भागलपुर. बाढ़ केवल पानी नहीं लाता. यह अपने साथ तमाम दुख-विषाद लेकर भी आता है. इस दर्द को सहना काफी कष्टकर है. इस बार भी भागलपुर में ऐसी बाढ़ पीड़ित महिलाएं हैं, जो नयी दुनिया बसाने का सपना लिये खुले आसमान के नीचे सभी कष्ट सहकर अपने गर्भ में पल रहे बच्चे और नौनिहालों को संभाल रही हैं. जो बच्चे धरती पर आ गये, उनके लिए भी और जो आने वाले मेहमान हैं, उनके लिए भी कई मां दुख-दर्द सह कर जिंदगी से जद्दोजहद कर रही हैं. गंगा का जलस्तर बढ़ने से आयी बाढ़ ने कई गांवों को खाली करने पर मजबूर कर दिया है. लोग ऊंचे स्थानों पर शरण लेकर इस विपरीत समय के गुजर जाने की आस लगाये बैठे हैं.
यह दौर खास कर उन महिलाओं के लिए गंभीर संकट लेकर आया है, जो गर्भवती हैं या फिर जिनकी गोद में नवजात पल रहे हैं. गांवों में उनकी सहायता पड़ोसी भी कर दिया करते थे. घर-आंगन में खेलते दूसरे के बच्चे भी मदद के हाथ बंटा देते थे, लेकिन बाढ़ आने से गांव से विस्थापित होने के बाद पड़ोसी खुद परेशान हैं. ऐसे पीड़ितों से तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के टिल्हा कोठी परिसर में जब बात की गयी, तो वे अपनी समस्या बताते नहीं थक रहे थे. टिल्हा कोठी के ऊपर व नीचे नाथनगर के दियारा क्षेत्र के गांव दिलदारपुर बिंदटोली के लोग रह रहे हैं. कोठी के ऊपर गर्भवती चाको देवी ने अपना ठिकाना बनाया है. यहां प्रशासन ने पानी के लिए टैंकर की व्यवस्था की है. लेकिन जब टैंकर खाली हो जाता है और चाको देवी के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो जाती है.
भागलपुर शहर में बाढ़ प्रभावित अलग अलग गांवों की तीन बस्तियां बस चुकी हैं. इन बस्तियों में लोग प्लास्टिक के छोटे-छोटे टेंट बना कर रह रहे हैं. हवाई अड्डा, टीएनबी कॉलेजिएट और टिल्हा कोठी अभी बाढ़ पीड़ितों की शरणस्थलियां हैं. इन लोगों की समस्या तब और बढ़ जाती है, जब बारिश होती है. इन्हें खुले में भोजन पकानेकी मजबूरी है. ऐसे में भोजन पकानेके समय बारिश हो जाए, तो काम रोकना पड़ता है.
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बाढ़ पीड़ितों का गुजर रहा वक्त घोर संकट का है. न सोनेकी व्यवस्था, न नहानेकी सुविधा और न भोजन की सही व्यवस्था. नींद आने पर कहीं पर भी लेट जानेकी मजबूरी है. पीनेसे पानी बचता नहीं है, नहायेंगे क्या. रुखा- सूखा जो भी मिलता है, गंदगी की परवाह किये बगैर कहीं पर भी बैठ कर भोजन कर लेना है. इतना ही नहीं गांव से अपनेसाथ लाये गये गाय, बकरी के संग रहने की मजबूरी है.