Teja Dashami 2022 Date: भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को तेजा दशमी मनाई जाती है. तेजा दशमी मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस पर्व को आस्था, आस्था और आस्था का प्रतीक कहा जाता है. इस बार यह पर्व सोमवार और मंगलवार (5, 6 सितंबर) को मनाया जा रहा है. तेजादशमी की बात करें तो इस पर्व में भाद्रपद शुक्ल नवमी की पूरी रात मनाई जाती है. इसके बाद दूसरे दिन यानि दसवें दिन वीर तेजाजी के मंदिर वाले स्थानों पर मेले लगाने की परंपरा है. इस दिन लोग मेले और तेजा जी महाराज की सवारी के रूप में जुलूस निकालते नजर आते हैं. जानें तेजा दशमी की कहानी. इससे संबंधित अन्य डिटेल्स.
किंवदंतियों और मान्यताओं के साथ इतिहास पर नजर डालें तो वीर तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1130 माघ शुक्ल चतुर्दशी (गुरुवार 29 जनवरी 1074) को खरनाल में हुआ था. वह नागौर जिले के खरनाल के मुखिया कुंवर तहरजी के पुत्र थे. माता का नाम राम कंवर था. किंवदंतियों में अब तक दर्ज जानकारी के अनुसार तेजाजी का जन्म माघ सुदी चतुर्दशी को 1130 ई. में हुआ था, जबकि ऐसा नहीं है. तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1243 के माघ सुदी चौदस को हुआ था.
वहीं, तेजाजी की वीर गति का वर्ष 1160 दंतकथाओं में दर्ज है. जबकि सच्चाई इसके उलट है. तेजाजी को वीर गति 1292 में अजमेर में पनेर के पास सुरसुरा में मिली थी. हालांकि तिथि भादवा की दसवीं ही है. कहा जाता है कि वीर तेजाजी का जन्म भगवान शिव की पूजा और नाग देवता की कृपा से ही हुआ था. जाट परिवार में जन्में तेजाजी को जाति व्यवस्था का विरोधी भी कहा जाता है.
कहा जाता है कि वीर तेजाजी का विवाह बचपन में ही हो गया था. उनका विवाह पनेर गांव के रायमलजी की पुत्री पेमल से हुआ था. पेमल के मामा इस रिश्ते के खिलाफ थे. उसने तेजा के पिता तहरजी पर ईर्ष्या से हमला किया. तहरजी को बचाने के लिए तलवार का सहारा लेना पड़ा, जिससे पेमल के मामा की मौत हो गई. इससे पेमल की मां आहत हुई. इस रिश्ते की बात तेजाजी से छुपाई गई थी.
बहुत बाद में जब तेजाजी को अपनी पत्नी के बारे में पता चला तो वे अपनी पत्नी को लेने ससुराल गए. वहां ससुराल में उसकी अवज्ञा की गई, जिससे वह नाराज हो गये. जब तेजाजी वापस लौटने लगे तो पेमल के दोस्त लच्छा गुजरी में उनकी पत्नी से मुलाकात हुई, लेकिन उसी रात मीना लुटेरों ने लच्छा की गायों को चुरा लिया. वीर तेजाजी गायों को छुड़ाने की कोशिश करने लगे. रास्ते में आग में जलता हुआ एक सांप मिला, जिसे तेजाजी ने बचा लिया, लेकिन सांप अपने जोड़े के अलग होने से दुखी हो गया. वह डंक मारने के लिए चिल्लाया. वीर तेजाजी ने वादा किया कि पहले मुझे लच्छा की गायों को छुड़ाने दो और फिर मुझे डंक मारना. मीना लुटेरों से लड़ाई में तेजाजी गंभीर रूप से घायल हो गए थे. घायल अवस्था में भी वह सांप के बिल के पास आ गये.
ऐसा माना जाता है कि तेजाजी को पूरे शरीर में चोट लगने के कारण सांप ने उनकी जीभ पर डंक मारा था. भाद्रपद शुक्ल (10) दशमी संवत 1160 (28 अगस्त 1103) को वे निर्वाण बने. यह देखकर पेमल सती हो गई. तभी से तेजाजी को राजस्थान के लोकरंग में मान्यता देने की बात चल रही है. गायों की रक्षा के कारण लोग उन्हें ग्राम देवता के रूप में पूजते हैं. सर्प ने उसे वरदान भी दिया. उस दिन से लोगों ने तेजादशमी पर्व मनाने की परंपरा को अपनाया.
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किवदंतियों पर नजर डालें तो तेजाजी के चार-पांच भाइयों का जिक्र मिलता है. जबकि वंशावली के अनुसार तेजाजी तेहरजी के केवल एक पुत्र और तीन पुत्रियां कल्याणी, बुंगरी और राजल थीं. तेजाजी के पिता तहरजी के चार भाई थे जिनका नाम कहाडजी, कल्याणजी, देवासी, दोसोजी था. जिसमें ढोलिया गोत्र को देवासी की संतानों से आगे बताया गया है. ढोलिया वंश की उत्पत्ति खरनाल से ही हुई थी. इसके बाद वी.एस. 1650 में कुछ लोग गांव छोड़कर अन्य जगहों पर बस गए, जिससे ढोलिया जाति पूरे राज्य में फैल गई.
नोट: उपरोक्त लेख केवल मान्यताओं, किवदंतियों के आधार पर है. प्रभात खबर.कॉम इन जानकारियों की पुष्टी नहीं करता है.