31.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कांबली से उपजे सवालों के जवाब जरूरी

हाल में खबर आयी कि पूर्व क्रिकेटर विनोद कांबली इन दिनों आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. उन्होंने एक अखबार को बताया कि उनके पास भारतीय क्रिकेट बोर्ड से मिलने वाली 30 हजार रुपये पेंशन के अलावा कमाई का दूसरा जरिया नहीं है.

हाल में खबर आयी कि पूर्व क्रिकेटर विनोद कांबली इन दिनों आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. उन्होंने एक अखबार को बताया कि उनके पास भारतीय क्रिकेट बोर्ड से मिलने वाली 30 हजार रुपये पेंशन के अलावा कमाई का दूसरा जरिया नहीं है. कांबली अभी 50 साल के हैं और उनका मानना है कि रिटायरमेंट के बाद आपके लिए क्रिकेट पूरी तरह से खत्म हो जाता है. उन्होंने कहा कि मुंबई क्रिकेट ने उन्हें बहुत कुछ दिया है. वह इस खेल के लिए अपनी जिंदगी दे सकते हैं. उन्होंने मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन से काम की उम्मीद जतायी. वह क्रिकेट में सुधार संबंधी समिति का हिस्सा हैं, पर यह अवैतनिक काम है.

उन्होंने अपने बचपन के दोस्त सचिन तेंदुलकर के बारे में कहा कि वह सब कुछ जानते हैं, लेकिन वह उनसे कुछ उम्मीद नहीं करते हैं. कांबली तेंदुलकर मिडिलसेक्स ग्लोबल एकेडमी से जुड़े हुए थे, पर लंबी यात्रा करने की जरूरत के कारण उन्होंने यह काम छोड़ दिया था. उनकी मौजूदा आर्थिक स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह मैदान पर कोई भी काम करने को तैयार हैं. कांबली को लेकर यही माना जाता है कि उनमें सचिन तेंदुलकर से ज्यादा प्रतिभा थी, लेकिन विवादों के कारण उनका करियर सही नहीं चला और 2000 के बाद तो वह गुमनामी के अंधेरे में खो गये.

विनोद कांबली ने अपने स्कूल के दिनों में सचिन तेंदुलकर के साथ रिकॉर्ड 664 रनों की साझेदारी की थी, जिसने क्रिकेट जगत में सनसनी मचा दी थी. इस साझेदारी में कांबली ने 349 रन और सचिन ने नाबाद 326 रन बनाये थे. कांबली ने भारत के लिए 104 वनडे और 17 टेस्ट मैच खेले हैं, 17 टेस्ट मैचों में 54.20 के औसत से 1084 रन बनाये हैं और 227 रन उनका सर्वाधिक स्कोर रहा है. उन्होंने टेस्ट में चार शतक और तीन अर्धशतक लगाये हैं. वनडे में उन्होंने 104 मैच में 32.59 के औसत से 2477 रन बनाये हैं, जिसमें दो शतक और 14 अर्धशतक शामिल हैं.

अपने देश में क्रिकेट ही एकमात्र ऐसा खेल है, जिसमें पर्याप्त पैसा है. इस पर विमर्श हो सकता है कि कांबली यदि करियर पर ध्यान देते, तो वह न केवल आर्थिक रूप से ज्यादा सशक्त होते, बल्कि खिलाड़ी के रूप में भी उन्हें ज्यादा सम्मान मिलता. टीम में जगह बनाने वाले कई खिलाड़ी बहुत मामूली पृष्ठभूमि से आते हैं और भारतीय क्रिकेट को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाते हैं. सुनील गावस्कर, बिशन सिंह बेदी, सचिन तेंदुलकर और कृष्णामचारी श्रीकांत जैसे जाने-माने खिलाड़ियों के बच्चों ने कोशिश तो बहुत की, लेकिन वह कोई कमाल नहीं दिखा पाये.

कुछ अरसा पहले तो स्थिति यह थी कि भारतीय क्रिकेट टीम में देश के दो बड़े शहरों- मुंबई और दिल्ली- के खिलाड़ियों का ही बोलबाला रहता था. इनमें से अधिकांश खिलाड़ी संपन्न परिवारों से होते थे. माना जाता था कि क्रिकेट केवल अंग्रेजीदां लोगों का खेल है. कपिल देव से यह परंपरा बदली और धौनी के पदार्पण के बाद तो भारतीय क्रिकेट टीम का पूरा चरित्र ही बदल गया. धौनी ने तो तीनों फॉर्मेट में न केवल टीम का सफल नेतृत्व किया, बल्कि छोटी जगहों से आने वाले प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के लिए टीम में आने का रास्ता भी खोला.

