रांची: झारखंड हाइकोर्ट ने झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली-2021 को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ में लगभग तीन घंटे तक चली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुनील कुमार ने बहस की. उन्होंने कहा कि जेएसएससी स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन नियमावली संवैधानिक रूप से सही है.
इसे झारखंड के लोगों के हित को देखते हुए बनाया गया है. सरकार को नियमावली बनाने का पूर्ण अधिकार है. राज्य सरकार की बहस अधूरी रही. मामले की अगली सुनवाई सात सितंबर को होगी. प्रार्थियों की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार व अधिवक्ता कुमार हर्ष ने सरकार की ओर से बहस पूरी करने के लिए लंबा समय मांगे जाने का विरोध किया. उन्होंने खंडपीठ को बताया कि सरकार को अपनी बात पूरी करने के लिए लंबा समय नहीं दिया जा सकता है.
ज्ञात हो कि इससे पहले झारखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ में प्रार्थी की ओर से बहस जारी है. राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुनील कुमार व अधिवक्ता पीयूष चित्रेश तथा जेएसएससी की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरवाल हैं. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी प्रार्थी रमेश हांसदा, अभिषेक कुमार दुबे, विकास कुमार चौबे, रश्मि कुमारी व अन्य की ओर से अलग-अलग याचिका दायर कर जेएसएससी नियमावली को चुनौती दी गयी है. प्रार्थियों ने नियमावली को असंवैधानिक बताते हुए निरस्त करने की मांग की है.
इससे पूर्व झारखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ में प्रार्थियों की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, अधिवक्ता कुमार हर्ष ने पैरवी की. श्री कुमार ने पक्ष रखते हुए खंडपीठ को बताया था कि जेएसएससी नियमावली से सामान्य कोटि के विद्यार्थियों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है. उनका कहना है कि ये संविधान की आर्टिकल-14 व 16 का उल्लंघन है.
नियमावली में यह शर्त लगाना असंवैधानिक है कि राज्य के संस्थान से ही 10वीं व इंटर की परीक्षा पास करनेवाले छात्र नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल होंगे. यह शर्त सिर्फ सामान्य श्रेणी पर ही लागू है, जबकि आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों के मामले में इस शर्त को शिथिल कर दिया गया है. इतना ही नहीं भाषा के पेपर से हिंदी व अंग्रेजी को हटा दिया गया है, जबकि उर्दू, बांग्ला व ओडिया भाषा को शामिल किया गया है.