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साउथ इंडस्ट्री में कैंसिल कल्चर नहीं है.. साउथ स्टार दुलकर सलमान ने बॉलीवुड के बायकॉट गैंग पर कही ये बात

दुलकर सलमान जल्द ही आर बाल्की के निर्देशन वाली फिल्म चुप रिवेंज ऑफ द आर्टिस्ट में अलहदा किरदार में नज़र आनेवाले हैं. दुलकर सलमान इस किरदार को मानसिक रूप से बहुत चुनौतीपूर्ण करार देते हैं.

साउथ सुपरस्टार दुलकर सलमान जल्द ही आर बाल्की के निर्देशन वाली फिल्म चुप रिवेंज ऑफ द आर्टिस्ट में अलहदा किरदार में नज़र आनेवाले हैं. दुलकर सलमान इस किरदार को मानसिक रूप से बहुत चुनौतीपूर्ण करार देते हैं. उनकी इस फ़िल्म,कैरियर सहित कई मुद्दों पर उर्मिला कोरी की हुई खास बातचीत

चुप के ट्रेलर के बाद से ही यह चर्चा है कि इस तरह का किरदार आपने पहले कभी नहीं किया है?

मुझे पता है कि हर एक्टर हर प्रोमोशन के दौरान इस बात को बोलता है कि यह काफी अलग फ़िल्म होगी. अब तक कहीं भी ऐसी फिल्म नहीं बनी है लेकिन वाकई चुप एक अलग फ़िल्म है.विषय काफी अलग है. इस फ़िल्म में मेरे किरदार को बहुत ही रोचक बैक स्टोरीज है. जब मैंने उसे सुना तो मुझे लगा कि ऐसी भी लाइफ होती है.ऐसे भी लोग होते हैं. एक आर्टिस्ट के तौर पर जैसे ऐसे लोगों को स्क्रीन पर एक्सप्लोर करने का मौका मिलता है,तो अच्छा लगता है.

बाल्की सर ने जब आपको यह फ़िल्म आफर की तो आपका क्या रिएक्शन था और उनके साथ का अनुभव कैसा रहा?

बाल्की सर ने जब मुझे यह फ़िल्म आफर की तो मुझे अजीब लगा क्योंकि उन्होंने अब तक जिनके साथ काम किया है उनसे काफी अलग इस फ़िल्म की कास्टिंग थी. ये बात जब मैंने उनसे शेयर की तो उन्होंने मुझे कहा कि हां मुझे कुछ अलग करना है. उनकी स्क्रिप्ट इतनी कमाल की लिखी हुई थी एक बदलाव की ज़रूरत महसूस नहीं हुई.बल्कि सर बहुत ही हैप्पी इंसान हैं.हमेशा अच्छी बातें ही करते हैं.रीटेक चाहिए तो भी बोलेंगे सुपर फंटास्टिक..एक और करते हैं. उनकी शूटिंग स्टाइल ऐसी है.जो आप बहुत एन्जॉय करके काम करते हैं.

चुप में अपने किरदार के लिए क्या आपको कोई खास होमवर्क भी करना पड़ा?

बाल्की सर और मेरे बीच ज़्यादातर डिस्कशन ही हुआ.बॉय नेक्स्ट डोर का किरदार है.लुक पर या फिजिकल कोई ट्रांसफॉर्मेशन की ज़रूरत नहीं थी.सोकर उठने के साथ ही अपने शॉट के लिए रेडी हो जाता था इसलिए वैनिटी में बैठकर हेयर और मेकअप करवाने की ज़रूरत ही नहीं होती थी.

क्या आपको लगता है कि फ़िल्म और आर्टिस्ट्स को आसानी से निशाना बनाया जाता है?

मुझे लगता है कि आर्टिस्ट ही नहीं बल्कि हर फील्ड में किसी भी प्रोफेशनल्स को नीचा दिखाने के लिए कुछ ना कुछ पॉलिटिक्स होती रहती है.मैं अपनी टीम में भी पॉलिटिक्स देखता हूं .घर में भी होता है.कई बार पापा के स्टाफ और मेरे स्टाफ में एक तरह का कॉम्पिटिशन लगा रहता है. मुझे लगता है कि यह बात बहुत कॉमन है.हर कोई किसी दूसरे को गलत साबित करने में जुटा है. वैसे आलोचना ज़रूरी है.उसी से हम ग्रो करते हैं.अगर लोग मेरी आलोचना नहीं करते तो शायद मैं एक ही टाइप का सिनेमा करता था. मुझे लगता है कि मेरे क्रिटिक्स हैं,जिन्होंने मुझे खुद को पुश करने में मदद की.

अभिषेक बच्चन ने अपने शुरुआती दौर में अपने एक्टिंग पर हुई आलोचनाओं के पेपर्स कटिंग्स को अपने रूम के आईने में लगा कर रखते थे ताकि खुद को इम्प्रूव कर सकें?

