रांची/नई दिल्ली : झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता को लेकर निर्वाचन आयोग ने अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंप दी है. ऑफिस एंड प्रोफिट के मामले में निर्वाचन आयोग जांच कर रहा था. जांच पूरी होने के बाद उसने अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को भेजी है. हालांकि, राज्यपाल रमेश बैस की ओर से इस मामले में अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है. वे अपना इलाज कराने के लिए दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान गए हुए थे. संभावना जाहिर की जा रही है कि राज्यपाल की ओर से अधिसूचना जारी होने के बाद ही हेमंत सोरेन की सदस्यता पर स्थिति स्पष्ट हो सकेगी. इस बीच, सवाल यह पैदा होता है कि अगर हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द हो जाती है,तो क्या होगा? अयोग्य ठहराए जाने की संवैधानिक प्रक्रिया क्या है? आइए जानते हैं…
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता का मामला खनन का पट्टा देने और छद्म कंपनियों में उनकी हिस्सेदारी से जुड़ा है. इस मामले को लेकर भाजपा के नेताओं ने 11 फरवरी को हेमंत सोरेन के खिलाफ राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपी थी. राज्यपाल को सौंपे ज्ञापन में आरोप यह लगाया गया कि मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए हेमंत सोरेन ने अपने नाम खदान आवंटित की थी.
इसके साथ ही, इस ज्ञापन में सोरेन परिवार पर छद्म कंपनी में निवेश कर संपत्ति अर्जित करने का भी आरोप लगाया गया है. भाजपा की ओर से लगाए गए इन आरोपों के बाद राज्यपाल ने निर्वाचन आयोग को जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी थी. जांच पूरी होने के बाद निर्वाचन आयोग ने राज्यपाल को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है.
अब बताया यह जा रहा है कि राज्यपाल की ओर से अधिसूचना जारी होने के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि उनकी सदस्यता रद्द की गई है या नहीं, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 192 के तहत किसी सदस्य को अयोग्य ठहराने के मामले में अंतिम फैसला राज्यपाल करते हैं. इसमें यह देखना भी महत्वपूर्ण होगा कि राज्यपाल अपनी अधिसूचना में उनकी सदस्यता कितने साल तक के लिए रद्द करते हैं.
जनप्रतिनिधि कानूनों के तहत लोकसभा, राज्यसभा या विधानसभा के किसी सदस्य की सदस्यता रद्द करके उसे अयोग्य करार दे दिया जाता है, तो संबंधित व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर रोक लग जाती है. जनप्रतिनिधियों की सदस्यता रद्द होने के कई आधार होते हैं. कोई भी जनप्रतिनिधि की सदस्यता अदालतों द्वारा सजा मिलने, दल-बदल कानून का उल्लंघन करने पर या फिर निर्वाचन आयोग द्वारा अयोग्य करार दिए जाने की स्थिति में रद्द की जा सकती है.
वहीं, अगर किसी जनप्रतिनिधि की सदस्यता अदालती सजा के बाद रद्द की जाती है, तो सजा की अवधि के आधार पर उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाती है. इसमें सजा की दोगुनी अवधि तक भी चुनाव लड़ने पर रोक लग सकती है जैसा कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के मामले में हुआ.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के मामले में निर्वाचन आयोग ने जनप्रतिनिधि अधिनियम-1951 की धारा 9(ए) के तहत लाभ का पद से जुड़े नियमों के उल्लंघन को लेकर सुनवाई की थी. यह सरकारी अनुबंधों के लिए अयोग्यता से संबंधित है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के की धारा 9(ए) और संविधान के अनुच्छेद 191 (1)(ए) के तहत कोई भी सांसद और विधायक लाभ का अन्य पद ग्रहण नहीं कर सकता है.
भारतीय संविधान की धारा 102 (1) (ए) के अनुसार, कोई व्यक्ति सासंद या विधायक अयोग्य करार दिया जाता है, अगर वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी ऐसे पद पर आसीन रहता है, जहां से अलग से वेतन, भत्ता या बाकी फायदे मिलते हों. इससे पहले भी कई लोगों की सदस्यता इस कानून के तहत रद्द की जा चुकी है.
