मुजफ्फरपुर. सुविधा और संसाधन नहीं होने के कारण शहर के रंगकर्मी अब दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं. फिल्मी कलाकारों की तरह अब इनका अनुबंध हो रहा है. नाट्य संस्थान इन्हें निर्धारित राशि पर अपने ग्रुप में शामिल कर रहा है. पिछले दिनों शहर के तीन कलाकारों ने विभिन्न नाट्य संस्थाओं से जुड़कर देश के कई राज्यों में नाटकों का मंचन किया है. फिल्मी चकाचौंध से अलग थियेटर के प्रति समर्पित इन कलाकारों ने भोपाल, देहरादून, ऋषिकेश व केरल में अपनी अभिनय प्रतिभा दिखायी है.
शहर के रहने वाले फिरोज इन दिनों भोपाल के देशज रंग मंडप से जुड़ कर नाटकों की प्रस्तुति कर रहे हैं. शहर में रंगकर्म का माहौल नहीं होने के कारण यहां के सुबोध कुमार भी दिल्ली के आभास कल्चर सोसाइटी के साथ नाटकों का मंचन कर रहे हैं. पहले इन्होंने शहर में रंगकर्म को संवारने की कोशिश की थी, लेकिन थियेटर नहीं होने और संसाधन की कमी के कारण इन्हें दूसरे नाट्य संस्थान से जुड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा
शहर में काम करने वाली दो संस्थाओं को केंद्र सरकार ने रिपेटरी यानी उनके नाट्य ग्रुप को मान्यता दी है. कलाकारों और निर्देशक को महीने के हिसाब से ग्रांट निर्धारित किया गया है, लेकिन रिपेटरी बनने के बाद भी सरकार की ओर से राशि नहीं मिल रही है. नतीजा संस्थान की ओर से सांस्कृतिक गतिविधि नहीं हो पा रही है. कुछ संस्थान अपने खर्चे पर नाटक करते हैं, लेकिन कलाकरों को इसके एवज में राशि प्राप्त नहीं होती. आकृति रंग संस्थान के निर्देशक सुनील फेकानिया कहते हैं कि शहर में थियेटर हो और सरकारी सुविधा मिले तो यहां के कलाकारों को भटकना नहीं पड़ेगा. रंगकर्म का माहौल बन जाए तो कलाकारों की अच्छी कमाई हो जायेगी