हां मैंने भी ये बात पढ़ी थी. अपनी बात करूं तो निश्चिततौर पर अगर आप मेरे फ़ोन में ढूंढेंगे तो ऐसे कई स्क्रीन शॉट्स मिल जाएंगे.जिसमें मुझ पर बहुत ही ज़्यादा पर्सनल अटैक होता है.उसे मैं अपने पास रख लेता हूं और बीच-बीच में देखता हूं.(हंसते हुए)ट्विटर,इंस्टा,यूट्यूब पर जो लोग मुझे बहुत ज़्यादा पर्सनल अटैक करते हैं.उनकी आईडी का नाम भी याद रहता है.बीच में ये लोग गायब भी हो जाते है फिर आ जाते हैं तो मेरे मन में ये बात शुरू हो जाती है कि अब ये लोग शुरू होंगे.

चुप शीर्षक के साथ रिवेंज ऑफ एन आर्टिस्ट लाइन भी जुड़ी है, निजी जिंदगी में आप क्या रिवेंज लेने में यकीन करते हैं.

मैं खुद को और बेहतर बनाकर रिवेंज लेता हूं.मलयालम इंडस्ट्री के बारे में मैं ये बात बोल सकता हूं कि यहां हर एक्टर को अपने पूरे कैरियर में खुद को प्रूव करते रहना पड़ता है कि हम एक्टर हैं,हमें एक्टिंग आती है.हम परफॉर्म कर सकते हैं. मेरे पापा को भी 40 साल के बाद भी ये प्रूव करते रहना पड़ता है.

कोई ऐसी फिल्म जिसको क्रिटिक्स ने नकार दिया हो,लेकिन दर्शकों को बहुत पसंद आयी हो?

ऐसे कई उदाहरण है,लेकिन मैं कुरूप का नाम लेना चाहूंगा.रिव्यु पढ़कर मैं परेशान हो गया था,लेकिन दर्शकों ने फ़िल्म को बहुत पसंद किया था.अवार्ड भी मिले थे.

सनी देओल की फिल्में देखकर हम सभी बड़े हुए हैं,उनके साथ शूटिंग का अनुभव कैसा रहा ?

बहुत ही स्वीट हैं.ट्रेलर में एक सीन में वो चिल्लाते हैं.उस सीन के पहले तक सनी सर का किरदार थोड़ा शांत था .जैसे उनके चिल्लाने वाला सीन हुआ.मैं, श्रेया,हमारी फ़िल्म के राइटर्स हम सभी कहने लगे कि ही इज बैक.वो जब भी सेट पर आते थे सभी बहुत उत्साहित हो जाते थे.उनका एक अलग ऑरा और एनर्जी है.

आपकी पिछली दोनों हिंदी फिल्में कारवां और गुड लक जोया बॉक्स आफिस पर ज़्यादा कमाल नहीं कर पायी हैं,क्या उसके आंकड़े आपको प्रेशर देते हैं?

मैं मलयालम छोड़कर दूसरी किसी इंडस्ट्री में काम करता हूं,फिर चाहे हिंदी हो तमिल हो या फिर तेलुगू तो मुझे बॉक्स आफिस का प्रेशर नहीं रहता है. सिर्फ अपनी मलयालम फ़िल्म की रिलीज के वक़्त प्रेशर लेता हूं.कितने स्क्रीन्स में रिलीज हुई है.पहले दिन कितनी कमाई करेगी. मैं दूसरी इंडस्ट्रीज में बिना किसी प्रेशर के एक्टिंग को एन्जॉय करना चाहता हूं.

पैन इंडिया फिल्में इनदिनों सभी की पसंद बन चुकी हैं? क्या हम आपको किसी फिल्म में देखेंगे

आफर आते रहते हैं,लेकिनमुझे पैन इंडिया का कांसेप्ट ही समझ नहीं आता है.ये बात मानता हूं कि कुछ फिल्मों की कहानी सभी के लिए होती है.मेरे एक फ़िल्म है.जो एक आर्मी ऑफिसर की प्रेम कहानी है.आप उसे कहीं भी पिच कर सकते हैं लेकिन मुझे फिल्मों को पैन इंडिया कहना अजीब सा लगता है.

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हिंदी फिल्में इनदिनों बॉक्स आफिस पर ज़्यादा कमाल नहीं कर पा रही हैं,क्या वजह मानते हैं?

हर इन्डस्ट्री को अच्छे और बुरे दौर से गुजरना पड़ता है.बस आपको कुछ चीज़ें सही करनी पड़ती है.उसके बाद सबकुछ सही हो जाता है. दर्शकों की पसंद को समझना होगा.सबसे अहम यही है.

बॉलीवुड इनदिनों बायकॉट के ट्रेंड से भी जूझ रही है?

सोशल मीडिया की वजह से यह बायकॉट कल्चर हावी हुआ है. कुछ भी लिख सकते हैं इसलिए बिना किसी जिम्मेदारी से लोग कुछ भी एजेंडा शुरू कर देते हैं.साउथ में कैंसिल कल्चर नहीं है. यह पहली बार बॉलीवुड में ही सुनने को मिल रहा है.

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