अच्छी बात यह है कि आइपीएल टीमों में छोटे शहरों और कस्बों के युवा खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिल रहा है. आजमगढ़ जिले के रहने वाले सरफराज खान और प्रवीण दुबे, गाजीपुर के मूल निवासी सूर्यकुमार यादव और भदोही के यशस्वी जायसवाल के साथ शिवम दुबे आईपीएल खेल रहे हैं. तेज गेंदबाज मोहम्मद सिराज को जब मौका मिला, तो उन्होंने निराश नहीं किया. उनके पिता हैदराबाद में ऑटो रिक्शा चालक थे और ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान उनके पिता का निधन हो गया था, लेकिन वह मैदान में डटे रहे. चर्चित बल्लेबाज शुभमन गिल का पैतृक निवास पंजाब का जैमलवाला गांव हैं.

एक और चर्चित खिलाड़ी टी नटराजन तमिलनाडु के सलेम जिले से हैं. उनके पिता एक पावरलूम इकाई में दिहाड़ी मजदूर और मां गुमटी लगाती थीं. शार्दुल ठाकुर मुंबई से 90 किलोमीटर दूर पालघर में रहते हैं. वाशिंगटन सुंदर 2016 के अंडर 19 विश्व कप में भारतीय टीम के हिस्सा थे. उनके पिता मामूली खिलाड़ी थे, लेकिन बेटे ने उन्हें निराश नहीं किया. दरअसल, हमें अपने आर्थिक मॉडल पर भी विमर्श करने की जरूरत है. नयी अर्थव्यवस्था और टेक्नोलॉजी ने भारत को वैश्विक कर दिया है. हम पश्चिम का मॉडल तो अपना रहे हैं, लेकिन उससे उत्पन्न चुनौतियों की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं. अगर वैश्वीकरण के फायदे हैं, तो नुकसान भी हैं.

यह संभव नहीं है कि आप विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति दें और आपकी संस्कृति में कोई बदलाव न आए. कुछ समय पहले तक भारत में संयुक्त परिवार की व्यवस्था थी, जिसमें बुजुर्ग परिवार के अभिन्न हिस्सा थे. नयी व्यवस्था में परिवार एकल हो गये- पति पत्नी और बच्चे. यह पश्चिम का मॉडल है. पश्चिम के सभी देशों में परिवार की परिभाषा है- पति पत्नी और 18 साल से कम उम्र के बच्चे. बूढ़े मां-बाप और 18 साल से अधिक उम्र के बच्चे परिवार का हिस्सा नहीं माने जाते हैं. भारत में भी अनेक संस्थान और विदेशी पूंजी निवेश वाली कंपनियां इसी परिभाषा पर काम करने लगी हैं. सामाजिक व्यवस्था में आये इस बदलाव को हमने नोटिस नहीं किया है.

ऐसा अनुमान है कि भारत में अभी छह फीसदी आबादी 60 साल या उससे अधिक की है, लेकिन 2050 तक यह आंकड़ा 20 फीसदी तक होने का अनुमान है. पश्चिम के देशों में बुजुर्गों की देखभाल के लिए ओल्ड एज होम और पेंशन जैसी व्यवस्था है, लेकिन भारत में ऐसी कोई ठोस व्यवस्था नहीं है. पश्चिमी देशों की आबादी भी कम है, छोटे देश हैं, वहां ऐसी व्यवस्था करना आसान है. भारत के लिए यह बेहद कठिन काम है. जहां भी बुजुर्ग आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हुए, तो समस्या जटिल हो जाती है.

उम्र के इस पड़ाव पर स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ जाता है. संगठित क्षेत्र में काम करने वालों लोगों को तो रिटायरमेंट के बाद की आर्थिक सुविधाएं मिल जाती हैं, पर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की स्थिति चिंताजनक है. केंद्र और राज्य सरकारें वृद्धावस्था पेंशन देती हैं, लेकिन उसकी राशि नाकाफी होती है. आगामी कुछ वर्षों में यह समस्या गंभीर होती जायेगी. और, इस बात में तो बहस की कोई गुंजाइश नहीं है कि हमें अपने सभी खिलाड़ियों का ध्यान रखना चाहिए, ताकि जीवन के संध्याकाल में उन्हें कोई तकलीफ न हो.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें