सुमन बाजपेयी, टिप्पणीकार
हजार वर्ष पहले मांडू हिंदुस्तान का बहुत बड़ा शहर हुआ करता था, लेकिन अब 15-20 हजार लोग ही मांडू किले में रहते हैं, जो एक पूरा परिसर है. मांडू में प्रवेश के लिए 12 दरवाजे हैं. दिल्ली दरवाजा मुख्य है, पर भंगी दरवाजे से ही प्रवेश होता है. इसके अलावा आलमगीर दरवाजा, कमानी दरवाजा, गाड़ी दरवाजा, तारापुर दरवाजा, जहांगीर दरवाजा आदि भी बनाये गये थे, जिनके अवशेष अब भी हैं. बाज बहादुर और रानी रूपमती की प्रेम कहानी से ही हमेशा मांडू का नाम जोड़ा जाता रहा है, लेकिन जब महेश्वर का किला और घाटों को देखने के बाद मांडू की धरती पर कदम रखते हैं, तो प्रतीत होता है कि यहां के हर पत्थर से एक इतिहास जुड़ा है.
क्या है पुराना नाम
मांडू का पुराना नाम मांडव है, जो मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित एक प्राचीन गांव है. मालवा के पठार पर स्थित मांडू की दक्षिण दिशा में निमाड़ क्षेत्र का विस्तार है. दसवीं सदी में परमार वंश के शासकों ने सबसे पहले मांडू को अपनी राजधानी बनाया था. ‘सिटी ऑफ जॉय’ के नाम से प्रसिद्ध मांडू 1300 के आखिर से 1400 तक दिलावर खां गोरी के कब्जे में रहा. उसने मांडू का नाम बदलकर शादियाबाद रखा, जिसका अर्थ ‘आनंद की नगरी’ होता है.
मांडू किले को एक दिन में देख पाना मुमकिन नहीं है. चलते-चलते पांव थक जाते हैं, पर देखने की चाह खत्म नहीं होती. इस किले में एक पूरी दुनिया ही बसी हुई है. यहां का हिंडोला महल चार किलोमीटर के परिसर में फैला है, जिसे घूमने में करीब दो घंटे लगते हैं. इसका निर्माण होशांग शाह के शासन काल में किया गया था. हिंडोला महल का उपयोग मुख्य रूप से दरबार के रूप में किया जाता था. मालवा शैली की वास्तुकला वाले इस महल में बाहरी दीवारें 77 डिग्री के कोण पर झुकी हुई हैं, जिसके कारण इसे हिंडोला महल कहा जाता है. इसकी छत नहीं है. जब रानियां झूला झूलती थीं, तो अस्थायी रूप से इसे ढक दिया जाता था. इस महल के दाई तरफ चंपा बावड़ी और हमाम खाना महल वास्तुकला के बेजोड़ दर्शनीय स्थल हैं. रानियों के स्नान के लिए बनायी गयी चंपा बावड़ी में कई गुप्त रास्ते बनाये गये थे ताकि हमला होने पर रानियां सुरक्षित बाहर निकल सकें.
जामी मस्जिद की विशालता दंग कर देती है. यह एकमात्र मस्जिद है, जिसमें 100 प्रतिशत हिंदू वास्तुशिल्प है. मस्जिद में बड़ा सा आंगन, कई खंभे और विशाल प्रवेश द्वार बने हुए हैं. इस इमारत की सुंदरता व शांत वातावरण वहीं रुक जाने को प्रेरित करता है. जहाज महल को देखते हुए मन में यही ख्याल आता है कि जब यहां राजा रहा करते होंगे, तो कैसा समां होगा. दो जलाशयों के बीच बना दो मंजिला आयताकार महल बरसात में पानी पर तैरते एक जहाज की तरह नजर आता है. अपने हरम के लिए ग्यासुद्दीन खिलजी ने इसका निर्माण करवाया था. महल की छतों पर बरसाती जल निकासी का उत्कृष्ट उदाहरण देखने को मिलता है.
होशांग शाह के मकबरे के बगल में एक धर्मशाला है, जो एक लंबे गलियारे के रूप में है. उसके खंभों पर बनी नक्काशी से यही लग रहा था कि शायद वहां धर्मशाला रही होगी. होशांग शाह का मकबरा संगमरमर की पहली संरचना है और यह अफगान स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है. इसकी अविश्वसनीय गुंबद और मेहराबों को ताजमहल के वास्तुशिल्प में भी ढाला गया है. इसके द्वार पर बने नीले तामचीनी सितारे और दक्षिण द्वार पर कमल के फूल इसकी संरचना को और आकर्षक बनाते हैं.
बाज बहादुर महल में प्रवेश करते ही एक अजीब सनसनी सी महसूस हुई. संगीत के शौकीन शासक बाज बहादुर ने रेवा कुंड के सामने पहाड़ी की ढलान पर इस महल को बनवाया था, जो प्रेम के गीत गुनगुनाता प्रतीत हुआ. चौकोर आकार में बने इस महल के अंदर एक सुंदर बगीचा बना है. इस महल में इस्लामिक शैली के बजाय राजस्थानी शैली देखने को मिलती है. इमारत के अंदर उत्तरी भाग में पठानी शैली में संगमरमर से बना एक झरोखा है, जिसमें खड़े होने पर नीचे बने बाग का दृश्य काफी सुंदर दिखाई देता होगा. भवन के ऊपर दो गुंबद बने हैं और उन तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हैं.
बाज बहादुर के दौर में इस भवन का उपयोग संगीतशाला के रूप में किया जाता था. रानी रूपमती मंडप को बाज बहादुर ने अपनी रानी रूपमती के लिए बनवाया था. यह एक ऊंची पत्थर की चट्टानों पर बना है, जिसकी ऊंचाई 400 मीटर है. माना जाता है कि रानी रूपमती सुबह उठकर पहले नर्मदा नदी के दर्शन करती थी और बाद में अन्न ग्रहण करती थी. इस महल के ऊपर दोनों किनारों पर छतरीनुमा चौकोर खुले कक्ष बने हुए हैं. महल की छत से पूरे मांडू का नजारा देखा जा सकता है.