पटना: राज्य में औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहित करने और बिहार से मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए हाइकोर्ट ने बियाडा के उन जमीन लीज धारियों को एक अंतिम मौका दिया है, जिनके लीज आवंटन को बियाडा ने रद्द कर दिया था. मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने उमेश सर्विस स्टेशन द्वारा दायर रिट याचिका का बुधवार को निबटारा करते हुए बियाडा की अन्य लीजधारियों की तरह ही इस शर्त के साथ लीज को पुरोज्जीवित करने का आदेश दिया है.
बता दें कि पटना हाईकोर्ट ने बियाडा के लिजधारियों को अंतिम मौका देते हुए कहा कि वे छह माह के अंदर अपने औद्योगिक इकाई का सौ फीसदी औद्योगिक और कॉमर्शियल उत्पादन शुरू कर देंगे. गौरतलब है कि यह वही रिट याचिका थी, जिसमें हाइकोर्ट ने पहली बार बियाडा के बंद पड़े तमाम औद्योगिक इकाइयों के व्यापक पुनरुद्धार के लिए, न्यायिक हस्तक्षेप करते हुए एक बड़ी पहल की थी.
हाइकोर्ट ने बियाडा की जमीन पर बने औद्योगिक इकाइयों की वस्तुस्थिति का रिपोर्ट तलब किया. बियाडा के वकील ने कोर्ट को बताया कि सूबे में बियाडा की जमीन पर सैकड़ों ऐसे लीजधारी हैं, जो लीज रद्दीकरण के विवादों को लेकर सालों से मुकदमेबाजी में ही व्यस्त हैं, जबकि इससे उनकी इकाइयों का औद्योगिक उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ता है.
उमेश सर्विस स्टेशन ने भी लीज शर्तों का उल्लंघन किया, जिससे आवंटन रद्द हुआ था. इन्हीं कारणों से राज्य में उद्योगों को बढ़ावा देने का बियाडा का उद्देश्य विफल होता जा रहा है. इस मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए, हाईकोर्ट ने बियाडा को औद्योगिकीकरण की गति को बढ़ाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर उन सभी लंबित मुकदमों का निपटारा करने के उद्देश्य से डिफॉल्टर इकाइयों का विवरण पेश करने का आदेश दिया था. बियाडा ने रिपोर्ट दाखिल की जिसमें बताया गया कि लीजहोल्ड भूमि पर 494 औद्योगिक इकाइयां गैर-कार्यात्मक पाई गई हैं, जिनमें से 151 इकाइयां उच्च न्यायालय और अन्य मंचों के समक्ष मुकदमे में हैं.
हाइकोर्ट ने उन सभी लीज धारी को एक छह सूत्री वचनबद्धता को हलफनामा के माध्यम से दाखिल करने का निर्देश दिया जो बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण (बियाडा ) के जमीन के लीज रद्दीकरण के खिलाफ आये थे. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि औद्योगिक इकाई छह महीने के भीतर पूरे जोरों पर उत्पादन शुरू करें, नहीं तो वे अदालत की अवमानना के लिए उत्तरदायी होंगे.