कुल मिलाकर यह कि कोई भी व्यक्ति लाभ के पद पर आसाीन रहते हुए दो जगहों से वेतन या भत्ते प्राप्त नहीं कर सकता है. इसमें शर्त यह भी है कि लाभ का पद वह होता है, जिस पर नियुक्ति सरकार करती हो और सरकार उस पद को नियंत्रित करती हो. ऐसे में अगर कई प्रतिनिधि ऐसा करता है, तो उसे अयोग्य करार दिया जा सकता है.
जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 की उपधारा 1,2, और 3 में उन अपराधों की सूची है, जिनमें दोषी ठहराए जाने पर व्यक्ति चुनाव लड़ने और सदन का सदस्य होने के अयोग्य हो जाता है. इसमें अयोग्यता की दो श्रेणियां हैं. एक में उन विशेष कानूनों का जिक्र है, जिसमें दोषी पाए जाते ही व्यक्ति अयोग्य हो जाता है. इन कानूनों में भ्रष्टाचार निरोधक कानून भी है. दूसरी श्रेणी सजा की अवधि से अयोग्यता तय करती है जैसे जमाखोरी, मिलावट और दहेज प्रताड़ना में छह माह की सजा होने पर अयोग्य हो जाएगा. इनके अलावा किसी भी जुर्म में दो वर्ष या इससे अधिक की सजा होने पर व्यक्ति छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकता. अगर अदालत अपील पर सुनवाई के दौरान सजा के साथ दोष सिद्धि पर रोक लगा देती है, तो व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है जैसा कि भाजपा सांसद नवजोत सिंह सिद्धू के मामले में हुआ था.
इससे पहले कई नेताओं पर कार्रवाई हो चुकी हैं, जिसमें हेमंत सोरेन के पिता शिबूसोरेन भी शामिल हैं. साल 2001 में हाईकोर्ट ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन की संसद सदस्यता रद्द कर दी थी. दरअसल, उस वक्त वे झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद के अध्यक्ष थे. इनके अलावा सोनिया गांधी पर साल 2006 में कार्रवाई की गई थी. उस वक्त सोनिया गांधी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के पद पर थीं और फिर उन्होंने रायबरेली से दोबारा चुनाव लड़ा था. वहीं, साल 2006 में ही जया बच्चन को अपने पद से हटना पड़ा था क्योंकि वे राज्यसभा सांसद होने के साथ-साथ यूपी फिल्म विकास निगम की अध्यक्ष भी थीं.
जमशेदपुर पश्चिम के विधायक और पूर्व भाजपा नेता सरयू राय ने ट्वीट किया कि जहां तक मेरा अनुमान है, अयोग्य ठहराने की अधिसूचना राजभवन से निकलते ही हेमंत सोरेन इसके विरूद्ध हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. उन्हें जाना भी चाहिए. यदि मुख्यमंत्री रहते न्यायालय से तुरंत स्थगन आदेश नहीं मिला, तो मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद भी वे न्यायिक लड़ाई लड़ सकते हैं.
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि लोकतंत्र में मुख्यमंत्री एक लोकसेवक है. लोकतंत्र में लोकलज्जा होती है. ये पारिवारिक पार्टियां अपने परिवार के फायदे के लिए पद का दुरुपयोग करते हैं. हमने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ राज्यपाल को ज्ञापन सौंपी थी. उन्होंने कहा कि झारखंड ने झामुमो को बहुत उम्मीद और भरोसे के साथ चुना था. लेकिन, जब से वे सत्ता में आए, उन्होंने राज्य के प्राकृतिक संसाधनों को लूटना शुरू कर दिया.
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उन्होंने कहा कि आज जो हो रहा है, उसके लिए अगर कोई जिम्मेदार है, तो वह खुद सोरेन सरकार है. यह अपने ही कुकर्मों के कारण संकट में है. देखते हैं राज्यपाल क्या कार्रवाई करते हैं. न केवल उनसे (झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन) उनकी सदस्यता छीन ली जानी चाहिए, बल्कि उन्हें भी प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए. उनके खिलाफ पीसी एक्ट के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए, क्योंकि यह भ्रष्टाचार का मामला है. उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया.