टैपर-टैंट्रम की तरह विदेशी मुद्रा भंडार खाली कर रहा भारत, रिजर्व बैंक धड़ल्ले से बेच रहा डॉलर

रुपये की जोरदार गिरावट को थामने के लिए आरबीआई ने 2013 के दौरान भी विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर की बिक्री की थी. आरबीआई ने जून से सितंबर 2013 के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार से 13 अरब डॉलर की बिक्री कर दी थी. मई 2013 में फेडरल रिजर्व ने इस बात के संकेत दिए थे कि वह अपने बॉन्ड खरीद कार्यक्रम को बंद करेगा.

नई दिल्ली : घरेलू शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की बिकवाली से रुपये में आई कमजोरी को थामने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) विदेशी मुद्रा भंडार को तेजी से खाली कर रहा है. वह लगातार डॉलर को बेचने में जुटा है. मीडिया की रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि आरबीआई रुपये की गिरावट को थामने के लिए जिस प्रकार से डॉलर की बिक्री कर रहा है, उसने 2013 के टैपर-टैंट्रम की याद दिला दी है. वर्ष 2013 में भी रुपये की गिरावट को थामने के लिए आरबीआई ने विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल करते हुए डॉलर की धड़ल्ले से बिक्री की थी.

आरबीआई की ओर से बीते शुक्रवार 17 सितंबर को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, केंद्रीय बैंक ने जनवरी 2022 से जुलाई 2022 के दौरान भारत के विदेशी मुद्रा भंडार से करीब 38.8 अरब डॉलर की बिक्री की है. इसमें केवल जुलाई महीने में ही आरबीआई ने करीब 19 अरब डॉलर की बिक्री की. हालांकि, अगस्त महीने में भी रुपया जब डॉलर के मुकाबले 80 रुपये प्रति डॉलर के स्तर के नीचे पहुंच गया. आंकड़ों के अनुसार, आरबीआई का फॉरवर्ड डॉलर होल्डिंग अप्रैल के 64 अरब डॉलर के मुकाबले घटकर 22 अरब डॉलर के स्तर पर आ गया.

2013 में भी आरबीआई ने धड़ल्ले से बेची थी डॉलर

बता दें कि रुपये की जोरदार गिरावट को थामने के लिए आरबीआई ने वर्ष 2013 के दौरान भी विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर की बिक्री की थी. मीडिया की रिपोर्ट में बताया गया है कि आरबीआई ने जून से सितंबर 2013 के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार से करीब 13 अरब डॉलर की बिक्री कर दी थी. उस समय मई 2013 में अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने इस बात के संकेत दिए थे कि वह अपने बॉन्ड खरीद कार्यक्रम को बंद करेगा, जो वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण वैश्विक स्टॉक और बॉन्ड्स में अचानक बिकवाली का दौर शुरू हो गया था. इसका मतलब यह था कि अमेरिका का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व धन की आपूर्ति बंद कर देगा. जब फेडरल रिजर्व बॉन्ड खरीद कार्यक्रम को बंद करने वाला बयान दिया था, तब यह माना गया था कि अमेरिका का केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा. इसका नतीजा यह निकला कि निवेशकों ने उभरती अर्थव्यवस्थाओं से दूरी बना ली. उन्होंने शेयर बाजारों से रातोंरात अपना पैसा निकल लिया. अर्थशास्त्रियों ने निवेशकों की इस गतिविधि को टैपर-टैंट्रम नाम दिया था.

विदेशी मुद्रा भंडार में क्यों आ रही गिरावट

दरअसल, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अक्टूबर 2021 में 642 अरब डॉलर के शिखर से गिरकर 550 अरब डॉलर के दो साल के निचले स्तर पर आ गया. वास्तविक डॉलर की बिक्री के अलावा, भंडार यूरो और येन जैसी प्रमुख मुद्राओं में ग्रीनबैक और ए के मुकाबले गिरावट से भी प्रभावित होता है. वहीं, विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट और आयात में तेजी का मतलब है कि यह पूल अब लगभग नौ महीने के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त है, जबकि 16 महीने चरम पर है. टेंपर टैंट्रम के समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार से आयात करने की क्षमता सात महीने से कम हो गया था. इस महीने की शुरुआत में एक रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के बीच आयात उतार-चढ़ाव के कारण आयात क्षमता अगस्त 2018 के बाद से सबसे निचले स्तर पर आ गया है.

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रुपया बनाम यूआन

ऐसे समय में जब अधिकांश मुद्राएं डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रही हैं, आरबीआई की रुपये को बचाने का मतलब है कि स्थानीय इकाई ने व्यापारिक साथियों के मुकाबले सराहना की है. अर्थशास्त्रियों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में चीनी युआन के मुकाबले भारतीय रुपये में करीब 5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. वहीं, मुद्रास्फीति-समायोजन के मामले में तुलना करें, तो युआन के मुकाबले रुपये में 8 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है.

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