Indira Ekadashi 2022: हिंदू पंचांग के अंतर्गत प्रत्येक माह की 11वीं तीथि को एकादशी कहा जाता है.एकादशी को भगवान विष्णु को समर्पित तिथि माना जाता है.एक महीने में दो पक्ष होने के कारण दो एकादशी होती हैं, एक शुक्ल पक्ष मे तथा दूसरी कृष्ण पक्ष मे.इस प्रकार वर्ष मे कम से कम 24 एकादशी हो सकती हैं, परन्तु अधिक मास की स्थति मे यह संख्या 26 भी हो सकती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 20 सितंबर, मंगलवार को रात 09 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी.इस तिथि का समापन 21 सितंबर, बुधवार को रात 11 बजकर 34 मिनट पर होगा.
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित मानी गई है.ऐसे में इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करनी चाहिए.मान्यता है कि इस दिन व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए.ऐसा करने से पूजा का फल अतिशीघ्र प्राप्त होने की मान्यता है.
यह श्राद्ध पक्ष की एकादशी है.इसके प्रभाव से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.इस एकादशी की पूजा विधि इस प्रकार है:
1. अन्य एकादशी की तरह इस व्रत के धार्मिक कर्म भी दशमी से शुरू हो जाते हैं.दशमी के दिन घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें.
2. श्राद्ध की तर्पण विधि के पश्चात ब्राह्मण भोज कराएं और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करें.याद रखें दशमी पर सूर्यास्त के बाद भोजन न करें.
3. एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें.
4. एकादशी पर पुन: श्राद्ध विधि करें एवं ब्राह्मणों को भोजन कराएं.इसके बाद गाय, कौए और कुत्ते को भी भोज्य पदार्थ दें.
5. व्रत के अगले दिन यानि द्वादशी को पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें.इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें.
सतयुग के समय महिष्मती नगरी में इंद्रसेन नामक राजा राज्य करते थे.उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो चुका था.एक समय रात्रि में उन्हें स्वप्न में दिखाई दिया कि, उनके माता-पिता नर्क में रहकर अपार कष्ट भोग रहे हैं.नींद खुलने पर अपने पितरों की दुर्दशा से राजा बहुत चिंतित हुए.उन्होंने सोचा कि किस प्रकार पितरों को यम यातना से मुक्त किया जाए.इस बात को लेकर उन्होंने विद्वान ब्राह्मणों और मंत्रियों को बुलाकर स्वप्न की बात कही.ब्राह्मणों ने कहा कि- ‘’हे राजन यदि आप सपत्नीक इंदिरा एकादशी का व्रत करें तो आपके पितरों की मुक्ति हो जाएगी.इस दिन आप भगवान शालिग्राम की पूजा, तुलसी आदि चढ़ाकर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दें और उनका आशीर्वाद लें.इससे आपके माता-पिता स्वर्ग चले जाएंगे.’’
राजा ने ब्राह्मणों की बात मानकर सपत्नीक विधिपूर्वक इंदिरा एकादशी का व्रत किया.रात्रि में जब वे सो रहे थे, तभी भगवान ने उन्हें दर्शन देकर कहा-’’राजन तुम्हारे व्रत के प्रभाव से तुम्हारे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हुई है.’’ इसके बाद से ही इंदिरा एकादशी के व्रत की महत्ता बढ़ गई.