27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

राजनीति व अर्थव्यवस्था में घुन है मुफ्तखोरी

समझना होगा कि मुफ्तखोरी की यह राजनीति देश की अर्थव्यवस्था और शासन व्यवस्था के लिए अमंगलकारी है, जिसे आम सहमति से रोकने की जरूरत है.

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से सरकारों का विकास, गरीबी निवारण, बेहतर सामाजिक सेवाओं, पेयजल, सड़क, रेल निर्माण आदि पर जोर रहा, लेकिन अब कुछ राजनीतिक दल मुफ्त बिजली, पानी, यातायात, मुफ्त टेलीविजन और यहां तक कि मंगलसूत्र तक देने के वादे करने लगे हैं. सरकार की खराब आर्थिक स्थिति और बढ़ते कर्ज के बावजूद उन वादों को पूरा करने के दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं.

दिल्ली में बड़ी संख्या में प्रवासी भी रहते हैं, जो रोजगार के लिए दूसरे राज्यों से आकर दिल्ली में बसे हुए हैं. दिल्ली में ऐसे प्रवासी मजदूरों की संख्या 20 लाख से कम नहीं है. जो मजदूर अपने परिवार को साथ लाते हैं, वे भी दयनीय अवस्था में रह रहे हैं. उनके परिवार के लिए स्कूल-कॉलेजों की जरूरत है. साथ ही, बेहतर जल-मल व्यवस्था और स्वास्थ्य सुविधाओं तथा सड़कों, पुलों आदि की आवश्यकता है, लेकिन इन कार्यों के लिए भारी खर्च की जरूरत होती है.

देखा जा रहा है कि खर्च के अभाव में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार विकास और रखरखाव के लिए भी धन नहीं जुटा पा रही है. साल 2015 में सत्ता संभालने के बाद से दिल्ली सरकार कोई नया स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, फ्लाईओवर आदि बना नहीं पायी. दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय व राजस्व शेष भारत से काफी अधिक है और लगातार बढ़ रहा है, लेकिन उस राजस्व को मुफ्त बिजली, पानी और यातायात में खर्च कर देने के कारण आवश्यक नागरिक सुविधाओं हेतु धना का अभाव होता जा रहा है.

दिल्ली का कुल राजस्व 2021-22 के लिए 53070 करोड़ रुपये अनुमानित है, जो सभी राज्यों के राजस्व का तीन प्रतिशत है. बढ़ते राजस्व के साथ-साथ दिल्ली सरकार का मुफ्त बिजली, पानी, यातायात पर खर्च भी बढ़ता गया. मुफ्त बिजली पर खर्च 2015-16 में 1639 करोड़ रुपये था, जो 2021-22 में 2968 करोड़ रुपये पहुंच गया है. वर्ष 2022-23 के लिए विद्युत विभाग ने दिल्ली सरकार से बिजली सब्सिडी हेतु 3200 करोड़ रुपये की मांग की है.

समझा जा सकता है कि दिल्ली सरकार द्वारा बिजली मुफ्त करने के नाम पर बजट पर बोझ बढ़ता जा रहा है. पानी के बिल को शून्य करने की कवायद में दिल्ली जल बोर्ड का घाटा और कर्ज दोनों बढ़ रहे हैं. केजरीवाल सरकार के पहले तीन साल में बोर्ड का घाटा 2015-16 में 220.19 करोड़ से बढ़ता हुआ 2018-19 में 663 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका था.

दिल्ली सरकार ने पिछले पांच वर्षों में जल बोर्ड को 41000 करोड़ रुपये ऋण के रूप में दिये हैं. जल बोर्ड की बदतर स्थिति का अंदाजा धीमे विकास कार्यों और लचर जल व्यवस्था से लगाया जा सकता है. विपक्षी दल जल बोर्ड में कथित भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाते रहे हैं. महिलाओं को दिल्ली परिवहन निगम की बसों में मुफ्त यात्रा एक अन्य मुफ्तखोरी वाली स्कीम है.

सरकार द्वारा लोगों को मुफ्त की स्कीमों से हजारों करोड़ रुपये का घाटा होता है. स्वाभाविक है कि सीमित संसाधनों के चलते इस मुफ्तखोरी की नीति से सरकारी राजस्व पर दबाव बनता है और कई आवश्यक खर्चों को टालना पड़ता है.

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली को 20 नये कॉलेज देने, फ्री वाई-फाई उपलब्ध कराने, 20000 सार्वजनिक टॉयलेट बनवाने, महिला सुरक्षा फोर्स बनाने, तीन लाख सीसीटीवी कैमरे लगाने, स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार, आठ लाख नौकरियों के सृजन, दिल्ली कौशल मिशन द्वारा हर साल एक लाख युवकों को कौशल प्रशिक्षण समेत 69 ऐसे वादे किये थे, जो या तो वादे रह गये या जिनमें प्रगति अत्यंत धीमी रही. इन वादों को पूरा न कर पाने के पीछे मुख्य कारण धनाभाव है.

गौरतलब है कि इस सरकार से पहले 1999-2000 और 2014-15 के बीच 15 सालों में पूंजीगत व्यय 510.5 करोड़ रुपये से बढ़ कर 7430 करोड़ रुपये हो गया (प्रति वर्ष वृद्धि 19.6 प्रतिशत रही), जो आप सरकार के पहले पांच साल में 7430 करोड़ रुपये से बढ़ कर मुश्किल से 11549 करोड़ रुपये ही पहुंची (वार्षिक वृद्धि मात्र 9.2 प्रतिशत रह गयी). यदि कहा जाए कि सरकारी खजाने से पैसा देकर बिजली ‘गरीबों’ के लिए मुफ्त या कम कीमत पर उपलब्ध करायी जा रही है, तो यह सही नहीं होगा.

वर्ष 2021-22 में दिल्ली में जहां चालू कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय 4,01,982 रुपये प्रति वर्ष है, वहां 54.5 लाख बिजली उपभोक्ताओं में से 43.2 लाख लोगों को या तो मुफ्त या आधी कीमतों पर बिजली दी जा रही है. इससे नागरिक सुविधाएं प्रभावित हो रही हैं और कर्ज बढ़ रहा है, तो उसे औचित्यपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता. यही नहीं, 5.3 लाख घरों को प्रतिमाह 20 हजार लीटर पानी भी मुफ्त दिया जा रहा है.

दिल्ली में मुफ्त बिजली, पानी के लालच से राजनीतिक लाभ उठाने वाली आम आदमी पार्टी ने अब दूसरे राज्यों में भी ऐसा लालच देना शुरू किया है. समझना होगा कि मुफ्तखोरी की यह राजनीति देश की अर्थव्यवस्था और शासन व्यवस्था के लिए अमंगलकारी है, जिसे आम सहमति से रोकने की जरूरत है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें