Shaurya Ghata: जम्मू-कश्मीर में चुनाव का दौर चल रहा था लेकिन आतंकी चुनाव नहीं होने देना चाहते थे, पांच चरणों में चुनाव होना था. दो चरण के चुनाव संपन्न हो गये थे. 5 दिसंबर की सुबह आतंकवादियों ने बोफोर्स पावर हाउस पर हमला कर दिया. इस पावर हाउस में बोफोर्स तोपों को रखा जाता है. आतंकवादी इस पावर हाउस को कब्जे में लेना चाहते थे. यह फिदाइन हमला था. आतंकवादियों ने बोफोर्स पावर हाउस के गेट पर तैनात चार जवानों को मार डाला था. ये आतंकवादी मशीनगन से अंधाधुंध फायरिंग करते हुए कैंपस में घुसे थे. हमले की जानकारी वायरलेस द्वारा ब्रिगेडियर तक पहुंची. बिग्रेडियर ने अपने सर्वश्रेष्ठ और सबसे भरोसेमंद लेफ्टिनेंट संकल्प कुमार को हमले वाले स्थान में जाकर स्थिति को नियंत्रण में लेने का आदेश दिया.
संकल्प उस वक्त आउटर सर्कल में स्पेशल गन कैरेज (जिसमें गोलियों का असर नहीं होता है) में गश्त लगा रहे थे. सूचना मिलते ही बगैर एक क्षण का विलंब किये वे स्पेशल कैरेज को छोड़, साधारण जीप में हवलदार सुभाषचंद और नायक गुरमेल सिंह के साथ आतंकवादियों का सामना करने के लिए निकल पड़े. सुबह के 5.50 बज रहे थे. ले. कर्नल संकल्प और उनके दो सहयोगियों का छह आतंकवादियों से सामना हुआ, ये आतंकवादी लगातार फायरिंग कर रहे थे. इस हमले में सेना के कई अफसर जवान घायल हो चुके थे. संकल्प जबाबी कार्रवाई कर रहे थे. उधर आतंकवादी लगातार ग्रेनेड भी फेंक रहे थे. संकल्प बिना अपनी जान की परवाह किये लगातार आग उगल रहे थे. इससे आतंकी अपने मंसूबों को पूरा नहीं कर सके, अपने फर्ज को निभाते निभाते और आतंकियों का बहादुरी से सामना करते हुए संकल्प शहीद हो गये.. एवं अदम्य साहस के लिए उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया.
रांची में रहता है संकल्प का पूरा परिवार
संकल्प का पूरा परिवार रांची में रहता है, जब उनकी शहादत की खबर रांची आयी, तो किसी को भरोसा नहीं हुआ. लोग रो पड़े. संकल्प बहादुर थे और आये दिन आतंकवादियों से उनकी मुठभेड़ होते रहती थी. मुठभेड़ कोई नयी बात नहीं थी. 2004 में श्रीनगर में एक हमले के दौरान उन पर दुश्मनी ने एके-47 से गोलियों की बौछार कर दी थी. उनके पेट में तीन गोलियां लगी थी, लेकिन मायर संकल्प ने तब मौत को मात दे दी थी. बचपन से ही ये बहादुर थे. जब ये मात्र तीन साल के थे, वो सीढ़ियों से गिर गये थे. उनका शरीर कई जगहों पर कट गया था, लेकिन बालक संकल्प ने तब उपफ भी नहीं किया था. बचपन से ही उनके शौक को देख कर कोई भी कह सकता था कि यह बालक होकर देश की सेवा करेगा, सेना में जायेगा. एक ऐसी ही घटना बचपन में पटी थी. एक बार पूरा परिवार मुंबई घूमने गया था. संकल्प तब बालक थे. उन्होंने अपने पिता से एयरगन खरीदने की जिद की थी. चाहते तो कुछ और चीज भी मांग सकते थे, लेकिन उन्होंने मन की मांग की. पिता ने गन खरीद दी थी. जब संकल्प बड़े हो गये, सेना में अफसर बन गये, तब भी उस एयरगन से बहुत प्यार करते थे.
संत जेवियर में की थी पढ़ाई
संकल्प ने रांची के संत जेवियर स्कूल और कॉलेज में पढ़ाई की थी. सच्चाई और मिलनसार स्वभाव के कारण अपने सारे शिक्षकों, दोस्तों, पास-पड़ोस के लोगों और परिवारजनों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय थे. दूसरों की हमेशा मदद करने की सोच और असाधारण नेतृत्व क्षमता उनमें थी. सेना में जाने की इच्छा ने उनका चयन सीडीएस में कराया. देहरादून में ट्रेनिंग खत्म करने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग लखनऊ में हुई थी. एक बार उनकी माँ ने खतरे की आशंका को देखते हुए नौकरी छोड़ देने की सलाह भी दे
संकल्प कुमार अपनी बहन मेधा, पत्नी प्रिया एवं बहनोई आशीष के साथ डाली. संकल्प जानते थे कि मां पुलमोह में ऐसा कह रही हैं. उन्होंने मां को समझा था- “मा, किसी ना किसी को तो देश की करनी होगी. अगर हर कोई अनिश्चितताओं से घबराकर इस फर्ज से मुंह मोड़ लेगा, तो फिर देश की सुरक्षा कौन करेगा?” उनके इस जवाब पर माँ कुछ नहीं बोल सकी थी. संकल्प अपने लक्ष्य और संकल्प के प्रति बहुत सचेत रहते थे. 2004 में संकल्प की शादी घटना में प्रिया के साथ हुई थी. संकल्प- प्रिया की दो बेटियाँ हुई. मन्ना और सारा इन दोनों के आने से संकल्प कर हर सपना पूरा हरे चुका था. जब छुट्टी मिलती, बेटियों और परिवार से मिलने घर आ जाते. संकल्प छुट्टियों में अपनी पसंदीदा जगह जबलपुर अपनी बहन मेधा और बहनोई आशीष के पास जरूर जाते थे.
दुर्गापूजा में संकल्प घर आये थे और कुछ समय परिवार के साथ व्यतीत करने के बाद वे यह कह कर श्रीनगर वापस चले गये थे कि जल्द ही उनका कार्यकाल (जनवरी-2015) पूरा हो जायेगा. फिर ये पूरा समय अपने परिवार को देंगे, लेकिन ईश्वर को यह मंजूर नहीं था. संकल्प को लोग कितना प्यार करते थे उसका उदाहरण है उनकी याला की भीड़. शहीद संकल्प को श्रद्धांजलि देने के लिए पूरा रांची शहर उमड़ पड़ा था. आज संकल्प भले ही शारीरिक तौर पर इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा दिया गया बलिदान आने वाले समय में सदैव उन्हें एक प्रेरणा स्त्रोत के रूप में याद करता रहेगा. इसी एहसास को जिंदा रखने के लिए रांची में 200 से 250 वृक्षों वाले “संकल्प स्मृतिवाटिका’ का निर्माण किया गया है.