मुजफ्फरपुर. पितरों के तर्पण के लिए पितृपक्ष 10 सितंबर से शुरू होगा. यह 25 सितंबर तक चलेगा. पहले दिन अगस्त्य ऋषि का तर्पण होगा. प्रतिपदा का श्राद्ध 11 सितंबर से शुरू होगा. शास्त्रों में मनुष्यों के लिए देव, ऋषि और पितृ ऋण बताये गये हैं. मृत पिता को श्रद्धापूर्वक जो प्रिय भोजन दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है. पितरों के लिए श्रद्धा से किये गये मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं.
पुरोहितों का कहना है कि श्राद्ध करने से कुल में वीर, निरोगी, शतायु एवं श्रेय प्राप्त करने वाली संतानें उत्पन्न होती हैं, इसलिए सभी के लिए श्राद्ध करना आवश्यक माना गया है. जिस तिथि को माता-पिता की मृत्यु हुई हो, उस तिथि को श्राद्ध कर्म करने के सिवाय आश्विन कृष्ण (महालय) पक्ष में भी उसी तिथि को श्राद्ध-तर्पण करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं. पुत्र को चाहिए कि वे माता-पिता की मरण तिथि को मध्याह्न काल स्नान कर श्राद्ध करें. किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गये हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो अमावस्या तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है. पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र धारण करें. श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें. सुबह व सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है.
-
पूर्णिमा, अगस्त ऋषि तर्पण- 10 सितंबर
-
प्रतिपदा श्राद्ध – 11 सितंबर
-
द्वितीया श्राद्ध – 12 सितंबर
-
तृतीया श्राद्ध – 13 सितंबर
-
चतुर्थी श्राद्ध – 14 सितंबर
-
पंचमी श्राद्ध – 15 सितंबर
-
षष्ठी श्राद्ध – 16 सितंबर
-
सप्तमी श्राद्ध – 17 सितंबर
-
अष्टमी श्राद्ध- 18 सितंबर
-
नवमी श्राद्ध – 19 सितंबर
-
दशमी श्राद्ध – 20 सितंबर
-
एकादशी श्राद्ध – 21 सितंबर
-
द्वादशी श्राद्ध- 22 सितंबर
-
त्रयोदशी श्राद्ध – 23 सितंबर
-
चतुर्दशी श्राद्ध- 24 सितंबर
-
अमावस्या श्राद्ध- 25 सितंबर