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मांय माटी: झारखंड के मसीहा कहे जाने वाले ईश्वरी प्रसाद का जानें संघर्ष

झारखंडी समाज के प्रति समर्पित, मजदूरों के मसीहा एवं सांस्कृतिक विरासत के पुरोधा, अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत लाल झंडे के सिपाही के रूप में करने वाले बाबा ईश्वरी प्रसाद ने कभी आदिवासी-मूलवासियों को अलग नहीं समझा. दोनों ही समुदाय को साथ लेकर चले.

My Mati: झारखंडी समाज के प्रति समर्पित, मजदूरों के मसीहा एवं सांस्कृतिक विरासत के पुरोधा, अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत लाल झंडे के सिपाही के रूप में करने वाले बाबा ईश्वरी प्रसाद ने कभी आदिवासी-मूलवासियों को अलग नहीं समझा. दोनों ही समुदाय को साथ लेकर चले. झारखंड की अलग अस्मिता व पहचान की जो लड़ाई आदिवासी महासभा के नेतृत्व में छेड़ी गई थी, उसे झारखंड आंदोलन के चरम में बौद्धिक आधार देने का काम डॉ. रामदयाल मुंडा, डॉ बीपी केसरी व ईश्वरी प्रसाद ने ही किया था.

झारखंड के थे मसीहा

देशज अधिकार व अस्मिता आंदोलन के बौद्धिक-सांस्कृतिक प्रणेता, झारखंड आंदोलन सांस्कृतिक वाहिनी के अगुवा रहे पद्मश्री डॉ रामदयाल मुंडा, डॉ विशेश्वर प्रसाद केसरी व ईश्वरी प्रसाद जी की तिकड़ी किसी से छुपी नहीं. इतना ही नहीं कमोबेश झारखंड आंदोलन के वक्त जितने भी संगठन सक्रिय थे, उन्हें ईश्वरी जी का सानिध्य प्राप्त था. मजदूरों के बीच झुग्गी झोपड़ियों में रहकर कामगार मजदूरों के लिए निरंतर उनके हक अधिकार के लिए संघर्षरत रहे. वास्तव में वे झारखंड के मसीहा थे. उन्हें झारखंड की आबो हवा, वन, पहाड़, भाषा-साहित्य-संस्कृति से बेहद गहरा लगाव था. इसी के मद्देनजर बाबा ईश्वरी ने लेखकों, साहित्यकारों को एक मंच प्रदान किया.

‘डहर’ पत्रिका का प्रकाशन

झारखंड की सांस्कृतिक विरासत को आम जन तक पहुंचाने के लिए ‘छोटानागपुर सांस्कृतिक संघ’ का गठन कर, झारखंड के लेखकों, साहित्यकारों व कलाकारों को एकजुट कर गांव-गांव और टोला में जागरूकता कार्यक्रम करते हुए अपनी संस्कृति और सभ्यता को आम जनमानस में जिंदा रखने के लिए लगातार लेखक की भूमिका में भी अपने अंतिम समय तक कार्य करते रहे. झारखंडी भाषाओं और यहां की साहित्य-संस्कृति के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए ‘डहर’ पत्रिका का प्रकाशन भी किया. इसमें झारखंड की संपर्क भाषा नागपुरी के साथ-साथ अन्य झारखंडी भाषाओं में भी लेख, गीत कविता आदि का प्रकाशन कर समाज को एक सूत्र में बांधने का काम किया. इनके अथक प्रयास से ही झारखंड के कलाकारों को सम्मानित भी किया गया. बहरहाल, हाल के दिनों में बाबा ईश्वरी गुमनाम रहकर भी निश्छल भाव से झारखंड नवनिर्माण की जद्दोजहद के लिए सतत विचारशील बने रहें. अंतिम हुल जोहार.

डॉ. बीरेंद्र कुमार महतो

असिस्टेंट प्रोफेसर, यूनिवर्सिटी डिपार्टमेंट ऑफ नागपुरी, रांची यूनिवर्सिटी

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