भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंग सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता देने की मांग करता रहा है. इस मांग को कई देशों का समर्थन भी प्राप्त है. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सऊदी अरब की यात्रा के दौरान फिर इस दावे को दोहराया है. जब सुरक्षा परिषद की संरचना तैयार हुई थी तथा पांच स्थायी सदस्यों का निर्धारण हुआ था, तब वैश्विक स्थितियां कुछ और थीं. सात दशकों से अधिक के अंतराल में दुनिया बहुत बदल चुकी है और उसके सामने प्रस्तुत चुनौतियों एवं भू-राजनीति में जटिलता सघन हुई है.
जयशंकर ने उचित ही रेखांकित किया है कि सुरक्षा परिषद की संरचना में सुधार अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तो आवश्यक है ही, ऐसा इसलिए भी किया जाना चाहिए ताकि इस संस्था की प्रासंगिकता भी बनी रहे. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और उसकी जनसंख्या 1.40 अरब के आसपास है. हमारी आर्थिक वृद्धि की गति विश्व में सर्वाधिक है. विश्व समुदाय में भारत की छवि सकारात्मक और सम्माजनक है.
विश्व के विभिन्न हिस्सों में तैनात संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भारत का विशिष्ट योगदान रहा है. सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में और संयुक्त राष्ट्र के अन्य घटकों की गतिविधियों में भारत की उल्लेखनीय भूमिका रही है. हम परमाणु शक्तिसंपन्न राष्ट्र हैं. तकनीक के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने में हम अग्रणी देशों में हैं. दशकों से भारत इस विश्व संस्था में और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अविकसित और विकासशील देशों का नेतृत्व करता रहा है.
कोरोना महामारी के दौर में टीके उपलब्ध कराने के साथ-साथ पिछड़े देशों को सस्ती दवाएं मुहैया कराने का सिलसिला कई वर्षों से जारी है. सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों का प्रतिनिधित्व भी नहीं है. अगर भारत स्थायी सदस्य बनता है, तो वह इन महादेशों के लिए भी हितकारी होगा. आज स्थिति यह है कि सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य इस मंच को अपने-अपने हितों के साधने का माध्यम बना चुके हैं.
ये देश अन्य देशों के विरुद्ध मनमाने ढंग से युद्ध की घोषणा कर देते हैं या आर्थिक प्रतिबंध लगा देते हैं. आतंकवाद और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक अपराधों की रोकथाम में भी सुरक्षा परिषद प्रभावी सिद्ध नहीं हो सका है. भारत हमेशा समावेशी और पारदर्शी प्रक्रिया का समर्थक रहा है. ऐसा नहीं हो पाने का परिणाम यह है कि आज विश्व में युद्ध व गृहयुद्ध से संबंधित लगभग 40 हिंसक संघर्ष चल रहे हैं. खाद्य व ऊर्जा का संकट सामने है.