Pitru Paksha 2022: 10 सितंबर से पितृपक्ष शुरू होने वाला है. इस दौरान पितृलोक से पृथ्वी लोक पर पितरों के आने का मुख्य कारण उनकी पुत्र-पौत्रादि से आशा होती है की वे उन्हें अपनी यथासंभव शक्ति के अनुसार पिंडदान प्रदान करें. यह माना जाता है कि इन 16 दिनों की अवधि के दौरान सभी पूर्वज अपने परिजनों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आते हैं. उन्हें प्रसन्न करने के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंड दान किया जाता है. इन अनुष्ठानों को करना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे किसी व्यक्ति के पूर्वजों को उनके इष्ट लोकों को पार करने में मदद मिलती है. वहीं जो लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान नहीं करते हैं उन्हें पितृ ऋण और पितृदोष सहना पड़ता है.
इंसान भले ही इस संसार में अकेला आता है, लेकिन विषय और संसारिक मोह के बंधनों में बंधकर वह कई रिश्तों की कड़ी बन जाता है. लेकिन मरने के बाद सिर्फ शरीर समाप्त होता है. उसकी आत्मा समाप्त नहीं होती. उसकी आत्मा का आगे का सफर तभी बढ़ता है, जब उसकी कर्मों का सारा हिसाब-किताब हो जाता है.
आत्मा के इसी सफर को आसान बनाने के लिए हिन्दू धर्म में कर्मकांडों की व्यवस्था की गई है. जिसमें सबसे अहम श्राद्ध और पिंडदान को माना जाता है. अपने पित्रों को तर्पण और निमित अर्पण करना उनकी आत्मा की शांति के लिए सबसे जरूरी माना गया है.
श्राद्ध में पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज कराया जाता है. इसमें चावल, गाय का दूध, घी, शक्कर और शहद को मिलाकर बने पिंडों को पितरों को अर्पित किया जाता है. जल में काले तिल, जौ, कुशा यानि हरी घास और सफेद फूल मिलाकर उससे विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है.
इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है. कहा जाता है कि इन दिनों में आपके पूर्वज किसी भी रूप में आपके द्वार पर आ सकते हैं इसलिए घर आए किसी भी व्यक्ति का निरादर नहीं करना चाहिए.
10 सितंबर 2022- पूर्णिमा श्राद्ध
11 सितंबर 2022- प्रतिपदा
12 सितंबर 2022- द्वितीया
13 सितंबर 2022- तृतीया
14 सितंबर 2022- चतुर्थी
15 सितंबर 2022- पंचमी
16 सितंबर 2022- षष्ठी
17 सितंबर 2022- सप्तमी
18 सितंबर 2022- अष्टमी
19 सितंबर 2022- नवमी
20 सितंबर 2021- दशमी
21 सितंबर 2022- एकादशी
22 सितंबर 2022- द्वादशी
23 सितंबर 2022- त्रयोदशी
24 सितंबर 2022- चतुर्दशी
25 सितंबर 2022- सर्वपितृ अमावस्या