Ranchi news: शिव शिष्य परिवार के संस्थापक साहब हरिंद्रानंद जी का अंतिम संस्कार सीठीयो (धुर्वा) मुक्तिधाम में होगा. सोमवार को सेक्टर-2 स्थित आवास से हरिंद्रानंद जी का अंतिम यात्रा निकाली गई. इस दौरान अंतिम दर्शन के लिए हजारों की संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी. वहीं, उनके बड़े बेटे अर्चित आनंद ने हाथ जोड़ कर लोगों से अपील कि की शांतिपूर्ण तरीके से श्रद्धांजलि अर्पित करें. दरअसल, करोड़ों परिवार तक शिवगुरु की महिमा पहुंचाने वाले और शिव शिष्य परिवार के जनक स्वामी हरिंद्रानंद जी अब नहीं रहे. रविवार के अहले सुबह तीन बजे उनका निधन हुआ. बीते कुछ दिनों से वे ह्दय रोग से पीड़ित थे.
स्वामी हरिंद्रानंद जी बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे हैं. बचपन से आध्यात्म की ओर रुचि होने की वजह से उन्होंने अवकाश ग्रहण के बाद से पूरी तरह से धर्म-अध्यात्म को समर्पित हो गए थे. प्राप्त जानकारी के अनुसार उनके हार्ट में ब्लॉकेज पाया गया था. एंजियोग्राफी के लिए उन्हें बाहर ले जाने की तैयारी चल रही थी, लेकिन इसके पूर्व ही उनका निधन हो गया.
सीवान जिले के रहने वाले थे स्वामी हरिंद्रानंद
शिव शिष्य परिवार के जनक स्वामी हरिंद्रानंद जी मूल रूप से सीवान जिले के रहने वाले थे. उनका जन्म 1948 में कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को हुआ था. वे तत्कालिन छपरा जिले (अब सीवान) से पांच किलोमीटर दूर स्थित अमलोरी गांव के रहने वाले थे. उन्होंने शिव गुरु का संदेश करोड़ों लोगों तक पहुंचाया. बताते चलें कि उनके बड़े बेटे अर्चित आनंद झारखंड में तलवारबाजी संघ के अध्यक्ष हैं.
परिवार में दो पुत्र व पुत्री
परिवार में उनके दो पुत्र अर्चित आनंद व अभिनव आनंद हैं. बड़े बेटे सामाजिक कार्यकर्ता व विभिन्न खेल संघ से जुड़े हैं. छोटे पुत्र अभिनव आनंद व्यवसायी हैं. एक बेटी अनुनिता (लवली दीदी) के अलावा भरा पूरा परिवार है. पिता के साथ अनुनिता कई शिव चर्चा में हिस्सा ले चुकी हैं. वर्ष 2005 में साहब हरींद्रानंद की पत्नी दीदी नीलम आनंद का निधन हो गया था.
कई राज्यों से पहुंचे भक्त, किये दर्शन
शिव गुरु हरिंद्रानंद के निधन की खबर सुनते ही राजधानी समेत झारखंड व बिहार के विभिन्न जिलों समेत यूपी व बंगाल से हजारों भक्त रांची पहुंचे थे. कई भक्त उनकी बीमारी की खबर सुन चार दिन पहले ही पहुंच चुके थे. रविवार को उनके अंतिम दर्शन के लिए युवाओं समेत महिलाओं और बुजुर्गों का तांता लगा रहा. कई भक्त उनके आवास के बाहर नम आंखों के साथ दिखे. हाथों में फूलों का गुलदस्ता लेकर अंतिम दर्शन के लिए शिष्य खड़े दिखे. उनका कहना था कि उनके लिए माता-पिता से बढ़ कर शिव गुरु थे. उन्होंने सच्ची राह पर चलना सिखाया है.