पटना: बिहार में एक तरफ पहाड़ बचाने की मंशा से पत्थरों के खनन की अनुमति नहीं दी जा रही है. वहीं, दूसरी तरफ पत्थरों का अवैध खनन नहीं रुक रहा. इससे राज्य सरकार को राजस्व की हानि तो हो ही रही है, साथ ही राज्य के निर्माण कार्यों में पत्थरों की आपूर्ति के लिए झारखंड पर निर्भरता बढ़ रही है.
साल 2020 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी बिहार में ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के पहाड़ों को संरक्षित रखने का निर्देश दिया था. साथ ही कहा था कि पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ से हमें बचना चाहिए. कुछ पहाड़ों को खुदाई के लिए चिह्नित किया गया है, उसकी विशेषज्ञों से जांच करवा लेनी चाहिए. सूत्रों का कहना है कि राज्य में 2016-17 में करीब 50 पत्थर भूखंड थे जहां से पत्थर और क्रशर से राज्य सरकार को करीब 111 करोड़ 40 लाख रुपये का राजस्व मिला था. वहीं, 2017-18 में 127 करोड़ 84 लाख, 2018-19 में 162 करोड़ 83 लाख, 2019-20 में 91 करोड़ चार लाख और 2020-21 में 79 करोड़ 36 लाख रुपये का राजस्व राज्य सरकार को मिला था.
बिहार के रोहतास, कैमूर, शेखपुरा, गया, नवादा, बांका और औरंगाबाद जिले में मुख्य रूप से पत्थर का खनन हो रहा था. इसमें से अधिकतर स्थानों पर 22 साल के लिए खदानों की बंदोबस्ती की गयी थी. यह समय-सीमा 2021 में ही खत्म हो गयी. इसके बाद नयी बंदोबस्ती नहीं की गयी. फिलहाल करीब 10 खदानों से ही पत्थर का खनन हो रहा है. ऐसे में निर्माण कार्यों के लिए जरूरी गिट्टी की आपूर्ति झारखंड सहित अन्य पड़ोसी राज्यों से हो रही है.
सूत्रों का कहना है कि रोहतास जिले के करबंदिया और बांसा गांवों में कैमूर की पहाड़ी है. यहां बड़े पैमाने पर पत्थर का अवैध खनन कर क्रशर से गिट्टी बना कर बड़ी गाड़ियों से बाहर भेजा जाता है. पुलिस पर मिलीभगत और अवैध खनन पर लगाम नहीं लगाने का आरोप लगता है.
उच्चाधिकारियों की टीम ने पत्थर के अवैध खनन की स्थानीय अधिकारियों के साथ समीक्षा की थी. स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें बताया कि बालू के अवैध परिवहन की शिकायत थी, इसकी रोकथाम के लिए चेक पोस्ट बनाये गये हैं. वहीं, पत्थरों का अवैध खनन और परिवहन चोरी-छिपे होने की जानकारी दी.
इस मामले को लेकर पर्यावरणविद और तरुमित्र के निदेशक रहे फादर रॉबर्ट कहते हैं कि पहाड़ों को कटने की वजह से बादलों का ठहराव नहीं हो रहा. इस कारण सभी स्थानों पर बारिश नहीं हो रही. इसके साथ ही पहाड़ों को रहने से बारिश का पानी तलहटी में आकर रुकता था. यह धीरे-धीरे रिस कर जमीन के अंदर जाता था. इससे ग्राउंड वाटर लेवल में बढ़ोतरी होती थी, लेकिन पहाड़ों के कटने से ग्राउंड वाटर की भी समस्या में बढ़ोतरी हुई है. बारिश का पानी जमीन पर ठहरता भी नहीं और यह जमीन के अंदर जाने की बजाय इधर-उधर बह जाता है.