नीरज कुमार
अनादि काल से ही हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता रही है. धार्मिक व आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार जब तक मोक्ष नहीं मिलता आत्माएं भटकती रहती हैं. इनकी शांति व शुद्धि के लिए गयाजी में पिंडदान करने की परंपरा है. पितरों की प्रेतयोनि से मुक्ति के लिए आश्विन मास के तीसरे दिन प्रेतशिला व इसके पास स्थित ब्रह्म सरोवर पर पिंडदान का विधान है. इसी विधान को पूरा करने आयी एक महिला ‘भूतों’ की शिकार हो गई. इसके बाद उनके परिजन परेशान हो गए. प्रेतशिला पहाड़ पर पंडा समाज के लोग वहां पहुंचे और मंत्रों से उसे ठीक किया.
पंडा समाज के लोगों ने ‘भूतों’ की शिकार हुई महिला को लेकर कहा कि महिला के पूर्वज प्रेतयोनि से मुक्ति के लिए उसके शरीर पर आए . पूजा पाठ का जो विधान है उसे पूरा कर महिला को अब ठीक कर दिया गया है. महिला में अब कभी भी उसके पूर्वज की आत्मा नहीं प्रवेश करेगी. अक्सर यहां पर आने वाले लोगों में पूर्वजों का आत्मा प्रवेश करता है और अजीब हरकत करने लगते हैं. रविवार को प्रेतशिला व ब्रह्मसरोवर वेदी में पिंडदान का कर्मकांड अपने कुल पंडा के निर्देशन में संपन्न किया.
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प्रेतशिला से जुड़ी है यह दंत कथा प्रेतशिला से जुड़ी एक दंत कथा है कि ब्रह्मा जी ने सोने का पहाड़ ब्राह्मण को दान में दिया था. सोने का पहाड़ दान में देने के बाद ब्रह्मा जी ने ब्राह्मणों से शर्त रखा था कि किसी से दान लेने से यह सोने का पर्वत पत्थर का हो जायेगा. किदवंती है कि राजा भोग ने छल से पंडा को दान दे दिया.इसके बाद ये पर्वत पत्थरों का बन गया. ब्राह्मणों ने जीविका के लिए भगवान ब्रह्मा से गुहार लगायी. तब ब्रह्मा जी ने कहा इस पहाड़ पर बैठ कर मेरे पांव पर जो पिंडदान करेगा, उसके पितर को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलेगी. इस पर्वत पर तीन स्वर्ण रेखाएं हैं. कहा जाता है कि तीनों स्वर्ण रेखाओं में ब्रह्मा, विष्णु और शिव विराजमान रहेंगे. तबसे इस पर्वत का प्रेतशिला नाम पड़ा व ब्रह्माजी के पदचिह्न पर पिंडदान होने लगा.
पिंडदान के कर्मकांड से जुड़े लोगों का कहना है कि पहाड़ पर आज भी भूतों का डेरा रहता है. मध्य रात्रि में यहां प्रेत के भगवान आते हैं. यही कारण है कि यहां शाम छह बजे के बाद कोई नहीं रुकता है. कोई भी शाम छह बजे के बाद नहीं रुकता है. यहां तक कि पंडा जी भी इस पर्वत से उतर कर वापस घर चले जाते हैं.