Pitru Paksha में लाखों की संख्या में तीर्थ यात्री गया पहुंच रहे हैं. गया में 975 फीट ऊंची 676 सीढ़ियों को पार कर प्रेतशिला पहाड पर पिंडदान करने के लिए तीर्थयात्रियों की भीड़ उमड़ी है. बताया जाता है की यहां पिंडदान करने से मृत आत्माओं को मुक्ति मिलती है.जिनके पितृ अकाल मृत्यु, आत्महत्या,पानी में डूबने,आग में जलने,दुर्घटना में मृत पितरों को पिंडदान व तर्पण किया जाता है.कहा जाता है की पिंडदान प्रक्रिया के दौरान जोर से हंसने का ठहाका लगाने से मोक्ष मिलती है. पिंडदान के दौरान जोर से हंसने का मान्यता यह है की अब उनके पूर्वज इस प्रेतयोनी से मुक्त होकर विष्णु लोक में चले जाते है.
हिंदू धार्मिक ग्रंथों में वायु पुराण, गरुड़ पुराण और महाभारत जैसे कई ग्रंथों में गया का महत्व बताया गया है. ऐसा कहा जाता है कि गया में श्राद्ध कर्म और तर्पण के लिए प्राचीन समय से आते रहे हैं. पहले यहां विभिन्न नामों से 360 वेदियां थी. जहां पिंडदान व तर्पण किया जाता था. वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं. हालांकि वक्त के साथ ये वेदियां लुप्त हो गयीं. मगर लोगों का पितृों की तृप्ति के लिए गया आना जारी रहा. पिंडदान से कई दुखों से सदा के लिए मुक्ति मिल जाती है. साथ ही, इस विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है.
शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर प्रेतशिला पहाड है जहां इस वेदी कर श्राद्ध करने से किसी कारण से अकाल मृत्यु हुए पितरों को मोक्ष मिल जाता है. प्रेतशिला पहाड़ की चोटी पर एक चट्टान है जिस पर ब्रह्मा विष्णु और महेश की मूर्ति बनी है श्रद्धालुओं के द्वारा पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस चट्टान की परिक्रमा कर उस पर शब्दों से बना पिंड उड़ाया जाता है.प्रेतशिला पहाड़ की पुरानी परंपरा है वहां के पुजारी बताते हैं कि इस चट्टान के चारों तरफ 5 बार परिक्रमा कर सत्तू चढ़ाने से अकाल मृत्यु में मरे पूर्वज प्रेत योनि से मुक्त हो जाते हैं.