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मुजफ्फरपुर में मिले हैंड, फुट व माउथ के पांच मरीज, फिर भी स्वास्थ्य विभाग सजग नहीं, जाने कैसे बचें

शहर में हैंड, फुट व माउथ डिजीज के पांच मरीज मिले हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग इसको लेकर गंभीर नहीं है. जिन इलाकों में संक्रमित बच्चे मिले हैं, वहां अन्य बच्चों की जांच नहीं की गयी. उन स्कूलों में भी कैंप लगाकर जांच नहीं की गयी, जहां बच्चे पढ़ते थे. गौरतलब है कि इस बीमारी का टीका अभी तक नहीं आया है.

पिछले चार दिनों में शहर में हैंड, फुट व माउथ डिजीज के पांच मरीज मिले हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग इसको लेकर गंभीर नहीं है. जिन इलाकों में संक्रमित बच्चे मिले हैं, वहां अन्य बच्चों की जांच नहीं की गयी. उन स्कूलों में भी कैंप लगाकर जांच नहीं की गयी, जहां बच्चे पढ़ते थे, जबकि यह बीमारी संक्रामक है. पांच वर्ष तक के बच्चे इसकी चपेट में आ रहे हैं. वायरस जनित यह रोग सांस और ड्राॅपलेट के जरिये फैलता है. संक्रमित बच्चे के इस्तेमाल की गयी चीजों के संपर्क में आने पर भी यह बीमारी हो जाती है. डॉक्टरों का कहना है कि यह एक माइल्ड वायरल डिजीज है, जो कोक्ससैकीय नामक वायरस की वजह से होता है. यह बीमारी रेस्पिरेटरी ट्रैक के जरिए फैलती है और हाथ, पैर व मुंह में अल्सर कर देती है. अभी तक इसका टीका नहीं आया है. इससे बचाव के लिए साफ-सफाई पर ध्यान देना जरूरी है.

हैंड, फुट व माउथ बीमारी के लक्षण

हैंड, फुट व माउथ बीमारी में फीवर आता है और बच्चों के जीभ, तालु और गाल के अंदर लाल दाने हो जाते हैं. इस स्थिति में बच्चा खाना नहीं खा सकता. हाथ व पैर में भी फफोलेदार दाने बनते हैं. बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है. ऐसे लक्षण आने पर अभिभावकों को तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए. बिना डॉक्टर के परामर्श के बच्चों को दवा नहीं देनी चाहिए.

क्या है बीमारी का इलाज

इस बीमारी में लक्षण के अनुसार ही इलाज किया जाता है. इस बीमारी की कोई दवा नहीं है. अगर फीवर हो रहा है, तो उसकी दवा दी जाती है. गले में दर्द हो रहा है, तो उसके लिए दवा दी जाती है. अगर स्कूल में बीमारी है, तो वायरस को फैलने से रोकने के लिए स्कूल बंद कर देना चाहिए, ताकि संक्रमण के विस्तार पर रोक लगे. जिस बच्चे को यह बीमारी है, उसे पहले डॉक्टर को दिखाना चाहिए. डॉक्टर की सलाह पर ही इलाज लेना चाहिए. मरीज को आइसाेलेट कर देना चाहिए, ताकि वे बाकी बच्चों से दूर रहें.

इस बीमारी में न दें एंटीबायोटिक

वरीय शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ अरुण साह ने बताया कि इस बीमारी में एंटीबायोटिक दवा नहीं देनी चाहिए. यह बीमारी सात से दस दिनों के अंदर खुद ही ठीक हो जाती है. बीमार बच्चों को डॉक्टर से जरूर दिखाना चाहिए और उसके परामर्श के अनुसार मरीज के लक्षणों को देखते हुए दवा दी जानी चाहिए. वहीं एसकेएमसीएच के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ गोपाल शंकर सहनी ने कहा कि एसकेएमसीच में अभी तक इस बीमारी से ग्रसित बच्चों को इलाज के लिए नहीं लाया गया है. अगर इस बीमारी से संक्रमित कोई बच्चा आता है, तो उसकी जांच करायी जायेगी. संक्रमण के आधार पर उसका इलाज किया जायेगा.

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