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बिंदी की चमक अपार आया तीज का त्योहार

चूड़ी, कंगन, बिंदिया, सिंदूर, मेहंदी, लाल-पीली साड़ियां और व्रत पूजा का ही दूसरा नाम है- 'तीज'. उत्तरी भारत में बरसात के मौसम में सावन से भाद्रपद मास तक तीन तरह की तीज मनायी जाती है. अब झारखंड-बिहार के प्रमुख लोक आस्था और प्रेम का पर्व ‘हरतालिका तीज’ मनाने की तैयारी है. 30 अगस्त को तीज मनाई जायेगी.

रीता गुप्ता

सच पूछा जाये तो महिलायें ही संस्कृतियों की सच्ची संवाहक होती हैं. वे तीज-त्योहारों को थाती के रूप में घर की अगली पीढ़ी को थमाती हैं, सिखाती हैं और पुश्त दर पुश्त जिंदा रखती हैं. हरतालिका तीज भी एक ऐसा ही त्योहार है, जिसे घर-घर में सास/माताएं अपनी बेटी-बहुओं को आस्था का ये पर्व मनाने का ढंग बताती हैं. ये पर्व आस्था और विश्वास के साथ-साथ प्रेम का भी प्रतीक भी है, जब सुहागिनें अपनी पतियों की लंबी उम्र के लिए चौबीस घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. सजती-संवरती हैं और भगवान शिवजी और माता पार्वती की पूजा करती हैं. कई जगहों पर कुंवारी लड़कियां भी सुयोग्य पति की कामना लिये ये व्रत करती हैं.

पति-पत्नी के सात जन्मों तक जुड़े रहने का पर्व

लोक मानस में ये त्योहार पति-पत्नी के सात जन्मों तक जुड़े रहने का पर्व है. अन्य त्योहारों के विपरीत तीज पूर्ण रूप से घर में मनाने वाला पर्व है. न कहीं भव्य पंडाल बनते हैं, न लाउड स्पीकर का शोर होता है, न बड़े-बड़े मूर्ति बनाये जाते हैं और न ही बाजार से मिठाइयां आती हैं. ज्यादातर महिलायें घर में ही ठेकुआ, पेड़ुकिया, पंजीरी, आदि प्रसाद बनाती हैं. कई महिलायें शिव मंदिर में जा कर पूजा कर आती हैं, तो कई घर पर ही बालू से शिव-पार्वती की प्रतिमा बना पूजन करती हैं. वैसे देखा जाये तो ये त्योहार इको फ्रेंडली भी है, बालू निर्मित प्रतिमा को बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाये विसर्जित कर दिया जाता है.

तीज-त्योहार मजबूत करते हैं रिश्ते

तीज-त्योहार परिवार में आपसी प्रेम और सद्भावना को भी बढ़ाते हैं. पत्नी यदि निर्जला उपवास रखती है, तो पति उसके सर्गही (वो खाना जो व्रत या उपवास कराने के उद्देश्य से भोर से पहले खाया जाये) व पारण (उपवास तोड़ने वाला भोजन) का प्रबंध करता है. पत्नी अपने जीवन साथी की लंबी उम्र के लिए एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक न कुछ खाती है, न पानी ही पीती है, पूजन करती है और सुहाग सामग्री का दान करती है. पति और घर के अन्य सदस्य उसको सहयोग करते हैं और उसका ध्यान रखते हैं. इस तरह यह त्योहार पारिवारिक संबंधों को मजबूत करता है.

‘सिर्फ मैं ही क्यूं उपवास करूं?’

समय के साथ अन्य उत्सवों के तरह तीज में भी लचीलापन अपनाते हुए बदलाव आये हैं. कामकाजी या उम्रदराज महिलायें पूर्ण उपवास की जगह आंशिक या प्रतीकात्मक उपवास करती हैं, जो सही भी है. एक विकृति भी इस सीधे-सरल पर्व में हाल के वर्षों में घुसपैठ कर चुकी है, वह है- बाजारवाद और दिखावापन, जो त्योहार के मूल मर्म को आहत करती है. इसी तरह नवयौवनाएं सुहागिनों को इस पर्व में करने वाले उपवास के औचित्य पर ही आपत्ति है. उसी तरह कई खिन्न पत्नियां ‘सिर्फ मैं ही क्यूं उपवास करूं?’ जैसे प्रश्नों से जूझती हुई इसे नकार देती हैं. हाल ही में एक मशहूर अभिनेत्री ने पति के लिए ऐसे व्रत रखनेवाली स्त्रियों का उपहास किया था, जिसके कारण वे ट्रोलर्स के निशाने पर आ गयी थीं. गुमनामी के गर्त में डूबते सितारे जानबूझ कर कुछ ऐसा कह जाते हैं, जो उन्हें क्षणिक चर्चा में शामिल कर देता है. इसके लिए स्थापित रीति-रिवाजों का मजाक उड़ना सबसे आसान है.

खैर, सबकी अपनी-अपनी सोच है. कहा भी गया है- मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पयः अर्थात्, जितने मनुष्य हैं, उतने विचार हैं. एक ही गांव के अंदर अलग-अलग कुएं के पानी का स्वाद अलग-अलग होता है. पारिवारिक प्रेम और सद्भावना की वृद्धि करने वाले पर्व “हरतालिका तीज” की सबको बहुत-बहुत बधाई! घर- घर में प्रेम स्थापित होगा, तभी समाज और देश भी खुशहाल रहेगा.

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